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48 बीएमआई वाले मरीज की हुई सफल किडनी ट्रांसप्लांट

160 किलो से ज्यादा वजन वाले मरीज की हुई सफल किडनी ट्रांसप्लांट

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एस.ए.एस. नगर (मोहाली) 15-Jan-2015

मेडिकल क्षेत्र में विकास का एक और उदाहरण देते हुए 160 किलो वजन और 47.8 के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले 35 वर्षीय मरीज रुल्दू सिंह का मोहाली के फोर्टिस हॉस्पिटल में सफल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। अस्पताल के चीफ किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. प्रियदर्शी रंजन ने कहा कि अब तक किडनी ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी के लिए मोटापे को घातक माना जाता रहा है। उन्होंने कहा, 'ऐसे केस में सबसे बड़ी दिक्कत होती है एब्डमन (पेट) और ब्लड वेसल्स के अंदर और इर्द-गिर्द जमा हुआ फैट जहां किडनी फिक्स होती है। इसलिए ऐसे ऑपरेशन बेहद चुनौतीपूर्ण और तकनीकी तौर पर मुश्किल हो जाते हैं।अब तक तीन ऐसे मरीज सफलमापूर्वक ऑपरेट किए जा चुके हैं। पहला मरीज 110 किलो, दूसरा 130 किलो और यह पहली बार है जब किसी 150 किलो से भी ज्यादा के मरीज का सफल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। डॉ. रंजन ने बताया कि सभी मरीज अब स्वस्थ हैं। ऐसे मरीजों में सबसे बड़ी परेशानी की वजह है कि उनके ब्लड वेसल पेल्विक फैट के अंदर गहरे चले जाते हैं इसलिए इन ब्लड वेसल्स के बीच किडनी को ऑपरेट करना बेहद मुश्किल है। सूक्ष्म सर्जिकल निपुणता के साथ-साथ इन मरीजों को खास इंस्ट्रूमेंटेशन और एनेस्थीसिया की भी जरूरत पड़ती है।

डॉ. रंजन ने आगे बताया कि आम जनता में मोटापे की अंतिम चरण तक पहुंच चुके मरीज सर्जरी करवाते हैं, उन्हें घाव के देरी से ठीक होने या फूल जाने, इंफेक्शन, री-इंटुबेशन, डीप वेन थ्रॉम्बोसिस, हॉर्ट अटैक, देर तक अस्पताल में रहने और स्वास्थ के लिए बढ़े हुए खर्च का खतरा रहता है। किडनी ट्रांसप्लांट के प्रापक में घाव के देरी से भरने या फूल जाने की दिक्कत किडनी ट्रांसप्लांट में इस्तेमाल होने वाले स्टीरॉएड या इम्यूनोसप्रेशन थेरेपी से और भी बढ़ सकती है।उन्होंने आगे बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट के प्रापक में ट्रांसप्लांट के समय ज्यादा बीएमआई होना हृदय रोग के होने का लक्षण भी है। चूंकि फोर्टिस अस्पताल आम तौर पर बेरिएट्रिक सर्जरी भी करता रहता है इसलिए अस्पताल की ऑपरेटिंग और एनेस्थीसिया टीमों के पास ऐसे केस संभालने के लिए प्रर्याप्त उपकरण मौजूद हैं। ऑपरेशन के दौरान एनेस्थीसिया टीम के इंचार्ज डॉ. आदर्श चंद्र स्वामी ने जानकारी दी कि कई बार इन मरीजों में फैट की बड़ी मात्रा गले और श्वासनली के इर्द-गिर्द भी होती है इसलिए एनेस्थीसिया के लिए ट्यूब डालना और यह सुनिश्चित करना की वह सही जगह पर गई है, चुनौती से भरा हो जाता है।

डॉ. रंजन ने कहा कि ऐसे मरीजों में सर्जिकल और घाव से जुड़ी पेचीदगी चौगुनी होती है क्योंकि उनके शरीर में बड़ी मात्रा में फैट जमा होता है जो कि बड़ी मुश्किल से सही हो पाता है।

नेफ्रोलॉजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट फिजीशियन डॉ. एच.जे.एस. गिल ने बताया कि जब मोटापे के शिकार मरीजों की किडनी फेल हो जाती है तो उन्हें भी डायलेसिस पर कई दिक्कतें आती हैं क्योंकि उनकी वस्कुलर ऐनेटमी इतनी अच्छी नहीं होती। पहले के समय में ऐसे मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह नहीं दी जाती थी पर अब सर्जिकल तकनीकों और उपकरणों के विकास के साथ ऐसे मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांट भी एक सच्चाई बन गई है। इस मौके पर दो मरीज दविंदर पाल और रुल्दू सिंह मौजूद थे जिनका मोटापे के चलते भी किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन हुआ। डॉ. रंजन ने कहा कि चूंकि अब किडनी सही से काम कर रही है, हम इन मरीजों को वजन घटाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।