करीब दस साल पहले मायावती के 'सोशल इंजीनियरिंग' ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करने में मदद की थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कोशिश कर रही है कि देश के सर्वाधिक आबादी वाले और राजनीतिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अपनी खोई प्रतिष्ठा को फिर से प्राप्त करने के लिए उसी मॉडल का अनुकरण किया जाए। नरेंद्र मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने आईएएनएस से कहा, "हम समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल के खिलाफ जनता में जबर्दस्त लहर महसूस कर रहे हैं। मायावती के ब्राह्मण समर्थन में भी बहुत कमी आई है।
हमें उस खालीपन को भर देने की जरूरत है। मंत्री ने अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के एजेंडे की रूपरेखा पेश करते हुए कहा कि पिछड़ा वर्ग में शामिल कोइरी जाति के केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने को इसी नजरिए से देखने की जरूरत है। लक्ष्मीकांत वाजपेयी की जगह मौर्य को अध्यक्ष पद के लिए चुनने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी ने अहम भूमिका निभाई थी। अच्छे जातीय समीकरण के अलावा पार्टी भाजपा के विकास से जुड़े घोषणापत्र और मोदी की अपील पर भी भरोसा कर रही है। मोदी खुद अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) से हैं और वाराणसी से सांसद हैं।
भाजपा राम मंदिर मुद्दे के लटके होने पर भी भरोसा कर रही है, लेकिन इस मुद्दे पर सावधानी से काम लेना चाहती है। भाजपा नेता ने कहा, "हम गधेल, काकुश्ता, जोगी, डोमरी, लोध और नाई जैसी छोटी जातियों के समूहों में पर्याप्त पैठ की उम्मीद कर रहे हैं।" उनका मानना है कि ये समूह परंपरागत रूप से विकास से वंचित रहे हैं। इसलिए ये जातियां भाजपा को एक ऐसी पार्टी के रूप में देख रही हैं जो पहले हुई गलतियों को सही कर देगी। मंत्री ने कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यादव के अलावा अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) मोदी और भाजपा के साथ था। इस वर्ग को भाजपा के साथ बनाए रखना है।
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कोई गठबंधन नहीं किया था। एक बहुत छोटे स्तर का तालमेल अपना दल के साथ था। यह पार्टी कुर्मी समुदाय के प्रतिनिधित्व का दावा करती है। तब उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में भाजपा 71 पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी। अपना दल को भी दो सीटों पर सफलता मिली थी।राजनाथ सिंह सवर्ण हैं और राजपूत हैं। वर्ष 2002 के मार्च तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उससे पहले पार्टी के लोध नेता कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। कल्याण सिंह का तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मतभेद हो गया। उन्होंने भाजपा छोड़ दी। इससे भाजपा पर असर पड़ा।
राजनाथ सिंह के शासनकाल में ब्राह्मण समुदाय ने भाजपा से दूरी बना ली। भाजपा की रणनीति यह है कि वह घर-घर जाकर दलितों और ईबीसी मतदाताओं को यह बताते हुए प्रचार करेगी कि मोदी ओबीसी के तहत आने वाली जाति तेली समाज से हैं। इससे मायावती की तरह पहले एक सतरंगा गठबंधन तैयार करने में मदद मिलेगी। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पहले ही मुख्य रूप से किसानों और ग्रामीण भारत तक दलित नेता बी. आर. अंबेडकर के नाम पर पहुंच बना रही है। बिहार के दलित नेता व खाद्य मंत्री राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी वर्ष 2017 के चुनाव के लिए भाजपा के रथ पर सवार होने की इच्छुक है।
भाजपा के चुनाव प्रबंधक मुसलमानों के बीच पैठ बनाने के लिए भी बहुत अधिक काम कर रहे हैं। मुसलमान आम तौर पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का या मायवती की बसपा का समर्थन करते हैं। भाजपा सांसद जगदंबिका पाल का कहना है, "यूपी के मतदाता बहुत 'स्मार्ट' हैं। मुस्लिम सबसे ज्यादा 'स्मार्ट' हैं। वे रणनीतिक मतदान करते हैं और उस मजबूत प्रत्याशी का समर्थन करते हैं जो भाजपा को हरा सके। इसे संभालना होगा।"भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में जीत उतनी आसान नहीं है। वर्ष 2012 के चुनाव में भाजपा 403 सदस्यीय विधानसभा में मात्र 47 सीट जीतकर तीसरे स्थान पर रही थी। तब सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को 224 सीटें और बसपा को 80 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को 28 सीट मिली थीं।