जैसे जैसे बांझपन के मामले समाज में बढते जा रहे हैं वैसे ही इसके इलाज की जरूरत भी बढती जा रही है। इसके साथ ही बांझपन के इलाज की सफलता भी बढती जा रही है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा युवा डाक्टर भी इसे सीखने के लिए आगे आ रहे हैं ताकि वे महिलाओं के मातृत्व के अधिकार को बहाल करने में अपना योगदान दे सकें। इस परंपरा को आगे बढाने के लिए और युवा डाक्टरों को इस तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए जिंदल आई.वी.एफ. और संत मेमोरियल नर्सिंग होम चंडीगढ की डॉ उमेश नंदनी जिंदल और उनकी टीम ने हिमाचल चैप्टर आफ इंडियन इनफर्टिली सोसाइटी के साथ मिल कर दो दिनों की एक सेमिनार का आयोजन सोलन (हि.प्र्) में किया। इस सेमिनार में उत्तर भारत की सौ से अधिक फर्टिलिटी विशेषज्ञ, मेडिकल प्रेक्टिशनर्स, व साइंटिस्टस ने हिस्सा लिया जिन्होंने इस क्षेत्र की आधुनिक तकनालाजी के बारे में विस्तार से जानकारी दी और विचार विमर्श किया। उन्होंने आई.वी.एफ प्रेगेंनेंसीस के बारे में भी बातचीत की । जिंदल आईवीएफ की डाक्टर स्वाति वर्मा व डाक्टर अनुपम गुप्ता की तरफ से सिमुलेटर के जरिए विस्तार से तकनीक के बारे में जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि किस तरह से महिलाओं से अंडे को संग्रह किया जाता है और किस तरह गर्भाशय में भ्रूण का स्थानांतरण किया जाता है।
बांझपन की समस्या के साथ ही बहुत सारे सामाजिक, नैतिक और चिकित्सा संबंधित कानूनी मुद्दे भी जुड़े होतें हैं और खासकर भारत में जहां इसमें दो परिवार शामिल होते हैं वहां यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है। आज हुए इस सेमिनार में जस्टिस वी.के. गुप्ता (रिटायर्ड) ने भी भाग लिया और इस मसले पर जुडे हुए कई तरह के लीगल इश्यूज के बारे में विस्तार से सभी को जानकारी दी। डाक्टर शीतल जिंदल ने “प्री इंपलाटेंशन जेनेटिक स्क्रीनिंग” की अत्यानुधिक तकनीक के बारे में जानकारी दी। इस तकनीक के जरिए परिवारों में जेनेटिक डिसार्डर या फिर आईवीएफ तकनीक के लगातार असफल होने के कारणों का पता चल जाता है। यह वर्कशाप सभी प्रतिभागियों के लिए एक नया ही अनुभव लेकर आई।