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पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.पी मलिक द्वारा आतंकी स्थितियों के साथ निपटने के लिए आम नागरिकों को आगे आने का दिया न्योता

1965,71 के युद्धों संबंधी मिल्ट्री लिटरेचर फैस्टिवल दौरान हुई चर्चाओं में सामने आए दिलचस्प तथ्य

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5 Dariya News

चंडीगढ़ , 09 Dec 2017

पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी.पी मलिक ने मिल्ट्री लिटरेचर फैस्टिवल दौरान विचार-चर्चा के अवसर पर कहा  कि आतंकी हालातों से निपटने के लिए आम नागरिकों भी आगे आना चाहिए। इस काम के लिए केवल सेना पर ही निर्भरता नही रखनी चाहिए।यहां मिल्ट्री लिटरेचर फैस्टिवल के अंतिम दिन सुरक्षा रणनीति संबंधी हुई चर्चाओं के दौरान जनरल मलिक ने सुरक्षा संबंधी कई मसलों पर बातचीत की। जिनमें आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, पाकिस्तान से हो रही घुसपैठ, साइबर अपराध से पैदा हुई नई चुनौतियां, चीन से मिल रई चुनौतियां और तीनों सशस्त्र सेनाओं की भूमिका बारे अहम चर्चा की।इस अवसर पर उन्होंने सेना और नौकरशाहों मध्य तालमेल की कमी को भी उजागर किया और कहा कि कई बार सरकार द्वारा तेज़ी सेफ़ैसले नहीं लिए जाते जिस कारण देश की सुरक्षा प्रबंध ढीले रह जाते हैं। इस अवसर लैफ्टिनैंट जनरल सुरिन्दर सिंह ने एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की ज़रूरत पर और अधिक ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि यह ज़्यादा पारदर्शी और इस में आम लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के विषय संबंधी लैफ्टिनैंट जनरल विजय ओबराए और लैफ्टिनैंट जनरल अदित्या सिंह ने भी अपने मूल्यवान विचार पेश किये।इसी दौरान भारत-पाक जंग 1965 संबंधी हुई विचार-चर्चा के अवसर पर प्रवक्ता ने इस जंग के सही और गलत पक्षों संबंधी प्रकाश डाला। विचार-चर्चा में सेवामुक्त सैन्य अधिकारियों के साथ वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने हिस्सा लिया और कई अहम पहलूयों बारे प्रकाश डाला। लैफ्टिनैंट जनरन टीएस शेरगिल्ल, लैफ्टिनैंट जनरल एनएस बराड़, एयर मार्शल भरत कुमार, लैफ्टिनैंट जनरल जगबीर सिंह चीमा और ब्रिगेडियर सुखजीत सिंह ने श्रोताओं द्वारा पूछे सवालों के जवाब दिए। इन सभी प्रवक्तों ने 1965 की जंग संबधी कई अहम और दिलचस्प पहलू भी सांझे किये।

भारत-पाक जंग 1971 सैशन दौरान गहन विचार-चर्चा देखने को मिली। इस विचार-चर्चा में मेजर जनरल अमरजीत सिंह, मेजर जनरन एजेएस संधू, कर्नल अजय शुक्ला, ब्रिगेडियर सुखजीत सिंह, जी पंजाबी के संपादक दिनेश शर्मा, अशली वर्मा और शुसांत सिंह ने अपने-अपने विचार पेश किये। प्रवक्तों ने इस जंग के फायदे-नुक्सान संबंधी भी दोनों देशों के संदर्भ में विचारों का आदान-प्रदान किया।एक अन्य सैशन जिस का विषय एंग्लो-सिख जंगों थी, में भारतियों और अंग्रेज़ों के बीच हुए जंगों बारे विचार-चर्चा हुई। इस विचार-चर्चा में प्रवक्ता अमरपाल सिद्धू, मनदीप राय आईआरएस और इतिहासकार विलियम डैलरैंपल थे, जिन्होंने सिखों के इतिहास और एंग्लो-सिख जंगों संबंधी बात की।अमरपाल सिद्धू जिन्होंने सिख इतिहास बारे कई किताबें लिखीं हैं, ने श्रोते को बताया कि महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद उनके राज्य के पतन का क्या कारण था। उन्होंने बताया कि चाहे महाराजा रणजीत सिंह ख़ुद एक विलक्षण शासक थे, परंतु उनके देहांत के बाद राज्य को योग्य नेतृत्व देने वाला नहीं मिला। इस विषय संबंधी पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के अध्यापक डा. सुखमनीबल्ल रिआड़ ने भी अच्छा प्रकाश डाला जबकि विलियम ने महाराजा रणजीत सिंह के कई अहम पक्ष बताने साथ-साथ 17वीं और 18वीं सदी दौरान अंग्रेज़ों और भारतियों की द्वारा इस्तेमाल की जाती सैन्य तकनीकों संबंधी भी जानकारी दी। उन्होंने रणजीत सिंह और टीपू सुलतान के राज के पतन होने के कारणों को भी विस्तार में बताया।

 

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