आम आदमी पार्टी (आप) ने पंजाब सरकार को कृषि और किसान विरोधी सरकार करार दिया है। जिसका किसानों के ज्वंलत मुद्दों के साथ कोई सरोकार नहीं है।शुक्रवार को ‘आप’ द्वारा जारी संयुक्त बयान में पार्टी के किसान विंग के प्रधान गुरविंदर सिंह कंग और चुनावी घोषणा पत्र कमेटी के मुखी कंवर संधू ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल यदि थोड़ा-बहुत भी किसान हितैषी होते तो किसानों के लिये कर्ज निपटारा कानून को वास्तविक समौदे के अनुरूप ही पारित करके तुरंत लागू किया होता। लेकिन असलियत में किसान विरोधी इरादे रखने वाले बादल ने प्रभावशाली वर्ग के साथ सौदेबाजी करके कर्ज निपटारा बिल पर न केवल कमजोर कानून बनाया बल्कि उस कमजोर कानून को लागू करने भी कोई इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। स्पष्ट है कि बादल कृषि और किसान मसलों पर न पहले संजीदा थे और न ही अब संजीदा हैं। वरना जो कदम पंजाब सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं उन्हें उठाने के लिये 9 साल से ज्यादा का समय न लगता।
कंवर संधू ने कहा कि चुनाव के मुददेनजर प्रकाश सिंह बादल किसानों का वोट ऐंठने के लिये कुछेक इरादे बांधते हैं और झूठा प्रचार करते हैं, लेकिन पैसे वाली लॉबी के सामने बेबस साबित हो जाते हैं, क्योंकि पैसा और पॉवर बादल परिवार की जगजाहिर कमजोरी है। किसानों से जुड़ा ‘कर्ज निपटारा कानून’ इसकी ताजा मिसाल है। ठीक इसी तरह पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के साथ धोखा कर चुके हैं। वर्ष 2006 में कांग्रेस सरकार का मुख्यमंत्री रहते हुये कैप्टन अमरिंदर सिंह यदि पैसे वाली लॉबी के सामने न झुककर किसानों के हक में स्टैंड लेते तो दस साल पहले ‘कर्ज निपटारा कानून’ लागू हो जाता, क्योंकि विशेषज्ञों द्वारा ‘कर्ज निपटारा कानून’ संबंधी 2006 में ही प्रभावशाली मसौदा तैयार कर लिया गया था। परंतू ऐन मौके पर कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों को दगा दे गये। कैप्टन अमरिंदर सिंह के पदचिन्हों पर चलते हुये अब प्रकाश सिंह बादल ने किसानों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं।
‘आप’ के किसान नेता गुरविंदर सिंह कंग ने प्रकाश सिंह बादल पर कटाक्ष कसते हुये कहा कि सत्तारूढ़ दलों की किसान विरोधी नीयत और नीतियों कारण कर्ज में डूबे अन्नदाता को आर्थिक संकट से निकालने के लिये प्रकाश सिंह बादल ने न तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली अपनी केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर न तो डा. स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू करवाया और न ही खुद वह कदम उठाये जिनके साथ किसानों का थोड़ा-बहुत कल्याण हो सकता। और तो और तथा-कथित ‘कर्ज निपटारा कानून’ के तहत ट्रिब्यूनल गठित करने की प्रक्रिया बीच ही लटकी पड़ी है और सिफारिशों के अनुसार ब्याज दरें भी निर्धारित नहीं की गई। इस लिये मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता कि वह खुद को ‘किसानों का मसीहा’ कहलवाये।