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मोदी और नीतीश का मिलन, 'प्रेशर पलिटिक्स'?

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5 Dariya News

पटना , 15 Mar 2016

बिहार में 'विकास के पुल' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रिश्तों की कड़वाहट को भले दूर किया हो, मगर बिहार में सियासी संभावनाओं को लेकर चर्चा तेज हो गई है। सियासी गलियों में वक्त के पैमाने पर इन रिश्तों को तौला जा रहा है, वहीं इसे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर दबाव की राजनीति भी कही जा रही है। वैसे कारण जो हो परंतु मोदी और नीतीश के बीच जमी बर्फ को पिघलना बिहार के विकास के लिए सही संकेत माने जा रहे हैं। 

पिछले कुछ दिनों की नीतीश की गतिविधियों को देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि नीतीश की चाहत है कि देश के अन्य हिस्सों में जनता दल (युनाइटेड) के कद को बढ़ाकर अपनी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने की है तथा केंद्र के साथ अच्छे रिश्ते रखकर बिहार में विकास की गति को रफ्तार देने की है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि कुछ मुद्दों को लेकर नीतीश बिहार में हाल के दिनों में बहुत दबाव में थे। नीतीश-मोदी की दोस्ती की नई परिभाषा 'प्रेशर पलिटिक्स' के लिए है। 

राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि नीतीश और मोदी का मिलन दोनों नेताओं के दिलों में विकास के प्रति तड़प का प्रकटीकरण है। उन्होंने कहा, "दोनों नेताओं की पहचान विकास है और दोनों नेता बिहार का विकास चाहते हैं, जिसके लिए केंद्र का सहयोग जरूरी है।"किशोर ने हालांकि यह भी माना कि मोदी और नीतीश की दोस्ती के मायने नीतीश के नजरिए से राजद पर लगाम लगाना और केंद्र का सहयोग लेना ही हो सकता है। 

गौरतलब है कि मोदी के नाम पर ही नीतीश ने 2013 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए थे। सियासत में मोदी के धुर विरोधी कांग्रेस व राजद से नीतीश ने 2015 के विधानसभा चुनाव में हाथ मिला लिया। दोनों ने एक-दूसरे को मात देने के लिए हर हथकंडे को अपनाया। जिसमें नीतीश सफल रहे। पिछले वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पहली बार बिहार दौरे पर आए प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज में नीतीश की तारीफ की। 

उसके बाद देश में फिर सियासत की नई पौध पर चर्चा होने लगी है। बिहार के बाहर अपने पांव को फैलाने के लिए नीतीश पहले से ही नए साथी की तलाश कर रहे हैं। पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह मोदी-नीतीश के मंच साझा को 'सहकारी संघवाद' कहते हैं। वे कहते हैं कि यह शुभ संकेत है। उन्होंने कहा "नीतीश राजनीति में प्रत्येक विकल्प खुला रखने चाहते हैं। ऐसे में वे कभी भी केंद्र के विरोधी के रूप में अपनी छाप नहीं रखना चाहते।" 

मुख्यमंत्री की नजर 2019 के चुनाव में तीसरे मोर्चे के संभावित प्रधानमंत्री के उम्मीदवार पर भी है। 

वैसे मोदी और नीतीश के मिलन पर राजद के नेता जहां बैकफुट पर नजर आ रहे हैं, वहीं भाजपा और जद (यू) के नेताओं के भी सुर बदले हुए हैं। जदयू नेता और प्रवक्ता नीरज कुमार सिंह ने कहा कि अब उनकी पार्टी केंद्र से टकराव के बजाय सहयोग की नीति पर चलना चाहेगी, जिससे बिहार के विकास को गति दी जा सके। भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन भी कहते हैं कि नीतीश की छवि सुशासन की रही है। ऐसे में केंद्र सरकार भी बिहार का विकास चाहती है। बिहार के विकास पर प्रधानमंत्री किसी भी तरह की राजनीति नहीं चाहते। 

इधर, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी भी मोदी और नीतीश की मित्रता को बिहार के लिए सुखद बताया है। उन्होंने कहा कि काफी दिनों से बिहार और केंद्र में एक पार्टी की सरकार नहीं रही है। ऐसे में अगर मित्रता की बात हो रही है तो काफी सही है। उल्लेखनीय है कि शनिवार को प्रधानमंत्री ने बिहार दौरे के क्रम रेलवे के तीन पुलों का शिलान्यास और उद्घाटन कार्यक्रम में न केवल नीतीश कुमार की तारीफ की थी, बल्कि उनसे सहयोग की अपेक्षा की बात की थी। इधर, प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करते हुए नीतीश ने भी प्रधानमंत्री को बार-बार बिहार आने का निवेदन करते हुए उनकी तारीफ की थी। 

 

Tags: Election 2016

 

 

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