वन विभाग के एक प्रवक्ता ने आज यहां बताया कि राज्य में वन विभाग के वन उत्पाद को वैज्ञानिक तौर से दोहन एवं बिक्री के लिए वर्ष 1974 में राज्य वन विकास निगम का गठन किया गया था। मार्च, 2018 तक कई कारणों से निगम को लगभग 114 करोड़ रुपये का घाटा हो चुका है। निगम के इतिहास में सब से अधिक घाटा जोकि 34.43 करोड रुपये का वर्ष 2016-17 में हुआ। घाटे के मुख्य कारण निर्णय लेने में देरी, प्रबन्धन की लचर कार्य प्रणाली, दूरदर्शिता की कमी, संस्थागत स्थापना के लिए अधिक खर्चा तथा वृक्षों के दोहन की बढ़ती हुई लागत हैं।प्रवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में तथा वन, परिवहन, युवा सेवाएं एवं खेल मन्त्री गोविन्द सिहं ठाकुर के दिशा-निर्देश पर हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम की कार्यप्रणाली एवं दक्षता में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं।वर्तमान सरकार ने निगम प्रबन्धन को निर्देश दिए हैं कि वे कार्य क्षेत्र में कुशलता लाएं एवं कारोबार को बढ़ाएं, जिससे निगम के घाटे की पूर्ति की जा सके। निर्णय लिया गया है कि अब 5 लाख से अधिक की लागत के कार्यों को सिर्फ ई-टेन्ड्रिंग के माध्यम से ही आंबटित किया जाएगा, जिससे पेडों के दोहन की लागत कम आयेगी और ठेकेदारों की मिलीभगत को भी झटका लगेगा। इसके अलावा जो बिरोज़ा एकत्र करने के लिए टिनों की खरीद केन्द्रीकृत तौर पर की जाती थी तथा उसे फिर पूरे राज्य में वितरित किया जाता था। उस प्रथा को बन्द कर दिया गया है क्योंकि टिन की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार ऊंची दरों को भरते थे और टिनों के टैंडर में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी।
पहले की जाने वाली प्रथा विवादों में रही है क्योंकि उससे पारदर्शिता की कमी थी। अब निर्णय लिया गया है कि 2019 के पश्चात बिरोज़ा निष्कासन को ई-टेन्ड्रिंग द्वारा ही आबन्टित किया जाएगा, जिसमें टिन की कीमत भी शामिल होगी। इससे निगम द्वारा हर वर्ष 1.26 करोड़ रुपये की टिन पर की जाने वाली खरीद अब नहीं की जाएगी।अब श्रम आपूर्ति मेट एवं ठेकेदारों को भुगतान केवल डिजिटल मोड पर किया जाएगा तथा चैक के माध्यम से कोई भुगतान नहीं किया जाएगा, जिसमें पारदर्शिता के साथ ठेकेदारों को समय पर भुगतान सुनिश्चित होगा।सरकार ने वन निगम के कार्यों को टेंडर करने से पहले अनुमानित लागत का व्यौरा एक समान पद्धति द्वारा करने का निर्णय लिया है, जिसमें विभिन्न कार्यों के मूल्यांकन के लिए पिछले वर्षां के औसत विक्रय मूल्य बिना टैक्स को ध्यान में रखा जाएगा। कार्यों से होने वाले लाभ की अांकलन के लिए 25 प्रतिशत की दर से ओवर हेड चार्जिज ध्यान में रखे जाएंगें, जिससे टेंडर करते समय कार्यों से होने वाले लाभ-हानि का जायजा ठीक तरह से लिया जा सकेगा। प्रवक्ता ने कहा कि वर्तमान सरकार ने निजी भूमि मालिकों से लकड़ी के ओवर हेड व्यय को अब 18 से घटा कर 9 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे राज्य के निजी पेड मालिकों को प्रर्याप्त राहत मिलेगी।वन मन्त्री ने निगम की गतिविधियों में विविधता लाने के भी निर्देश दिए हैं तथा अतिरिक्त बिरोज़ा निकासी जहां भी संभव हो, के लिए वन विभाग एवं वन निगम को वृक्षों को तुरन्त चिन्हित करने के भी निर्देश दिए हैं ।