Saturday, 10 June 2023

 

 

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अनिल माधव दवे की सादगी थी पहचान

Web Admin

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5 Dariya News

18 May 2017

अनिल माधव दवे पर्यावरण प्रेमी, निष्काम कर्मयोगी, नर्मदा पुत्र, नदी संरक्षणवादी, चिंतक, विचारक, लेखक, शिक्षक, शौकिया पायलट, नाविक और भी न जाने कितने अलंकरण तथा नामों से पहचाने जाते थे। विडंबना यह कि कब किसने सोचा था, देर शाम तक पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दों पर प्रधानमंत्री के साथ गूढ़ मंत्रणा में व्यस्त दवे सुबह होते-होते चिरनिद्रा में विलीन हो जाएंगे! बेहद, सीधे, सरल और हंसमुख स्वाभाव के विनम्रता से परिपूर्ण अनिल दवे शीर्ष पर पहुंच कर भी अत्यंत सादागी भरा जीवन जी रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य तथा भारत सरकार में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार दवे का जन्म 6 जुलाई, 1956 को उज्जैन के बड़नगर में हुआ था।उन्होंने आरंभिक शिक्षा गुजरात में पूरी कर, इंदौर से ग्रामीण विकास एवं प्रबंधन में विशेषज्ञता के साथ वाणिज्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली। कॉलेज के दबंग छात्र नेता और संघ प्रचारक दवे आजीवन अविवाहित रहे। पहली बार 2009 में राज्यसभा गए। दवे ने नर्मदा समग्र संगठन की स्थापना की पर तरह-तरह के कार्यक्रम कर पर्यावरण की संरक्षा के प्रति जनचेतना का काम किया। अंतिम समय तक वह नर्मदा नदी और इसके जलग्रहण क्षेत्र के संरक्षण के लिए काम करते रहे। नर्मदा से लगाव के कारण ही उन्हें 'नर्मदा-पुत्र' भी कहा जाने लगा।

नर्मदा परिक्रमा पूरी करने के लिए उन्होंने 18 घंटों तक विमान से नर्मदा किनारे उड़ान भी भरी और बेहद दुर्गम मार्गों से यात्रा पूरी की। समूचे एशिया में विशिष्ट पहचान बनाए द्विवार्षिक 'नदी महोत्सव' का आयोजन भी उन्होंने किया, जिसके जरिए पूरे विश्व में नदियों के संरक्षण से जुड़े जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय मुद्दों को जुटाया जाता है, विश्लेषण किया जाता है। दवे ने विभिन्न विषयों और क्षेत्रों में राजनीतिक, प्रशासनिक, कला एवं संस्कृति, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन, यात्रा वृत्तांत, इतिहास और प्रबंधन पर कई पुस्तकें भी लिखीं। प्रमुख चर्चित पुस्तकों में 'शिवाजी एंड सुराज', 'ए क्रिएशन टू क्रिमेशन', 'रैफ्टिंग थ्रू' 'सिविलाइजेशन', 'ट्रैवलॉग', 'यस आई कैन', 'सो कैन वीए बेयांड कोपेनहेगन', 'शताब्दी् के पांच काले पन्ने', 'संभल के रहना अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से', 'महानायक चंद्रशेखर आजाद', 'रोटी और कमाल की कहानी', 'समग्र ग्राम विकास' और 'अमरकंटक से अमरकंटक' शामिल हैं।दवे ने विश्व में कई जगह युनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज अर्थात 'यूएनएफसीसीसी' द्वारा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन पर आयोजित सम्मेलनों में भाग लेने के साथ ही आतंकवाद का मुकाबला करने, इजरायल में हर वर्ष आयोजित होने वाली संगोष्ठियों और सम्मेलनों में हिस्सा भी लिया। 

संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोप के विभिन्न, हिस्सों तथा दक्षिण अफ्रीका की यात्राएं की। वह एक बेहतर शिक्षक भी थे। राज्यसभा सदस्य रहते हुए कई प्राथमिक शालाओं में बच्चों की अक्सर कक्षाएं लेते थे। बच्चों में घुल-मिल जाना, अलग ही अंदाज में पढ़ाने की कला से उन्हें 'अनिल गुरुजी' भी कहा जाने लगा। उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में 5 जुलाई, 2016 को शपथ ली थी। बेहद अहम जिम्मेदारी को निभाते साल भर भी पूरे नहीं हुए कि काल ने उन्हें हमसे छीन लिया।अनिल माधव दवे को 'जावली' रणनीतिकार कहा जाता था। अपने कौशल व दूरदर्शिता से मध्यप्रदेश के छह-छह चुनावों में उन्होंने प्रबंधन क्षमता और कार्यकुशलता का लोहा मनवाया। सभी को पता है कि वह अनिल दवे ही थे, जिन्होंने दिग्विजय सिंह की सरकार को उखाड़ फेंकने की मुहिम का न केवल आगाज किया था, बल्कि कर भी दिखाया।मप्र में कांग्रेस को सत्ता से रुखसत करना और भाजपा को सरकार में रहते हुए दो-दो बार सत्ता में लाने का विलक्षण करिश्मा इसी करिश्माई शख्सियत ने कर दिखाया था। 

वर्ष 2003 में 'जावली' से निकला 'मिस्टर बंटाधार' का जुमला कांग्रेस के लिए परेशानी का सबक बन गया।पहले विभाग प्रचारक रहते हुए 1999 तक, परदे के पीछे रहने वाले अनिल दवे, उमा भारती के भोपाल से लोकसभा चुनाव के वक्त सुर्खियों में आए। समय के साथ भाजपा की अंदरूनी राजनीति के समीकरण भी बदलते रहे। जब भी चुनाव आता चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा, वो ही पार्टी की जरूरत बनकर उभरते और सरकार बनते ही फिर गुमनामी में खो जाते। पहली बार नरेंद्र मोदी ने पद और सम्मान देकर उन्हें आगे बढ़ाया। वहां भी उन्होंने बहुत कम समय में अपनी अमिट छाप छोड़ दुनिया को अलविदा कह दिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि अपनी योग्यता, कर्मठता और जीवटता के चलते एक खास मुकाम के बावजूद बेहद सादगी पसंद दवे के लिए बेहतर श्रद्धांजलि उनकी पुस्तक 'शिवाजी और सुराज' की पंक्तियां ही होंगी, जिसमें प्रतिमा निर्माण की मनोदशा और शब्द रूपांतरण के मनोगत स्वरूप का जिक्र करते हुए उन्होंने कहीं स्वयं पर ही तो नहीं लिखा- "धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, व्यावसायिक समाज में किसी भी क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले हर उस नायक की एक प्रतिमा होती है, जो उस व्यक्ति के विचार, व्यवहार, आचरण, निर्णयों तथा उसके प्रति समाज के मन में उपजी अवधारणाओं के कारण बनती हैं।"पर्यावरण पर करने को अभी बहुत काम बाकी है। उनकी अनुपस्थिति हमेशा खलेगी।

 

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