भदौड़ में प्राचीन शिव मंदिर पत्थरां वाला व प्राचीन शिव मंदिर बाग वाला गत चार सौ वर्षों से क्षेत्र व राज्य भर के शिव भक्तों के लिए श्रद्धा व आस्था का केंद्र बना हुआ है। हर वर्ष महांशिवरात्रि के पावन दिवस के अलावा हर महीने त्रिरौदशी मेला धूमधाम से मनाया जाता है इस अवसर पर राज्य भर से हजारों श्रध्दालू भगवान शिव जी का आर्शीवाद प्रप्त करने के लिए पहुंचते हैं।
- मंदिर की इतिहास-
ग्यारह रुद्र शिव मंदिर पत्थरों वाली का इतिहास:- प्राचीन शिव मंदिर पत्थरां वाला का निर्माण गत चार सौ वर्ष पहले भदौड़ रियासत के राजा-महाराजाओं नें कराया था और भगवान शिव जी के ग्यारह रुद्र स्थापित किए थे। राजाओं नें अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए सैंकड़ों महां यज्ञा कराए और सैंकड़ों कापिला गाय दान की गई था। और राजाओं का सभी मनोकामनाए पुरी हुई थी। जिस की ख़ुशी में राजाओं ने उस समय महा यज्ञ भी करवाए थे। जिस दौरान राजाओं ने प्रनाले लगातार सवा महीने तक हवन कुँड में देसी घी डाला था और इस अवसर पर एक सो एक कपिला गाए भी दान की गई थीं। लगभग तीन सदीयों से शिव भगतों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। उनकी मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी सच्चे मन के साथ कोई मनोकामना करता है तो वे ज़रूर पूरी होती है। प्राचीन शिव मंदिर पत्थरां वाला में एक साँपों का जोड़ा भी रहता है, जो कभी-कभी मंदिर आने वाले शिव भक्तों को दर्शन देता है। अब इस मंदिर की सांभ-संभाल ग्यारह रुद्र प्राचीन शिव मंदिर पत्थरां वाला समिति करती है। और हर वर्ष महांशिवरात्रि व हर महीने त्रोदशी पर्व पर पूरा दिन विभिंन्न प्रकार के लंगर आदि के अलावा शिव गुणगान आदि का आयोजन कर रही है। और क्षेत्र व राज्य के अलावा पूरे भारत देश से हजारों श्रद्धालू भगवान शिव के दर्शन कर आर्शवाद प्रप्त करने के लिए आते हैं और मेला खूब भरता है।
ग्यारह रुद्र शिव मंदिर बाग़ वाले का इतिहास:-
इस मंदिर का इतिहास भी तकरीबन 390 साल पुराना है जो कि आज भी उर्दू की भाषा में मंदिर के अंदर लिखित है। इस मंदिर का निर्माण लाला नानूं कब्ज़ा कर ने अपने घर पुत्र की प्राप्ति समय पर करवाया थी। प्राचीन ग्यारह रुद्र शिव मंदिर बाग़ वाला मंदिर का नाम इस करके बाग़ वाला पड़ा क्योंकि इस मंदिर में उस समय हर प्रकार के फूल और फल होते थे, इस करके इस मंदिर का नाम बाग़ वाला पेै गया। लाला नानूं कब्ज़ा कर के घर पुत्र की प्राप्ति होने दौरान इस मंदिर में सवा महीने हवन यग्य हुए और 101 कपला गाय पुण्य की गई। अब इस मंदिर की देखभाल तरौदशी मेला वैलफ्फेयर समिति करती है।