शुजात बुखारी ने कुछ महीने पहले मुझसे कहा था- जब तुम यहां आओगे तो हम मिलेंगे। लेकिन हम नहीं मिल सके। ईद के मौके पर जब मैं घर वापस लौटा हूं। मुझे यहां गोलियों से छलनी उनका पार्थिव शरीर देखने को मिला। कश्मीर के प्रतिष्ठित संपादक बुखारी की अज्ञात हमलावरों द्वारा हत्या की खबर की पुष्टि के लिए जब मैंने एक पत्रकार मित्र को फोन किया तो वह विलखकर रोने लगा और बोला, वह मारे गए और हम सब भी मारे जाएंगे। हालांकि मेरी यही कामना थी कि यह सच न हो। कश्मीर की घाटी में सबसे अच्छे खबरनवीस की कहानी का अचानक इस तरह अंत न हो। ऐसा लगा कि मेरे दिल में छूरो भोंक दिया गया हो।संघर्ष के शुरुआती दौर में मेरी और अनेक पत्रकारों की मदद करने वाले व्यक्ति अब कश्मीर में पत्रकारिता करने वाले नवोदित पत्रकारों की कोई मदद नहीं कर पाएंगे।मैं ईद के बाद उनसे मिलना चाहता था लेकिन पर्व के दो दिन पहले मैंने उनका निष्क्रिय खून से लथपथ पार्थिव शरीर की तस्वीर देखी। वह अपनी कार की एक तरफ की सीट पर पड़े हुए थे और उनकी कमीज शरीर को कई गोलियों भेद गई थीं। उनके बगल में कुछ अखबार पड़े थे जिनपर खून के छींटे पड़े हुए थे।बुखारी ने पत्रकारिता और इसके महत्व को कायम रखा। उन्होंने वस्तुत: पत्रकारिता के पेशे के लिए अपनी जान दी।एक दशक पहले श्रीनगर में शुरुआत करने वाले अंग्रेजी दैनिक राइजिंग कश्मीर के संपादक की जिस दिन हत्या हुई उस दिन भी उन्होंने अपनी पत्रकारीय निष्ठा और कश्मीर के अन्य पत्रकारों का बचाव किया। उन्होंने एक वीडियो टैग करके कश्मीर के बारे में पूर्वाग्रह से प्रेरित सूचना प्रसारित करने का आरोप लगाया।बुखारी का ट्वीट दिल्ली के एक टीवी पत्रकार द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो की प्रतिक्रिया में आया, जिसमें लैंड ऑफ विल्टेड रोज के लेखक आनंद रंगनाथन ने कश्मीर की घाट से पूर्वाग्रह से प्रेरित सूचना का विश्लेषण किया है जिसमें एक संपादक का दृष्टांत दिया गया जिनके बारे में कहा गया कि वह जो उपदेश देते हैं उस पर खुद अमल नहीं करते हैं।