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हिमाचल में लोगों ने पत्थर बरसाकर निभाई परंपरा

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शिमला 24-Oct-2014

हिमाचल प्रदेश के एक गांव में सदियों पुरानी पत्थर बरसाने की परंपरा का आयोजन शुक्रवार को किया गया। दो समूह, जिसमें एक पूर्व रियासत के शाही परिवार का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि दूसरा आमजन होता है और दोनों एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। इसमें घायल होने वाला देवी काली के मस्तक पर अपने रक्त से तिलक लगाता है। पुलिस ने कहा कि इस आयोजन के दौरान कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ। कुछ लोग मामूली रूप से घायल हुए, जिसका जिला प्रशासन द्वारा प्राथमिक चिकित्सा किया गया। दिवाली के एक दिन बाद धामी गांव में सालाना तौर पर 'पत्थरों का मेला' नामक यह मेला आयोजित किया जाता है। किसी समय में यह ब्रिटिश लोगों का सबसे पसंदीदा शिकार स्थल था। बुजुर्गो का कहना है कि 18वीं शताब्दी में पर्व के दौरान धामी रियासत की राजधानी हालोग के पुरुष और पड़ोसी गांव जामोग के लोग यहां इकट्ठा होते थे और एक दूसरे पर छोटे-छोटे पत्थर फेंकते थे। उनके अनुसार, घायल होना शुभ माना जाता था। घायल होने वाला देवी काली के मस्तक पर अपने रक्त से तिलक लगाता था। 

देवी काली को खुश करने के लिए धामी के शासकों द्वारा मानव बलि खत्म करने के बाद इस परंपरा की शुरुआत हुई थी। मेले के एक आयोजक ने कहा, "पत्थर फेंकने में 300 से ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं, जो आधे घंटे से भी कम समय तक चलता है। अगर इस दौरान कुछ लोग घायल हो जाएं और खून बह निकले तो इसे रोक दिया जाता है।"इस परंपरा में पूर्व शाही परिवार के लोग एक तरफ होते हैं, जो दूसरी तरफ से ग्रामीणों का सामना करते हैं। धामी पैलेस स्थित नारा सिंह मंदिर से देवी के आगमन के बाद स्थानीय लोग शाही परिवार के सदस्यों पर पत्थर फेंकते हैं। इस मेले को देखने के लिए आस-पड़ोस के गांवों के हजारों लोग इकट्ठा होते हैं। इस दौरान यहां हाथों से बने ऊनी कपड़े, खेतीबाड़ी के औजार, घरेलू चीजें तथा सूखे मेवे की बिक्री होती है। स्थानीय प्रशासन हालांकि लोगों को इस परंपरा में भाग लेने के लिए हतोत्साहित कर रहे हैं। मेले के दौरान घायलों के इलाज के लिए प्रशासन को यहां चिकित्सा शिविर लगाना पड़ता है।