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अच्छी बारिश से बाढ़ की तबाही का अंदेशा भी : सुधीर जैन

सुधीर जैन
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नई दिल्ली , 13 Jun 2016

मानसून ने दस्तक दे दी है और मौसम विभाग ने अच्छी बारिश का अनुमान भी लगाया है। लेकिन इस बार सामान्य से नौ फीसद अधिक वर्षा के अनुमान के बावजूद हम देश में सुखद स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। वैज्ञानिक तर्क यह है कि बारिश के पानी को रोक कर रखने का प्रबंध हम नहीं कर पाए हैं। लिहाजा इस बार बाढ़ से भारी तबाही का अंदेशा है। यह कहना है पर्यावरणविद व सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) के पूर्व फैलो सुधीर जैन का।सुधीर ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, "इस बार बाढ़ का अंदेशा देश में जल प्रबंधन की पोल खोल देगा। पिछले दो साल से सूखे की मार के बावजूद सरकार ने कोई सबक नहीं लिए हैं। खासतौर पर बुंदेलखंड के हालात देखकर यह बात बिल्कुल साफ है। सूखा प्रभावित 12 राज्यों में भी जल प्रबंधन के लिए संजीदगी से होता हुआ कुछ भी देखने में नहीं आया।"बुंदेलखंड के चंदेलकालीन जल विज्ञान पर 1988 और 1989 में शोध कर चुके सुधीर ने कहा, "बुंदेलखंड में जब हालात बद से बदतर हो गए, तब उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार ने सारा समय गंवाने के बाद जल संचयन अभियान का प्रचार शुरू किया। 

देर से शुरू इस अभियान को बारिश शुरू होते ही बंद करना पड़ेगा। यानी बारिश के पानी को आगे के आठ महीनों तक रोक कर हम नहीं रख पाएंगे। यह बात सर्वाधिक बेहाल सिर्फ बुंदेलखंड पर ही नहीं, सभी प्रदेशों पर लागू होती है।"सुधीर बुंदेलखंड की पेयजल समस्या पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्य भी हैं।उल्लेखनीय है कि सौ साल की औसत वर्षा के अनुसार, देश में चार हजार घन किलोमीटर पानी बरसता है। पिछले साल देश में 86 फीसद बारिश हुई थी, और इस साल 109 फीसद बारिश का अनुमान है। यानी पिछले साल की तुलना में इस बार 27 फीसद ज्यादा बारिश होगी। यानी इस बार औसत से 360 घन किलोमीटर पानी ज्यादा बरसेगा।इस आंकड़े पर सुधीर ने कहा, "इसमें मौसम विभाग के अनुमान की वैज्ञानिक प्रणाली की चार फीसद गलती भी जोड़ लीजिए। यानी बारिश 113 फीसद भी हो सकती है। तब हमें औसत से 520 घन किलोमीटर ज्यादा पानी का संकट झेलना पड़ेगा, जो देश में बाढ़ से अभूतपूर्व तबाही की चेतावनी है।"जल प्रबंधन में देश के बांधों की भूमिका के सवाल पर उन्होंने कहा, "आजादी के शुरुआती दशकों में बने बड़े-मझोले बांधों की हालत आज ठीक नहीं है। ज्यादातर बांध निर्धारित जीवन काल पूरा करने के कगार पर हैं। उनकी जल भरण क्षमता घटती जा रही है। कई बांधों के डैड स्टोरेज में पानी की जगह मिट्टी भर गई है। यानी बारिश का पानी रोककर रखने की हमारी क्षमता घटती जा रही है। जबकि हर साल दो करोड़ की रफ्तार से बढ़ रही आबादी के लिए अतिरिक्त जल संचयन की जरूरत है।"देश में कुल जल उपलब्धता का हिसाब लगाएं तो उपलब्ध कुल 4000 हजार घन किलोमीटर पानी में सिर्फ आठ सौ घन किलोमीटर पानी ही उपयोग के लिए है। इसमें से भी सिर्फ 200 घन किलोमीटर पानी संचयन करने का प्रबंध है। 

जबकि पिछले दो साल का अनुभव बता रहा है कि लगभग इतने ही और पानी को बारिश के दौरान रोककर रखने का इंतजाम करने की जरूरत है। पिछले दो साल में देश की आबादी चार करोड़ बढ़ी है। आज आबादी 130 करोड़ हो गई है। बड़े पदों पर बैठे अफसर, इंजीनियर देश की आबादी 125 करोड़ बताते पाए जाते हैं, जबकि यह आंकड़ा दो साल पहले का है। जनसंख्या के अनुमान में पांच करोड़ लोगों को छोड़कर चलेंगे तो योजनाएं और विश्वसनीय कार्यक्रम कैसे बनेंगे?इस सवाल पर इनोवेटिव इंडियन फाउंडेशन के अध्यक्ष सुधीर ने कहा, "केंद्र सरकार ने तीस साल पहले ही 2025 के लिए विजन डॉक्यूमेंट बनाया था। तीस साल पहले ही आज के जल संकट का अनुमान लगाया गया था। 1990 के दशक तक जल प्रबंधन की सरकारी चिंता दिखती भी थी। उसके बाद राजनीतिक कारणों से बांधों का विरोध ज्यादा बढ़ गया। पारंपरिक उपायों का प्रचार तो होता रहा, लेकिन देश के 15 लाख पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार की कोई ठोस योजना नहीं बनी। आज तो ये पुराने तालाब राजस्व रिकाडरें में सिकुड़ने शुरू हो गए हैं। लेकिन मौजूदा सरकार अभी भी चेतती नहीं दिख रही है।"सुधीर ने आगे कहा, "हमें पूरे देश में बुंदेलखंड जैसे हालात का अंदेशा भांप लेना चाहिए। जल संकट का यह समय देश के प्रबंधन प्रौद्योगिकी के मेधावी युवाओं को नवोन्मेषी उपायों पर विमर्श में लगाने का है। केंद्रीय जल आयोग को तुरंत जल संकट की स्थिति को समझने की जरूरत है। जल प्रबंधन के काम को देश की प्राथमिकता में सबसे उपर लाने का समय आ गया है। वरना इसके पूरे आसार हैं कि इस साल की सामान्य से नौ फीसद से ज्यादा बारिश के बावजूद इसी वित्तीय वर्ष में फिर सूखे का सामना करना पड़े।"

 

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