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दर दर की ठोकरें खाने को मजबुर है एचआईवी मरीज गरीब ओमप्रकाश

प्रशासन से मिल रहे है कोरे आश्वासन भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है परिवार को

5 दरिया न्यूज (प्रवीण कौशिक)

घरौंडा 02-Jan-2015

एचआईवी एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें पीडि़त व्यक्ति शारीरिक और आर्थिक रूप से कमजोर होता चला जाता है। अगर ऐसे में पूरे परिवार को ही एचआईवी हो तो परिस्थितियां कुछ ओर ही होती है। जी हां, ऐसा ही एक मामला सामने आया है गांव रायपूर जाटान में, जहां एक बच्ची को छोड़कर पूरा परिवार ही एड्स से पीडि़त है। सरकार और प्रशासन से सैंकड़ों बार गुहार लगा चुके इस परिवार के पास न तो बीपीएल कार्ड है और न ही किसी प्रकार की कोई पेंशन। एड्स की इस बीमारी ने परिवार को जहां शारीरिक रूप से तो कमजोर किया है, वहीं परिवार के मुखिया को काम से निकाल दिए जाने के बाद आर्थिक हालत भी माली हो चुकी है। हालांकि जिला उपायुक्त की ओर से तहसीलदार को ओमप्रकाश की आर्थिक स्थिति की रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए गए है लेकिन कोई कार्रवाई न होने के कारण पीडि़त परिवार को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। रायपूर जाटान निवासी ओमप्रकाश की शादी 1993 में हुई थी। 

रायपुर जाट्टान रोड पर डेरे पर रह रहा है ओमप्रकाश

ओमप्रकाश मूल रूप से बिहार के छपरा गांव का रहने वाला है, लेकिन करीब 25 साल ओमप्रकाश अपने पूरे परिवार के साथ रायपूर जाटान रोड़ पर एक डेरे पर रह रहा है। एड्स के कारण अपने तीन बच्चों को खो चुके ओमप्रकाश के पास अब दो बच्चियां है, जिनमें से एक एचआईवी पॉजिटिव है। 

पत्नी से आई बिमारी:

ओमप्रकाश में यह बीमारी उसकी पत्नी रेखा से आई है। ओमप्रकाश को अपनी बीमारी के बारे में उस वक्त पता चला जब वर्ष 2008 उसकी पत्नी रेखा को लंबी बीमारी के दौरान खून की जांच की गई। करनाल के सरकारी अस्पताल में खून की जांच के बाद जब उसकी पत्नी को एचआईवी पॉजिटिव पाया गया तो डॉक्टरों ने ओमप्रकाश सहित उसे बच्चों की एचआईवी जांच की। जिसमें ओमप्रकाश, उसकी लड़की मुस्कान और पूनम को एचआईवी पॉजिटिव पाया गया। जिसके करीब 2 साल बाद वर्ष 2010 में मुस्कान की मृत्यु हो गई। इससे पूर्व भी ओमप्रकाश के दो लड़कों को इस बीमारी ने काल का ग्रास बना दिया। अब ओमप्रकाश के पास पूनम (12 वर्षीय) और नेहा (5 वर्ष) दो बच्चियां है। जिनमें से पूनम को एचआईवी है, अब दवाईयों के सहारे जीवित है। 

सात सालों से अस्पतालों के चक्कर काट रहा है ओमप्रकाश

ओमप्रकाश करीब सात साल से अस्पतालों के चक्कर काट रहा है और अपने घर का गुजर-बसर करने के लिए घरौंडा की एक नामी शूज कम्पनी में बतौर कर्मचारी काम रहा था, जब उसे अपनी बच्ची के ईलाज के लिए पीजीआई जाना पड़ा तो तीन दिन की छुट्टी लेनी पड़ी, लेकिन तीन की जगह 9 दिन बच्ची के ईलाज में लगे, जिसके कारण ओमप्रकाश को नौकरी से निकाल दिया गया। हालांकि कम्पनी के अधिकारियों को ओमप्रकाश की बीमारी के बारे में जानक ारी है और अतिरिक्त छुट्टियों के लिए ओमप्रकाश ने अपने संबंधित अधिकारी को फोन पर भी सूचना दी थी। आज वह बेरोजगार है और प्रशासन से आर्थिक मदद की गुहार लगा रहा है।                                                                                                                                                                                                  पीडि़त ओमप्रकाश का कहना है कि शादी से पहले उसकी पत्नी रेखा करीब 12 साल की उम्र में आग की चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो गई थी। ईलाज के दौरान जब उसकी पत्नी खून की जरूरत पड़ी तो डॉक्टरों ने उसे खून चढ़ा दिया। उनका मानना है कि  डॉक्टरों उसकी पत्नी को जो खून चढ़ाया था उसी खून के कारण यह बीमारी रेखा में प्रवेश कर गई। जिसका खामियाजा आज उसे और उसके परिवार को भुगतना पड़ रहा है। मप्रकाश ने बताया कि शादी के बाद उनको पहली लड़की मुस्कान हुई। जिसकी मौत 2010 में हो गई। मुस्कान के बाद एक लड़का रोहित हुआ, लेकिन करीब दो साल बाद उसकी भी मौत हो गई। रोहित के बाद ओमप्रकाश की पत्नी ने 2002 में पूनम को जन्म दिया। जो आज भी एचआईवी पीडि़त है। पूनम के बाद 2004 में लड़का हुआ, जिसका आकाश रखा गया, लेकिन आकाश दो साल के बाद चल बसा। 

मुस्कान की मृत्यु के बाद ओमप्रकाश की पत्नी को 2010 में उनको ऑपरेशन से लड़की हुई, जिसका नाम नेहा है। दिल्ली के डॉक्टरों उसको बचाया और मां का दूध न पिलाने की सलाह दी और कई प्रकार की सावधानियां भी बताई। जिससे आज नेहा सुरक्षित बताई जा रही है। पीडि़त ओमप्रकाश का कहना है कि जिला उपायुक्त ने तहसीलदार को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश जारी किए है और रिपोर्ट बनाने के संबंध में वह अधिकारियों से कई बार गुहार लगा चुका है लेकिन उसे आश्वासन देकर टरका दिया जाता है। ओमप्रकाश ने मांग की है कि प्रशासन बिना किसी देरी के उसकी आर्थिक सहायता करें। 

बॉक्स में-

ओमप्रकाश ने बताया कि पिछले कई सालों से वह अपने बीपीएल कार्ड, आर्थिक सहायता व पेंशन संबंधी मांग को लेकर प्रशासन के आलाधिकारियों से मिल चुका है लेकिन प्रशासन की ओर से उसे मात्र आश्वासनों के अलावा और कुछ नही मिला है। जिससे वह काफी हताश और निराश है। ओमप्रकाश का कहना है कि उसे सरकारी अस्पताल से दवाईयां तो मिल जाती है लेकिन उन्हें लेने के लिए जिस खाद्य सामग्री की जरूरत पड़ती है उसके लिए वह जुटाना काफी मुश्किल है। 

ओमप्रकाश ने बताया कि जब उन्होंने अपनी व अपने परिवार की हालत के बारे में विधायक हरविंद्र कल्याण को बताया तो उन्होंने आर्थिक मदद की और भविष्य में भी आर्थिक सहायता करने का आश्वान दिया है। इसके अलावा वर्ष 2010 में करनाल रेड क्रास सोसाईटी ने भी थोड़ी-सी आर्थिक मदद की थी। 

बॉक्स में-उपायुक्त ने भी जारी किए है आदेश-

कई सालों तक चक्कर काटने के बाद करीब दो सप्ताह पहले कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज के उप चिकित्सा अधीक्षक ने ओमप्रकाश को आर्थिक सहायता के संबंध में जिला उपायुक्त कार्यालय पत्र भेजा गया। जिला उपायुक्त ने तहसीलदार को ओमप्रकाश की आर्थिक मदद के लिए पत्र भेजा और एक सप्ताह में ओमप्रकाश के परिवार, भूमि और आर्थिक स्थिति के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश जारी किए।

रिपोर्ट भिजवा दी है-तहसीलदार

इस संबंध में जब तहसीलदार निर्मला दहिया से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जिला उपायुक्त की ओर से रायपूर जाटान निवासी ओमप्रकाश की आर्थिक सहायता के संबंध में एक पत्र प्राप्त हुआ था। जिसमें उपायुक्त कार्यालय की ओर से ओमप्रकाश की आर्थिक स्थिति, परिवार के सदस्यों की संख्या, भूमि व काश्त संबंधी रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए गए थे। ओमप्रकाश की रिपोर्ट तैयार करके जिला उपायुक्त कार्यालय में भिजवा दी गई है।