पंजाब कला परिषद् द्वारा अपने प्रोग्राम 'तेरे सम्मुख के अंतर्गत बोस्टन (अमरीका) में बसे लेखक सरबप्रीत सिंह व अन्यों के साथ संवाद का एक शानदार प्रोग्राम आयोजित किया गया।सरबप्रीत सिंह व अन्यों ने अपने प्रवास के अनुभवों के साथ-साथ अपनी अभी छपी बहुत ही दिलचस्प और सार्थक अंग्रेज़ी पुस्तक ''ञ्जद्धद्ग ष्टड्डद्वद्गद्य रूद्गह्म्ष्द्धड्डठ्ठह्ल शद्घ क्कद्धद्बद्यड्डस्रद्गद्यश्चद्धद्बड्ड''(फि़लेडिलफिय़ा से आया ऊँटों का व्यापारी) संबंधी भरपूर जानकारी दी। इस पुस्तक में महाराजा रणजीत सिंह के लाहौर दरबार से सम्बन्धित बहुत सी कथाओं की चर्चा की गई है, जिनसे हमें महाराजा रणजीत सिंह और उसके दरबारियों संबंधी बहुत गहरी जानकारी मिलती है। इस पुस्तक का आखिऱी अध्याय सिख राज के समय से संबंधित है, जिसमें हमें उस समय के कई अंग्रेज़ अफसरों और कई दरबारियों और जनरलों द्वारा निभाई गई नकारात्मक भूमिका की बहुत पुख्ता जानकारी मिलती है।सरबप्रीत सिंह बहुत छोटी उम्र में ही अमरीका चले गए थे और बहुत देर तक वह अपने विरासत की जानकारी से अनभिज्ञ रहे।
उन्होंने इस मौके पर बोलते हुए कहा कि, ''अमेरीकन सिखों को कीर्तन करते देखकर मुझे महसूस हुआ कि मैं इस विरासत का हिस्सा होकर भी इससे दूर हूँ और यह लोग इस विरासत के आकर्षण के कारण इसका हिस्सा बन गए। बड़ी संख्या में पहुँचे श्रोताओं के जिज्ञासा भरे सवालों और सरबप्रीत सिंह व अन्यों के जानकारी भरे जवाबों ने समागम की रूचि को दोगुना कर दिया।इस समागम के शुरू में पंजाब कला परिषद् के चेयरपर्सन डा. सुरजीत पातर व अन्यों ने सरबप्रीत सिंह और श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा कि,''परदेस में बसे पंजाबियों के मन में पंजाब के इतिहास, विरासत, भाषा और संस्कृति को जानने की प्रबल इच्छा है।उन्होंने कहा,''मैं समझता हूँ कि आने वाले समय में तीनों पंजाब (परदेसी पंजाब, चढ़दा पंजाब और लैंहदा पंजाब) का आपसी संवाद पंजाबियत को और समृद्ध करेगा।समागम के अंत में पंजाब ललित कला अकादमी के प्रधान श्री दीवान माना ने सबका धन्यवाद करते हुए कहा कि यदी बहुत छोटी उम्र में परदेस गए पंजाबी भी इतनी सुंदर पंजाबी बोल सकते हैं तो मैं समझता हूँ कि पंजाबी के भविष्य को कोई ख़तरा नहीं। इस समागम में राज्य सूचना अधिकारी निधड़क सिंह बराड़ और अ.स. कलेर के अलावा और बहुत से लेखकों, कलाकारों और दानिश्वरों ने हिस्सा लिया।