5 Dariya News

हिमाचल में बंदर बने बेरोजगारों की कमाई का जरिया

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शिमला 06-Apr-2015

हिमाचल प्रदेश में इन दिनों बंदर अच्छी कमाई का जरिया बन गए हैं। पिछले तीन सालों में राज्य सरकार बंदर पकड़ने के लिए युवाओं को तीन करोड़ रुपये बांट चुकी है। इस कारोबार में खासतौर से बेरोजगार युवक जुटे हुए हैं।वन्यजीव विभाग नसबंदी के लिए बंदरों को पकड़ने हेतु प्रति बंदर 500 रुपये का भुगतान कर रही है।राज्य के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने आईएएनएस को बताया कि बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए ही आवारा बंदरों को पकड़ने की योजना बनाई गई है। यह योजना अक्टूबर 2011 में शुरू की गई थी।मंत्री ने कहा कि बंदरों को पकड़ने के लिए अब तक 336 लोगों को 3.22 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। 2007 से लेकर अब तक 94,334 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है।वन्यजीव अधिकारियों ने कहा कि 2013 में बंदरों की गणना में पता चला है कि राज्य में बंदरों की आबादी घट कर 236,000 हो गई है, जबकि 2004 में राज्य में बंदरों की संख्या 319,000 थी।

शिमला, सोलन, सिरमौर, बिलासपुर, हमीरपुर, उना, मंडी और कांगड़ा जिलों के हजारों किसानों ने कहा है कि बंदरों द्वारा की गई लूट से उन्हें नुकसान हुआ है।वन्यजीव विभाग का अनुमान है कि बंदरों की वजह से 900,000 किसान प्रभावित हुए हैं।अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने बंदरों की नसबंदी के लिए सात केंद्र स्थापित किए हैं। इन प्रत्येक केंद्रों की वार्षिक क्षमता 5,000 है। इसी तरह के दो और केंद्रों की स्थापना करने की योजना है।पुरुष बंदरों की नसबंदी थर्मोकैट्रिक कॉगलेटिव वैसेक्टॉमी और महिला बंदरों की नसबंदी एन्डोस्कॉपिक थर्मोकॉट्रिक ट्यूबेक्टॉमी तकनीक से की जाती है। हांगकांग में भी मैकॉक (बंदरों की एक प्रजाति) की नसबंदी के लिए इसे एक मानद तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।मंत्री ने कहा कि अगले 10 वर्षो में बंदरों की इतनी बड़ी संख्या में नसबंदी की सफलता को व्यापक तौर पर देखा जा सकेगा। 

भरमौरी ने कहा, "श्रीलंका भी अपने यहां बंदरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करने का इच्छुक है। हमने उन्हें जानवरों के चिकित्सकों के एक दल को यहां आकर प्रशिक्षण लेने की मंजूरी दे दी है।"पांच राज्यों -दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, सिक्किम, उत्तराखंड और चंड़ीगढ़- ने भी अपने यहां बंदरों की आबादी पर रोक लगाने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार से मदद मांगी है।राज्य के मौजूदा बजट सत्र में भी कई बार बंदरों के आतंक के मुद्दे को उठाया गया है।