केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा है कि गंगा से जुड़ा वानिकीकरण कार्यक्रम समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ आज नई दिल्ली में गंगा से जुड़े वानिकीकरण कार्यक्रम पर विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) जारी करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि अनंत समय से गंगा नदी की वनस्पतियों में इसके पानी को स्वच्छ रखने की चिकित्सकीय शक्ति रही है। इसे ‘’ब्रह्मद्रव्य’’ की संज्ञा देते हुए सुश्री भारती ने कहा कि वृक्षारोपण का यह कार्यक्रम उत्तराखंड से प्रारंभ किया जाएगा। जल संसाधन मंत्री का मानना था कि गंगा नदी के साथ साथ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण नदी के जलीय जीवन को भी समृद्ध बनाने में मदद करेगा। इस विस्तृत रिपोर्ट को तैयार करने में देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के विशेषज्ञों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय शीघ्र ही इस रिपोर्ट का क्रियान्वयन करेगा।केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने गंगा को जीवित रखने तथा इसे प्रदूषण से मुक्त करने के सरकार की प्रतिबद्धता को ‘ पूर्ण एवं अंतिम ‘ करार देते हुए कहा कि वनों की स्थापना नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में की जानी चाहिए जिससे कि वनों तथा जल के बीच एक जीवंत संबंध को बरकरार रखा जा सके। उन्होंने कहा कि वृक्ष एवं पौधे मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं तथा भूजल के स्तर को भी बढ़ाते हैं।
मंत्री महोदय ने कहा कि उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में एक तिहाई की कमी आ गई है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि नदी में अपशिष्टों का प्रवाह काफी कुछ बंद हो गया है, जोकि एक बड़ी सफलता है। उन्होंने कहा कि नई बालू खनन नीति तैयार करने के मामले में भी काफी प्रगति हासिल की गई है।इससे पूर्व, देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) की निदेशक डा. सविता ने डीपीआर के मुख्य तत्वों को रेखांकित करते हुए एक विस्तृत प्रस्तुतिकरण पेश किया। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री प्रोफेसर सांवर लाल जाट, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में सचिव श्री अशोक लवासा, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय में सचिव श्री शशि शेखर एवं भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक डा. अश्विनी कुमार ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखें।इस अवसर पर एक दिवसीय कार्यशाला का भी आयोजन किया गया। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड एवं पश्चिमी बंगाल के वरिष्ठ अधिकारियों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, इको कार्यबल, आईटीबीपी, नेहरू युवा केन्द्र संगठन एवं सिविल सोसायटी संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यशाला में हिस्सा लिया।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में गंगा नदी के संदर्भ में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के सभी हितधारकों के साथ व्यापक सलाह-मशविरा किया गया है और इसमें वैज्ञानिक कार्यपद्धति को शामिल किया गया है। इसमें देश के भीतर गंगा नदी थाले के बहुत विशाल क्षेत्र में से पूर्व-परिसीमित 83,946 वर्ग किलोमीटर गंगा क्षेत्र के आकाशीय विश्लेषण और मॉडलिंग के लिए रिमोट सेंसिंग और जीआईएस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल शामिल है। एफआरआई ने गंगा के किनारे के प्राकृतिक, कृषि और शहरी क्षेत्रों में प्रस्तावित वन रोपण और अन्य पारंपरिक संरक्षण विधियों पर जानकारी जुटाने के लिए फील्ड डाटा के प्रारूप के चार सेट तैयार किए हैं। गंगा नदी के किनारे के पांच राज्यों से एफआरआई ने आठ हजार डाटा शीट्स प्राप्त की हैं। संस्थान ने संभावित वृक्षारोपण और ट्रीटमेंट मॉडलों से संबंधित आंकड़ों के मिलान, विश्लेषण और रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक सॉफ्टवेयर भी विकसित किया है।विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में मृदा और जल संरक्षण, नदी किनारे के वन्य जीव प्रबंधन, दलदली भूमि का प्रबंधन जैसे संरक्षण हस्तक्षेपों के अलावा कानूनी हस्तक्षेपों, संयुक्त शोध, निगरानी और मूल्यांकन जैसी सहायक गतिविधियों तथा जन जागरण अभियानों की परिकल्पना की गई है।गंगा के किनारे स्थित पांचों राज्यों के लिए 40 अलग-अलग वृक्षारोपण और ट्रीटमेंट मॉडल्स का चयन किया गया है। यह परियोजना पांचों राज्यों के वन विभागों द्वारा पहले चरण में पांच साल (2016-2021) की अवधि में कार्यान्वित की जाएगी।इस परियोजना में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के दुर्गम भौगोलिक क्षेत्रों में पेड़-पौधे उगाने के लिए इको टास्क फोर्स की दो बटालियनों की सक्रिय भागीदारी की परिकल्पना की गई है। इस में पांचों राज्यों के वन विभागों द्वारा निगरानी और जागरूकता अभियानों सहित विभिन्न प्रस्तावित कार्यकलापों के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी), नेहरू युवा केंद्र संगठन और सामाजिक संगठनों को भी शामिल किया जाएगा।