5 Dariya News

यहां नहीं जलाया जाता रावण का पुतला

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बैजनाथ 22-Oct-2015

13वीं सदी के भगवान शिव के मंदिर के लिए विख्यात हिमाचल प्रदेश के प्राचीन तीर्थ शहर बैजनाथ में देश के अन्य स्थानों की परंपरा के विपरीत रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता। स्थानीय लोगों का मानना है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसके पुतले को जलाने पर भगवान शिव के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। यहां रावण का पुतला न तो बनाया जाता है और न ही जलाया जाता है। बैजनाथ मंदिर के एक पुजारी ने बताया कि यहां के लोग भगवान शिव के प्रति रावण की आस्था से इतने प्रभावित हैं कि वे उसका पुतला नहीं जलाना चाहते। 

पुजारी ने बताया कि रावण ने वर्षो भगवान शिव की तपस्या की और उसने ही शिवलिंग को उस स्थान पर स्थापित किया, जहां आज यह मंदिर है। पुजारी ने बताया कि यहां रामलीला का आयोजन तो होता है लेकिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते।यहां यह मान्यता भी है कि इस शहर में जो भी पुतला जलाने की परंपरा में सम्मिलित होता है, उसकी अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है। इसी शहर में पले-बढ़े पराक्रम सिंह ने बताया कि उसने कभी दशहरा नहीं मनाया। 

कांगड़ा शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर इस शहर के बाजार बंद रहते हैं और दशहरा के अवसर पर लोग पटाखे और मिठाइयां भी नहीं खरीदते।बैजनाथ धाम हिमालय की धौलधर पर्वत श्रृंखला के बीच 4,311 फीट की ऊंचाई पर बसा एक छोटा सा शहर है। माना जाता है कि 1204 ईसवीं में मंदिर के निर्माण के समय से अब तक यहां निर्विघ्न पूजा जारी है। यह मंदिर नगाड़ा शैली और प्रारंभिक मध्यकालीन उत्तर भारतीय वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण है।मंदिर की देखरेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व विभाग के हाथों में है।