हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की वार्षिक सीनेट की बैठक की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय में हो रही शोध को धरातल पर उतारना होगा। उन्होंने निर्देश दिये कि पी.एच.डी. कर रहे छात्रों को तभी उपाधि प्रदान की जाए जब वे अपना शोध खेत में साबित कर दें। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय शोध के लिए भूमि उपलब्ध करवाएगा।उन्होंने कहा कि किसान की आय दुगना करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कृषि और पशुपालन विभाग संकल्प लें और इसके लिए संयुक्त रूप से रणनीति बनायें और उसे अमलीजामा पहनायें। उन्होंने कहा कि शोध अलमारियों की शोभा नहीं बल्कि खेत के उत्पादन की वृद्धि के तौर पर दिखाई देना चाहिये।उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन को निर्देश दिये कि सीनेट की सालाना बैठक का आयोजन वार्षिक से छः मासिक कर दिया जाये ताकि विश्वविद्यालय की जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सके।राज्यपाल ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय की अनुपयोगी 100 हैक्टेयर से अधिक भूमि को कृषि योग्य भूमि बनाया जाये।
बैठक में जानकारी दी गई कि कृषि विश्वविद्यालय की लगभग 70 हैक्टेयर बंजर भूमि के लिये 10 करोड़ की परियोजना प्रस्तावित की गई है, जहां पर प्रमाणित बीज तैयार किये जायेंगे। यह बीज किसानों को उपलब्ध करवाये जायेंगे और इससे एक वर्ष में 2 करोड़ की आय भी होगी।उन्होंने कहा कि गुरूकुल में देसी नस्ल की गऊएं 25 लीटर तक दूध दे रही हैं तथा यह गऊंऐं उच्च गुणवत्ता का दूध दे रही हैं। उन्होंने कहा कि रेड सिंन्धी, साहीवाल तथा थारपारकर प्रदेश में दूध क्रांति लाने में सक्षम हैं।उन्होने कहा कि प्रदेश में परम्परागत खेती से हटकर मिश्रित खेती करने की आवश्यकता है ताकि किसान को ज्यादा आय प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि भू-जल बढ़ाने के लिये ज्यादा चैक डैम बनाने की आवश्यकता है। इससे कृषि योग्य खेती को और प्रसार मिलेगा।इस अवसर पर प्रधान सचिव पशुपालन विभाग ओंकार शर्मा ने बताया कि आवारा पशुओं की समस्या से निबटने के लिये पशुओं की टैगिंग की जा रही है तथा आवारा पशु छोड़ने वालों पर जुर्माना किये जाने का भी प्रावधान है।इस अवसर पर कुलपति प्रो. अशोक सरयाल ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों एवं अन्य विकासात्मक गतिविधियों के बारे में जानकारी दी तथा बताया कि विश्वविद्यालय में ग्यारह नई किस्में जारी की।इस अवसर पर कुल सचिव सतीश शर्मा भी उपस्थित थे।