विगत पांच दशकों में फिल्मी जगत से जुड़ी पांच हस्तियों के मुख्यमंत्री बनने से पता चलता है कि तमिलनाडु में 'स्टारडम' के जरिए ही सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा जा सकता है। पांच मुख्यमंत्रियों में सी.एन.अन्नादुरई, एम. करुणानिधि, एम. जी. रामचन्द्रन, जानकी रामचंद्रन और जे.जयललिता की जड़ें फिल्म जगत में थीं। इनके अलावा और भी फिल्मी सितारे हैं जिन्होंने राजनीति में हाथ आजमाए। खास बात यह है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के तीन दावेदार, डीएमके प्रमुख करुणानिधि, एआईएडीएमके की जयललिता और डीएमडीके के संस्थापक विजयकांत मायानगरी से ही आते हैं।इन लोगों के अलावा और भी हैं जो नेता से अभिनेता बने थे।
इनमें शिवाजी गणेशन, आर. शरत कुमार, टी. राजेंद्र और एम.कार्तिक शामिल हैं। अन्नादुरई और करुणानिधि का संबंध फिल्मी पटकथा और संवाद लेखन से था, जबकि एमजीआर पहले व्यक्ति थे जो अभिनेता से नेता बने। एडीएमके के संस्थापक एमजीआर ने दुनिया को दिखा दिया कि स्टार शक्ति से भी मुख्यमंत्री बना जा सकता है। बाद में उनकी पार्टी एआईएडीएमके बन गई।एम.जी.आर. 1972 में एडीएमके पार्टी बनाने से पहले करुणानिधि के साथ थे। करुणानिधि ने उनकी ख्याति का इस्तेमाल राजनीतिक सत्ता पर कब्जा जमाने में किया। लेकिन, जब करुणानिधि ने अपने बड़े पुत्र एम.के. मुथु को जोरशोर से आगे बढ़ाना शुरू किया तो एमजीआर ने इसका विरोध किया। इस पर उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। इसके बाद एमजीआर ने नई पार्टी एआईएडीएमके बनाई।
शराब और सिगरेट से दूर तथा फिल्मों में गरीबों की आवाज उठाने वाले एमजीआर लोगों के दुलारे हो गए। उन्होंने 1977 में न केवल डीएमके को सत्ता से बाहर किया, बल्कि 1987 में अपनी मृत्यु तक उसे राजनीतिक बियाबान में ढकेले रखा।एमजीआर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन और जयललिता के बीच सत्ता संघर्ष में पार्टी दो फाड़ हो गई। लेकिन, 1991 में जयललिता के नेतृत्व में पार्टी एकजुट हो गई। तब से जयललिता एआईएडीएमके की निर्विवाद नेता हैं।
इसी तरह विजयकांत (63) ने भी एआईएडीएमके और डीएमके के विकल्प के रूप में 2005 में अपनी नई पार्टी डीएमडीके बनाई। चुनावों में उनके वोट प्रतिशत को देख कर डीएमके और भाजपा उनसे हाथ मिलाना चाहती थीं। लेकिन, उन्होंने पीडब्ल्यूएफ के साथ समझौता किया है।फिल्मों में वह नम्बर वन तो नहीं रहे, लेकिन पर्दे पर उन्होंने आतंकवादियों और असामाजिक तत्वों का सफाया करने वाले की छवि बनाई। अब सवाल यह है कि क्या विजयकांत राजनीति में भी अपने प्रतिद्वंद्वियों को शिकस्त दे पाएंगे?