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70 प्रतिशत किसानों की सहमति की आवश्यकता को समाप्त करना दुर्भाग्यपूर्ण-दीपेन्द्र सिंह हुड्डा

5 दरिया न्यूज

चंडीगढ़ 31-Dec-2014

रोहतक सांसद और कांग्रेस संसदीय दल के सचेतक दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण से पहले 70प्रतिशत किसानों की सहमति लेने की कानूनी बाध्यता को समाप्त करके शून्य प्रतिशत करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यहीं नहीं, आम सहमति से बने इस कानून को बदलने के लिये सरकार ने एक बार चर्चा करने की जहमत उठाना भी मुनासिब नहीं समझा।दीपेन्द्र ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार ने विकास की गति और किसानों के अधिकारों में संतुलन बनाने का प्रयास किया था। 2013 में केन्द्र द्वारा लायी गयी इस नीति का आधार हरियाणा में किसानों के हक में बनी भूमि अधिग्रहण नीति थी। जिसमें किसानों को कई गुना अधिक मुआवजा और 33 साल तक रायल्टी जैसे लाभ सुनिश्चित किये गये थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस सरकार ने किसानों को उनकी सहमति की आवश्यकता के माध्यम से जो अधिकार दिये थे, उसे भाजपा सरकार ने इस अध्यादेश के माध्यम से छीनने का काम किया है।

सांसद ने कहा कि नयी सरकार की नीयत पूंजीपतियों के हित में तथा किसान विरोधी होने की उनकी आशंका सही साबित हुई। उन्होंने आगे कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में सुधार की गुंजाइश थी। कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में पैदा हुए अवरोधों को देशहित में दूर करने की जरुरत थी। लेकिन, देशहित में किसान हित भी शामिल है और किसान हित को पूर्णतः दरकिनार करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

दीपेन्द्र ने कहा कि इस अध्यादेश पर इतनी हड़बड़ी ठीक नहीं थी। भूमि अधिग्रहण कानून-2013 संसद में भारतीय जनता पार्टी और अन्य सभी पार्टियों के साथ चर्चा और आम सहमति से पारित हुआ था। जल्दबाजी में अध्यादेश लाकर सरकार ने संसद को भी नज़रअंदाज किया है साथ ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अवहेलना की है। बदलाव की जरुरत को व्यापक चर्चा और आम सहमति से अमल में लाना चाहिए था।

सांसद ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसी कानून में बदलाव करने के लिये संसदीय प्रक्रियाओं के तहत भी आम जनता को अपनी टिप्पणी देने के लिये कम से कम 4 हफ्तों का समय दिया जाना चाहिए। इसका भी पालन नहीं किया गया। ऐसे में सरकार की नीयत और नीति किसके पक्ष में है, इस बात को लेकर चिंता होती है।कांग्रेस सांसद ने कहा कि धान समेत दूसरी फसलों का भाव पिटने, यूरिया किल्लत, कीटनाशक दवाईयों की कीमतों में वृद्धि जैसे संकट से जूझ रहा किसान सरकार के इस कदम से सदमे में है। उसे खुद को ठगे जाने का आभास हो रहा है।