जिस दिन आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब में प्रायश्चित कर रहे थे, उस दिन नई दिल्ली में एक राजनीतिक ड्रामे की ऐसी शुरुआत हो रही थी जो विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में राजनीतिक धारा को बदल सकती है। मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत होने के बाद तीन महीने से कम समय में नवजात सिंह सिद्धू ने उच्च सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इससे पंजाब का राजनीतिक परिदृश्य एक बार फिर खुल गया है।आम आदमी पार्टी (आप) के एक वरिष्ठ नेता ने हामी भरी है कि सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी में शामिल होने को तैयार हैं। इस पुष्टि और सिद्धू के इस्तीफे ने कई बातों को साफ कर दिया है।सिद्धू स्वयं भाजपा के सांसद थे। उनकी पत्नी भाजपा की विधायक हैं और पंजाब सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी हैं।
पंजाब में सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल और विपक्ष कांग्रेस को चुनाव से पहले कड़ी चुनौती पेश करने वाली आप अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सिद्धू को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकती है।पंजाब को लेकर आप का आत्मविश्वास किसी भ्रम का शिकार नहीं है। पंजाब के मतदाताओं ने ही उसे 2014 के चुनाव में लोकसभा में प्रवेश दिलाया। पार्टी के सभी चार लोकसभा सदस्य पंजाब से हैं जहां लोकसभा की कुल 13 सीटें हैं।सिद्धू अमृतसर से तीन बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। विगत कुछ वर्षो से वे अकाली दल और भाजपा गठबंधन द्वारा हाशिए पर ला दिए गए थे।सिद्धू दंपति पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के आलोचक रहे हैं।सिद्धू एक लोकप्रिय जाट-सिख चेहरा हैं, लेकिन दबंग बादल परिवार से झगड़ा मोल लेने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और सुखबीर के रिश्तेदार विक्रम मजीठिया से उनका वाक युद्ध हुआ था।हाल के महीनों में सिद्धू की आप और कांग्रेस दोनों से बातचीत हुई थी। लेकिन, किसी पक्ष ने न तो इसकी पुष्टि की और न ही खारिज किया था। इस बीच भाजपा ने सिद्धू को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर अटकलों को विराम दे दिया था।
आप की योजना के लिए सिद्धू बिल्कुल उपयुक्त हैं। वाकपटु और एक ईमानदार राजनीतिक नेता के साथ सिद्धू जाट-सिख हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के उनमें सारे गुण हैं।2007 के विधानसभा चुनाव में अकाली के साथ छोटे घटक दल के रूप में सत्ता में आने बाद भाजपा ने पंजाब में खुद का अलग वजूद बनाने का विचार जैसे त्याग दिया है।सिद्धू समेत पंजाब के सभी बड़े नेताओं की भाजपा ने उपेक्षा की। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सिद्धू की सीट से अरुण जेटली को टिकट दे दिया और वे बुरी तरह पराजित हुए।नतीजा है कि उसके पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसका देश तो दूर राज्य में भी कोई वजूद हो।पंजाब में चुनाव के लिए राजनीतिक सरगरमी बढ़ने के साथ हर किसी को पता चल गया है कि अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। भाजपा इसमें कहीं नहीं है।