5 Dariya News

मुरली मनोहर जोशी की निराशा और गडकरी की आशावादिता

5 Dariya News

15-Jun-2015

भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी बीते दिनों अपनी व्यथा रोक नहीं सके। वह मार्गदर्शक मंडल के सम्मानित सदस्य हैं, लेकिन अपनी ही सरकार को सलाह देने के लिए उन्होंने मीडिया का सहारा लिया। सलाह भी ऐसी जो शिकायत और तोहमत की तरह सार्वजनिक हो रही थी। समय और स्थान के चयन को भी संयोग मानना मुश्किल है। जब सरकार के मंत्री अपनी उपलब्धियां बता रहे हैं, प्रचार के लिए हिंदी, उर्दू में सामग्री तैयार की गई। जोशी ने यही समय सरकार की कमियां गिनाने के लिए किया। स्थान का चयन भी अर्थपूर्ण है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र है। जोशी भारी मन से यह सीट छोड़ने को तैयार हुए थे। मोदी ने भी यहां आकर सबसे पहले गंगा का नाम लिया था। तब उन्होंने कहा था कि 'मैं आया नहीं, मुझे गंगा ने बुलाया है।' समय, स्थान और गंगा को जोड़कर देखें तो सब कुछ आसानी से समझा जा सकता है। मार्गदर्शन के लिए जिस पर तीर चलाए गए, वे लोग बहुत दूर थे। 

मुरली मनोहर जोशी के विचारों से फिलहाल सैद्धांतिक रूप में असहमत नहीं हुआ जा सकता। आज गंगा की स्थिति ऐसी नहीं है, कि उसमें व्यापारिक जहाज चलाए जा सके। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं कि प्रवाह बढ़ाने की योजना ही ना बनाई जाए या नदी परिवहन का सपना देखना ही बंद कर दिया जाए। यह भी सही है कि गंगा की सफाई पर हजारों करोड़ रुपये अब तक खर्च किये जा चुके हैं। 

यह मुद्दा पिछले कुछ दशकों से चल रहा है। लेकिन सुधार की कौन कहे, गंगा की सेहत बिगड़ती ही रही है। पहले गंगा पर खर्च होने वाली रकम में भारी घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। यही कारण था कि सुधार की दिशा में कुछ कदम भी बढ़ना संभव नहीं हुआ। जहाज चलाने के प्रयोग बंद करने पड़े। पहले की सरकरों ने मान लिया कि ऐसा करना संभव नहीं होगा।

एक बार फिर मोदी सरकार ने मंसूबा बनाया है। पहले के मुकाबले एक फर्क है। अब गंगा पर खर्च होने वाली रकम में भ्रष्टाचार पहले की भांति नहीं होगा, यह उम्मीद की जा सकती है। ऐसा नहीं कि केंद्र के सभी मंत्रियों का इतना ईमानदार माना जा सकता है, लेकिन मोदी के नियंत्रण पर लोगों का विश्वास कायम है। आज कई सांसद इस बात को लेकर भी नाराज हैं कि मोदी निधि के भ्रष्टाचार पर भी यथासंभव नकेल कस चुके हैं। कई सांसद इसके चलते बहुत परेशान बताए जाते हैं। कुछ भी हो, इस बार स्थितियां बदली हैं। लेकिन गंगा की जो दशा हे, उसे देखते हुए एक वर्ष में ही सफलता की आशा करना अनुचित है। यह भी सही है कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती को अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। राज्य सरकारों से सहयोग का कारगर रास्ता निकालना होगा। लेकिन अभी से पूरी तरह निराश हो जाना ठीक नहीं है। यह कहना घोर निराशावादी दृष्टिकोण है कि अगले पचास वर्षों तक गंगा साफ नहीं हो सकती। 

जोशी ने एक प्रकार से नमामि गंगे योजना की खिल्ली उड़ाई है। फिर भी उनकी यह बात सही है कि जब तक नदी में निर्बाध जल प्रवाह नहीं होता, गंगा की सफाई दूर का सपना होगा। जिस तरह नदी को छोटे हिस्सों में बांटकर व छोटे जलाशयों में बदल कर सफाई की जा रही है, उससे नदी अगले पचास वर्ष में भी साफ नहीं होगी। गंगा में जहाज चलाना तो दूर, बड़ी नाव भी नहीं चल पायेगी।इस बयान से जाहिर है कि जोशी नमामि गंगे योजना को खारिज कर रहे हैं। उनका यह कहना ठीक है कि पर्याप्त प्रवाह के बिना जहाज नहीं चल सकते लेकिन अभी जहाज चलाने कौन जा रहा है। कोई इतना नासमझ तो नहीं कि उथले पानी या बालू में जहाज उतार देगा। पहले गंगा की सफाई और प्रवाह बनाने के उपाय होंगे, इसके बाद ही जहाज चलाने की बात हो सकती है। यह भी ठीक है कि नदी सतत प्रवाहित होती है, इसे टुकड़ों में बांटकर नहीं देखा जा सकता। 

लेकिन आज के हालात में ऐसा करना अपरिहार्य हो गया है। गंगा सतत प्रवाहित होकर समुद्र में मिलती है। लेकिन विभिन्न शहरों में इसका अलग-अलग रूप देखा जा सकता है। जितना प्रदूषित रूप कानपुर में हैं, उतना मीरजापुर में नहीं है। हरिद्वार में अलग रूप है, बिहार में अलग हैं टुकड़ों में देखना ही पड़ेगा। कानपुर में गंगा की सफाई हेतु सर्वाधिक प्रयास करने होंगे। यह कार्य राज्य सरकार के सहयोग से ही हो सकता है। यह कहा जा सकता है कि जोशी को एक वर्ष में ही इस हद तक निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर लोग निराश की दूसरी वजह तलाशने लगते हैं। उसी को उनकी नाराजगी से जोड़कर देखने लगते हैं। इसके पहले अरुण शौरी और सुब्रामण्यम स्वामी की नराजगी को भी इसी आधार पर देखा गया था। तीनों केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। तीनों में जोशी व शौरी कई वर्ष मंत्री रहे। क्या ये लोग यह नहीं जानते कि एक वर्ष में उस मुद्दे पर कितना काम या सुधार किया जा सकता है, जो दशकों से बदहाली का शिकार हो। दूसरी बात यह कि क्या इनको एक वर्ष में सिर्फ नाकामी और निराशा ही दिखाई दी। क्या मार्गदर्शक के रूप में कुछ अच्छी बातों का भी उल्लेख नहीं किया जा सकता था। क्या आलोचना के लिए मीडिया का सहारा लेना जरूरी था। जब पोत परिवहन मंत्री की आलोचना की जा रही थी, तब क्या कुछ अच्छे कार्यों की सराहना नहीं करनी चाहिए थी।

संयोग देखिए, जिस समय जोशी बनारस में हमला बोल रहे थे, उसी समय नितिन गडकरी मुंबई पोर्टट्रस्ट के एक समारोह में थे। उन्होंने यहां बंदरगाहों को उन्नत बाने की जानकारी दी। पिछली सरकार के मुकाबले सड़क निर्माण कार्य की गति छह गुना बढ़ गई है। उनका दावा है कि सरकार प्रतिदिन 30 किलोमीटर सड़क निर्माण करने की दिशा में बढ़ रही है। सड़क क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक रुचि जुटाने की वित्त पोषण योजनाओं पर काम शुरू किया जा रहा है। क्या जोशी को इन कार्यों की लगे हाथ प्रशंसा नहीं करनी चाहिए थी। फिलहाल जोशी के निराशावाद पर गडकरी का आशावाद हावी लगा। गडकरी ने कहा कि वह गंगा में जहाज चलाकर दिखा देंगे।