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'किसानी और पानी के आंदोलनों के खिलाफ सरकार रचती है साजिश'

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भीकमपुरा (राजस्थान) , 06 Apr 2018

किसानी, पानी और जवानी पर खुलकर संवाद करने महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड से पहुंचे किसान नेताओं और जल प्रेमियों ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार किसानी व पानी के आंदोलनों के खिलाफ साजिशें रच रही है, उसकी नजर में इस वर्ग का कोई महत्व नहीं है। तीन दिवसीय चिंतन शिविर यहां शनिवार से शुरू होगा। चिंतन शिविर शुरू होने से पहले प्रतिनिधियों ने 'जलपुरुष' राजेंद्र सिंह की मौजूदगी में किसानों के आंदोलनों में आ रहे बिखराव पर खुलकर चर्चा की। महाराष्ट्र से आए रामकांत बापू कुलकर्णी ने कहा, "किसानों की समस्याएं राजनीति और सत्ता से जुड़े लोगों के लिए कोई अहमियत नहीं रखतीं, दूसरी बात कि किसान संगठन आपस में बंटे हुए हैं, जब भी कोई आंदोलन खड़ा होता है, उसका नेतृत्व करने वाला व्यक्ति वह होता है, जिसका किसान और पानी से कोई वास्ता नहीं होता। यही कारण है कि कोई आंदोलन ज्यादा जोर नहीं पकड़ पाता।"सामाजिक कार्यकर्ता निशिकांत भालेराव ने कहा, "राजनीतिक दलों की चालबाजी ने किसानों के बीच बिखराव का काम किया है। किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट की सिर्फ एक बात को जानते हैं कि उपज का डेढ़ गुना दाम। किसानों को पानी का ज्ञान कराना जरूरी है। पानी बिना किसानी की बात बेमानी है।"

जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा, "किसान आंदोलनों को अब सरकारें कोई महत्व नहीं देतीं, क्योंकि उन्हें पता है कि किसान संगठनों में कोई एकता नहीं है। यही कारण है कि आज किसानों की जायज मांगों को भी पूरा नहीं किया जा रहा है। लिहाजा, जरूरत है कि किसान संगठनों में एकता लाई जाए। ऐसा होने पर ही किसानों के लिए अपने हक की लड़ाई जीतना संभव होगा।"भूगर्भ विज्ञानी निवास वाडगवाडकर ने कहा, "किसानों को खेती के लिए यह बताना होगा कि वे किस तरह से खेती करें, कौन से फसल बोएं और पानी का किस तरह उपयोग करें। ऐसा होने पर ही किसानों को लाभ होगा।"किसान नेता रामपाल जाट ने कहा, "देश के 193 किसान संगठन एक मंच पर आ चुके हैं। हमारा नारा भी है कि खुशहाली के दो आयाम : ऋण मुक्ति और उपज का डेढ़ गुना दाम। इसके लिए अभियान जारी है, आने वाले समय में सरकारों को किसानों की बात मानना होगी।" जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, "अब किसान संगठनों को अपने हितों को त्यागकर किसानों के हितों को आगे रखकर काम करना होगा। कहीं गन्ना किसानों का संगठन है तो कहीं अंगूर, कपास, दुग्ध उत्पादक किसानों के संगठन हैं। इसलिए जरूरी है कि किसान न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएं, उस पर सभी मिलकर काम करें, तभी किसान एकजुट होंगे।"

इस पर कुलकर्णी ने कहा, "दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि किसानों के संगठनों का नेतृत्व उन लोगों के हाथ में होता है, जिनका खेती-किसानी से कोई वास्ता नहीं होता, सरकारें भी ऐसे लोगों को किसानों की समितियों में जगह देते हैं, जिनका खेती से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। यही कारण है कि किसानों के आंदोलन ज्यादा लंबा नहीं चल पाते, क्योंकि सरकार उनमें सेंध लगा देती है।"जलपुरुष ने आगे कहा, "केंद्र सरकार बाबाओं को खड़ा करने में लगी है, नदियों का बाबा बनाकर एक व्यक्ति को पूरे देश में घुमाया गया, जगह-जगह होर्डिंग लगाए गए और प्रचार में सरकार ही जुट गई। इस तरह नदी के अभियान को कमजोर किया गया। इतना ही नहीं, अभी हाल में दिल्ली में हुए किसान आंदोलन में भी यही कुछ हुआ। किसानों को वह हक नहीं मिला, जिसकी जरूरत थी।"जल जन जोड़ो अभियान के मुताबिक, सात से नौ अप्रैल तक भीकमपुरा के तरुण भारत संघ के आश्रम में चलने वाले इस शिविर में किसानी, पानी और जवानी पर खुलकर संवाद होगा। इस शिविर में हिस्सा लेने वाले 19 राज्यों के किसान संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता किसानों के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करेंगे। साथ ही कोशिश होगी कि एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा किया जा सके। 

 

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