5 Dariya News

महाराष्ट्र : सिंचाई योजना से किसानों को नहीं लाभ

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26-Jan-2016

महाराष्ट्र के केंद्रीय मराठवाड़ा क्षेत्र के किसान जयराम जाधव से मिलकर आपको यह महसूस नहीं होगा कि देश की दूसरी सबसे बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था में किसी तरह का संकट है। जबकि इसी क्षेत्र में इस कदर सूखा पड़ा है कि इसे सदी का सबसे बड़ा सूखा कहा जा सकता है। क्षेत्र में लगातार दो साल कम बारिश के बाद भी 35 वर्षीय जाधव के कुएं में इतना पानी है कि वह रोजाना अपने 20 एकड़ खेत में करीब तीन घंटे तक पानी सींच सकता है, लेकिन गत वर्ष वह सिर्फ एक घंटे ही ऐसा कर पाया था।दरअसल, महराष्ट्र सरकार के जलयुक्त शिवर (खेत) अभियान के तहत बीड़ जिले में स्थित जाधव के पंढारवाड़ी गांव से होकर गुजरने वाली जलधाराओं को मानसून से पहले चौड़ा किया गया और गाद की सफाई कर उसे गहरा किया गया था। 

जाधव का खेत ऐसी ही एक जलधारा के पास स्थित है, जिसके कारण उसके कुएं में अधिक पानी जमा हुआ है।संयोग से जाधव एक संपन्न किसान हैं। उनके पास बड़ा खेत है, जबकि कृषि जनगणना के मुताबिक, राज्य में किसानों के पास औसतन 1.44 एकड़ खेत है। वह भी दो दशक पहले के औसत 1.86 एकड़ से कम है।राज्य में पांच एकड़ से कम खेत वाले छोटे किसानों का अनुपात 79 फीसदी है, जो 1995 में 70 फीसदी था।सरकार के जलयुक्त शिवर अभियान में 2019 तक राज्य को सूखा मुक्त बनान का लक्ष्य रखा गया है। इसका फायदा हालांकि संपन्न किसानों को ही मिला है।अभियान के प्रथम चरण के काम को देखने से पता चलता है कि इसमें इस जलसंभरण क्षेत्र के जल चक्र का ध्यान नहीं रखा गया है और अभियान के तहत बनाए गए बांधों और अन्य कार्यो का फायदा छोटे किसानों को नहीं मिला है, जिनकी संख्या अधिक है।

अभियान का मकसद 2019 तक राज्य के सूखा पीड़ित 22 जिले के 40 हजार गांवों में से 19,059 को सिंचित करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक अभियान के तहत 1.4 लाख प्रस्तावित जल संभरण परियोजनाओं में से 41 हजार परियोजनाएं एक साल में पूर्ण हुई हैं।उल्लेखनीय है कि छोटे किसानों को जलयुक्त शिवर अभियान की परियोजनाओं की सबसे अधिक जरूरत होती है, जबकि उन्हें इन परियोजनाओं को कोई विशेष लाभ नहीं मिला है।250 घरों वाले एक साधारण गांव में 30-50 किसानों को ही इसका लाभ मिल सका है।आम तौर पर संपन्न किसानों का खेत जल धाराओं के निकट होता है। इसलिए धाराओं को चौड़ा और गहरा करने का लाभ भी उन्हें मिला है। जिन किसानों के कुएं इन धाराओं से दूर हैं, उनके कुएं सूख गए हैं।उत्तरी जिले धुले में जल संरक्षण का शिरपुर मॉडल के कर्ताधर्ता सुरेश खानपुरकर ने कहा, "धाराओं को चौड़ा और गहरा करने की जरूरत तो है। लेकिन यह काम धाराओं के उद्गम से आखिरी सिरे, जहां वह नदी से मिलती है, वहां तक करने की जरूरत है।"

अभिषेक वाघमारे

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)