केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम ने कहा है कि एशिया की जनजातियों को भलीभांति जानने की जरूरत शुरू से ही महसूस की जाती रही है। उन्होंने जनजातीय अध्ययन व अनुसंधान पर जोर दिया। शिलांग में गुरुवार को 'एशिया की जनजातियों को भलीभांति जाने' विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए मंत्री ने कहा कि इस संगोष्ठी से जनजातीय अध्ययन एवं अनुसंधान को मजबूत करने में सहायक सर्वोत्तम प्रथाओं और रणनीतियों को एकजुट करने में मदद मिलेगी।मंत्री ने कहा, "एशिया की जनजातियों के लिए विशिष्ट लोगों के रूप में अपने अधिकारों को मान्यता देने की वकालत करना एक मुश्किल कार्य है। अनेक जनजातियों को अपना अस्तित्व बरकरार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और इस प्रक्रिया में अनेक बोलियां भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं।" मंत्री ने उम्मीद जताई कि इस संगोष्ठी से समुदाय के लोगों को और ज्यादा सूचनाएं हासिल करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही एशिया की जनजातियों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में भी सहायता मिलेगी।
उन्होंने इस अवसर पर एक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें शिलांग के सिनॉद कॉलेज में वर्ष 2015 में आयोजित की गई राष्ट्रीय संगोष्ठी से जुड़ी सामग्री भी शामिल है। संवाददाताओं के साथ बातचीत के दौरान असम की छह जनजातियों को एसटी का दर्जा देने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि गृह मंत्रालय में विशेष सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति इस मसले पर गौर कर रही है। उन्होंने कहा कि इस समिति की रपट आने के बाद ही सरकार इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि यह रपट अतिशीघ्र पेश किए जाने की आशा है।दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन शिलांग स्थित सिनॉद कॉलेज द्वारा पीए संगमा फाउंडेशन के सहयोग से किया गया। विश्व के विभिन्न हिस्सों के विद्वानों ने इस संगोष्ठी में हिस्सा लिया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण पश्चिम बंगाल के बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफसर स्मृति कुमार सरकार ने दिया। उनका भाषण 'पूर्वोत्तर भारत के आरंभिक आदिवासी समाज' पर केंद्रित था।