डिप्टी कमिशनर मनप्रीत सिंह छत्तवाल ने जिले के सरहदी किसानों को रवायती खेती के चक्कर में से निकल कर बागबानी धंधो के साथ जुडऩे की अपील की है। उन्होंने किसानों को कम पानी वाली फसलों के साथ-साथ आर्गेनिक खेती करने पर भी जोर दिया है। उन्होंने जिले में आर्गेनिक खेती के साथ जुड़े किसान रवि धींगड़ा की भी भरपूर प्रशंसा की है जिनकी तरफ से भारत -पाक सरहद के बिल्कुल नजदीक बागों की आर्गेनिक तरीको के साथ खेती करके अपना और जिले का नाम चमकाया जा रहा है। डिप्टी कमिशनर छत्तवाल ने कहा कि जिले के दूसरे किसानों को भी प्रगतिशील सोच के मालिक किसानों से शिक्षा लेनी चाहिए, जो खेती के साथ-साथ सहायक धंधे अपना रहे हैं और अनावश्यक खादों का प्रयोग न करके खेती खर्चे कम करके अपनी आय में भी विस्तार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे आर्गेनिक तरीको के साथ खेती करने वाले किसानों को जिला प्रशासन की तरफ से स्वतंत्रता और गणतंत्रता दिवस मौके विशेष तौर पर सम्मानित किया जाएगा। भारत -पाक सरहद नजदीक पड़ते गाँव मुहंमद पीर में फलों की खेती करके फाजिल्का का नाम बागबाना की दुनिया में चमका रहे प्रगतिशील सोच के मालिक किसान रवि धींगड़ा ने बताया कि वह १९६८ से ही फलों की खेती कर रहा है। इस बागबान का यह भी कहना है कि उस की तरफ से पिछले ५० सालों से ही आर्गेनिक तरीको के साथ फलों की खेती की जा रही है।
१३ साल की उम्र से फलों की खेती कर रहे इस बागबान का कहना है कि उसे कभी भी आज तक अपने फलों को बेचने के लिए मुश्किल नहीं आई। उसे राज्य की राजधानी चण्ड़ीगढ़ से लेकर केंद्रीय राजधानी दिल्ली तक के फल विक्रेता की तरफ से खुद उसके पास आ कर अडवांस में ही फलों की बुकिंग करवा दी जाती है। उसे अपने तैयार किये फलों को मंडी में ले जाकर बेचने की भी कभी जरूरत नहीं पड़ती।पिछले ५० सालों से लगभग १६ एकड़ में अलग -अलग किस्म के व्यापारिक और घरेलू फलों की आर्गेनिक तरीको साथ खेती कर रहे इस बागबान की तरफ से पिछले साल से विशेष तौर पर श्रीलंका से ढाई हजार पौधे मंगवा कर लगभग ३ एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की गई है। अगले साल उस की तरफ से पाँच एकड़ ओर ड्रैगन फल उगाने का लक्ष्य निश्चित किया गया है। जिस के लिए उस की तरफ से खुद पनीरी तैयार की जा चुकी है।ड्रैगन फल बारे इस किसान का कहना है कि श्रीलंका में तैयार करने में इस फल को चाहे १३ महीने लगते हैं परन्तु उस की तरफ से लगाए गए इस फल के पौधों को सिर्फ ग्यारह महीनों में ही फल लगना शुरू हो गया था। इस फल की महत्ता बारे उस का कहना है कि यह एक ऐसा फल है जिस को खाने के साथ व्यक्ति कभी अपने आप को बुजुर्ग महसूस नहीं करता और न ही उसके चेहरे पर कभी झुरडिय़ां पड़तीं हैं, बल्कि हमेशा उस के चेहरे पर नूर रहता है और जल्दी कभी कोई बीमारी भी नहीं लगती।
बागबान श्री धींगड़ा ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की चाहे तीन किस्मे पहली बाहर से और अन्दर से लाल, दूसरी किस्म बाहर से लाल और अंदर से सफेद और तीसरी किस्म बाहर से पीला और अंदर से करीम का होता है। परन्तु उस की तरफ से अभी तक सिर्फ पहली दो किस्मों के ही पौधे लगाए गए हैं। इन की कीमत बारे उन्होंने बताया कि पहली किस्म का फल ३०० से ३५० रुपए, दूसरी किस्म का १५० से २०० रुपए और तीसरी किस्म का फल ८०० से ९०० रुपए प्रति किलो रुपए बाजार में बिकता है। ड्रैगन फरूट को उगाने के बारे में जानकारी देते बागबान श्री धींगड़ा ने बताया कि इस को उगाने के लिए खेत में पिल्लर लगा कर इस के आस-पास चारों तरफ पौधे लगाए जाते हैं। बागबान श्री रवि धींगड़ा ने यह भी बताया कि इंग्लैंड की कोवंैटरी यूनिवर्सिटी से एम.बी.ए पास उनका नौजवान सुपुत्र युवराज भी नौकरी करन की बिजाए उन के साथ ही खेती में सहयोग कर रहा है। उस की तरफ से व्यापारिक तौर पर दस एकड़ में अमरूद की सोलह किस्मों (स्थान पर सेवन, स्थान पर पीनक, एपल क्रौस, ताइवान, हिसार सफ़ेदा, इलाहाबादी सफ़ेदा, अरका अमुल्या, सरदार विरायटी, बरफखाना और एल9४९ आदि) की खेती की जा रही है
घरेलू फलों के बारे बागबान श्री धींगड़ा ने बताया कि उस की तरफ से अपने खेत में किन्नू, कुरमानी, नीबू, आम, चीकू, आलू -बुखारा, फालसा, बम्बूकोसा, कटहल, अमरीकन माल्टा, एवाकाडो, अंजीर, बेलगिरी, आलू बुख़ारा, आड़ू, बेर, जामुन, बादाम, सीता फल, सेब, और खजूर आदि फलों के पौधे भी लगाए गए हैं। उस की तरफ से मल्टी करोपिंग जैसे अमरूद और खजूर, ड्रैगन, सुवाजना और आमला की खेती इक_ी भी की जा रही है। दुनिया भर में सफल बाग़बान के तौर पर अपनी पूरी तरह धांक जमा चुके श्री धींगड़ा की किसानों को सलाह है कि उन को अनावश्यक खादों के इस्तेमाल करने की बजाय आर्गेनिक तरीको साथ खेती करनी चाहिए। इस के साथ उनके खर्चे कम और आय में विस्तार होता है। इस के अलावा आर्गेनिक तरीको के साथ तैयार किये गए फलों का शरीर के लिए किसी तरह का नुक्सान नहीं होता और इस की मार्किटिंग करने में कोई मुश्किल नहीं आती। इस को दूसरे फलों के मुकाबले और ज्यादा कीमत पर आसानी के साथ बेचा जा सकता है।