5 Dariya News

भाजपा बिहार की हार समझ पाएगी?

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नई दिल्ली 08-Nov-2015

बिहार विधानसभा चुनाव पर देश ही नहीं, दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं। दुनिया की नजरें भारत में घटने वाली हर घटना पर टिकी हुई हैं। भारत दुनिया में सर्वाधिक तेजी से विकासित होती अर्थव्यवस्था है। यहां घटने वाली हर घटना विकास की रफ्तार के लिए मायने रखती है। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और जद (यू), राजद और कांग्रेस को मिलाकर बने महागठबंधन ने दो-तिहाई बहुमत से जीत दर्ज कराई है। गठबंधन ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार के गठन की घोषणा भी कर दी है। 

अब बिहार चुनाव पर टिकीं नजरों को इस परिणाम से कितनी ठंढक मिली है, इस बारे में कुछ कह पाना कठिन है, लेकिन यह परिणाम केंद्र में बैठी सरकार, उससे संबंधित दल और उससे जुड़े लोगों के लिए न सिर्फ फौरी संकट है, बल्कि उनके भविष्य के लिए एक बड़े संकट का संकेत भी है।केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की सरकार सत्तारूढ़ होने के बाद मोदी ने देश-दुनिया को जो संकेत दिए और अपने वादों, घोषणाओं से जो वातावरण बनाया था, उससे सभी की उम्मीदें जगी थीं। 

लेकिन दिन बीतने के साथ ही सत्ताधारी दल के कुछ अलग रंग दिखने लगे। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देश में जिस तरह-तरह की मुहिम चलाई गई, और उससे जो वातावरण बना, उस पर सरकार मौन बनी रही है, दुनिया की नजरें उस पर भी टिकी हुई हैं।इस वातावरण से उपजे असंतोष ने बिहार के इस चुनाव परिणाम में मदद की है, वहीं यह चुनाव परिणाम अब दुनिया की नजरों को प्रधानमंत्री मोदी और उनके वादों, घोषणाओं पर निर्णायक नतीजे पर पहुंचने में भी मददगार होगा। 

बिहार का चुनाव परिणाम इस लिहाज से बहुत मायने रखता है, और इसी मायने के कारण प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और आरएसएस किसी भी कीमत पर यह चुनाव जीतना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने वह सबकुछ किया, जिसे नहीं किया जाना चाहिए था। जो अभियान लाभ के लिए चलाए गए, वे उल्टे नुकसानदायक साबित हुए। सवाल अब यह उठता है कि आगे क्या? सवाल बिहार और बिहार के विकास का नहीं है, मोदी और भाजपा के भविष्य का है। उन्होंने देश के सामने तमाम घोषणाएं की हैं, चुनाव से पहले बिहार के लिए भी भारी-भरकम घोषणा की है। 

क्या वह अपनी घोषणाएं पूरी कर पाएंगे?कुछ दिन पहले मोदी के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वैश्विक आर्थिक हालात खराब होने के कारण विनिवेश में दिक्कतें आ रही हैं। यानी उन्हें देश में जिस धनागम की उम्मीद थी, नहीं आ पा रहा है।आर्थिक अनुसंधान एवं विश्लेषण की संस्था, मूडीज एनलिटिक्स ने भी अपनी एक रपट में 30 अक्टूबर को कहा था कि भारत में बने राजनीतिक वातावरण के कारण इस तरह के संकेत हैं कि भारत की आर्थिक संभावनाओं को लेकर विदेशी निवेशकों की आशाएं क्षीण हो रही हैं। जबकि, प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री दूसरे देशों से धन लाने के लिए रिकॉर्ड विदेशी यात्राएं कर चुके हैं।

सवाल अब यह उठता है कि इन आर्थिक, राजनीतिक स्थितियों में क्या मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश की जनता से किए अपने घोषित, अघोषित वादे पूरे कर पाएंगे? यदि वादे पूरे नहीं हो पाए तो भाजपा और मोदी का भविष्य क्या होगा? कम से कम भाषणों से तो भविष्य नहीं बनने वाला है।बिहार चुनाव के परिणाम एकसाथ ये सभी प्रश्न खड़े करते हैं, जिसके उत्तर खुद मोदी, भाजपा और उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) को तलाशने हैं। हम अब भी आशावान हैं कि उन्हें सही उत्तर मिल जाए। फिलहाल, बिहार की जनता को उसके उत्तर के लिए साधुवाद।