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भ्रुण हत्या एक जघन्य अपराध है और पाशविकता की पराकाष्ठा है : कौशिक

5 दरिया न्यूज (प्रशांत कौशिक)

घरौण्डा 29-Jul-2013

क्षेत्र की प्रसिद्ध संस्था समाज कल्याण क्लब के तत्वाधान मे भ्रुण हत्या पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी मे उपप्रधान गुलशन जुनेजा,वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंन्द्र पांचाल,विशाल पांचाल, जिलाध्यक्ष पानीपत अरूण मित्तल,नरेन्द्र कश्यप,गोविन्द पाल,प्रवीन प्रजापत ब्लाकाध्यक्ष,प्रशांत,रविन्द्र कश्यप,राजेश,कमल शर्मा,ललित चौहान,हुकम सिह सुलेख,सुरेन्द्र शर्मा,नजर आज तक की मुख्य संपादक कुसुम प्रवीण,कमलेश,रानी राकेश,बिमला,नीशू,विरेन्द्र,मोहित कौशिक व अन्य सदस्यों ने भाग लिया। जिसमे अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रदेशाध्यक्ष प्रवीण कौशिक ने कहा कि संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी का जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है. अन्य प्राणियों की तो छोड़ो आज तो बेटियों की जिंदगी कोख में ही छीनी जा रही है. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं. ऐसा शास्त्रों में लिखा है किन्तु बेटियों की दिनोदिन कम होती संख्या हमारे दौहरे चरित्र को उजागर करती है. जीवन की हर समस्या के लिए देवी की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या जन्म को अभिशाप मानता है और इस संकीर्णं मानसिकता की उपज हुई है दहेज़ रुपी दानव से. लेकिन दहेज़ के डर से हत्या जैसा घृणित और निकृष्ट कार्य कहाँ तक उचित है ? अगर कुछ उचित है तो वह है दहेज़ रुपी दानव का जड़मूल से खात्मा. एक दानव के डर से दूसरा दानविक कार्य करना एक जघन्य अपराध है और पाशविकता की पराकाष्ठा है. 

क्लब के कार्यकारी अध्यक्ष ऋषि पाल राणा ने कहा कि माँ के गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जाती है तब वह बचने के कितने जतन करती होगी यह माँ से बेहतर कोई नहीं जानता. गर्भं में ‘माँ मुझे बचा लो ‘ की चीख कोई खयाली पुलाव नहीं है बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है. अमेरिकी पोट्रेट फिल्म एजुकेशन प्रजेंटेशन द सायलेटं स्क्रीम ‘ एक ऐसी फिल्म है जिसमे गर्भपात की कहानी को दर्शाया गया है. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह गर्भपात के दौरान भ्रुण स्वयं के बचाव का प्रयास करता है. गर्भ में हो रही ये भागदौड़ माँ महसूस भी करती है. अजन्मा बच्चा हमारी तरह ही सामान्य इंसान है. ऐसे मे भ्रुण की हत्या एक महापाप है. 

क्लब के प्रदेश महासचिव सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि वह नन्हा जीव जिसकी हत्या की जा रही है उनमे से कोई कल्पना चावला, कोई पी. टी. उषा, कोई स्वर कोकिला लता मंगेशकर तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थी. कल्पना चावला जब अन्तरिक्ष में गयी थी तब हर भारतीय को कितना गर्वं हुआ था क्योंकि हमारे भारत को समूचे विश्व में एक नयी पहचान मिली थी. सोचो अगर कल्पना चावला के माता पिता ने भी गर्भं में ही उसकी हत्या करवा दी होती तो क्या देश को ये मुकाम हासिल करने को मिलता ? हिंसा का यह नया रूप हमारी संस्कृति और हमारे संस्कारों का उपहास है. नारी बिना सृष्टि संभव नहीं है. ऐसे में बढ़ते लिंगानुपात की वजह से वह दिन दूर नहीं जब 100 लड़कों पर एक लड़की होगी और वंश बेल को तरसती आँखे कभी भी तृप्त नहीं हो पायेगी।