वित्त वर्ष 2016-17 के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) आंकड़ों से यह साफ पता चलता है कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। इसका सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर हुआ है, जिसकी हालत और खराब होनेवाली है। देश के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन ने यह बातें कही। उन्होंने कहा कि जीडीपी के 7.1 फीसदी के आंकड़ों में असंगठित क्षेत्र पर हुए सीधे असर को शामिल नहीं किया गया है और जब तक असंगठित क्षेत्र का पहला अनुमान साल 2018 के अंत तक आएगा, नोटबंदी इतिहास बन चुकी होगी।
सेन फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय विकास केंद्र के कंट्री निदेशक है। उन्होंने आईएएनएस को बताया, "नोटबंदी का असली असर तो असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है और अगले साल के अंत से पहले इसका कोई आंकड़ा मिलने वाला नहीं है, क्योंकि इस समय यह आंकड़ा है ही नहीं।"उन्होंने कहा कि मौलिक समस्या यह है कि असंगठित क्षेत्र की किसी भी तिमाही का कोई अनुमान लगाया ही नहीं जाता है। उन्होंने कहा, "यह बदलने वाला नहीं है। इसका कुछ संकेत उद्योगों के सालाना सर्वेक्षण (एएसआई) के आंकड़ों से मिलेगा जो 2018 के अंत तक आएगा।
उससे पहले आप कोई अनुमान नहीं लगा सकते।"उन्होंने कहा कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) संगठित क्षेत्र के आंकड़ों के आधार पर असंगठित क्षेत्र का अनुमान लगाता है। उन्होंने कहा, "असंगठित क्षेत्र केवल हरेक पांच साल में सीधे-सीधे मापा जाता है। इस बीच विनिर्माण क्षेत्र के आंकड़ों से ही इसका अनुमान लगाया जाता है, लेकिन यह उसे नाप नहीं सकती। इसमें केवल बड़े उद्यमों जिसमें 10 से ज्यादा कर्मचारी हो, को मापा जाता है।"उन्होंने कहा कि अंसगिठत क्षेत्र के आंकड़ों को पाने का एक ही तरीका सर्वेक्षण है, जिसमें समय लगता है। नोटबंदी के बाद आरबीआई के पास कितनी रकम वापस लौटी, अभी तक इसके आंकड़े भी जारी नहीं किए गए है।