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26 मई को माता सती सुन्यारी मेले पर विशेष

सूनी गोद भरती है, माता सती सुन्यारी

5 दरिया न्यूज (विजयेन्दर शर्मा)

ज्वालामुखी 26-May-2013

शक्तिपीठों के नाम से विख्यात जिला कांगड़ा में जहंा अनेक मां भवानी के प्राचीन मन्दिर एवं शिवालय विद्यमान हैं, वहीं पर पालमपुर-जैसिंहपुर सड़क पर खैरा गांव में माता सती सुन्यारी का मन्दिर असंख्य लोगों की आस्था एवं श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ है। जनश्रुति के अनुसार माता सुन्यारी सन् 1772 में इस स्थान पर अपने पति सुन्यार के साथ चिता में जल कर सती हुईं थीं। यह दम्पत्ति खैरा के साथ गांव सुन्यार खौला में रहते थे, जो आज भी इसी नाम से प्रचलित है। बताया जाता है कि वर्ष 1772 में जब उनके पति का देहान्त हुआ और उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार हेतू इस स्थान पर लाया गया, जहां आज माता सुन्यारी की देहरी विद्यमान है। माता सुन्यारी नि:संतान थीं और जब वह अपने पति को गोद में लेकर सती होने के लिये चिता पर बैठ गई तो चिता को अग्नि देने वाला कोई नहीं था। 

माता सुन्यारी ने चिता पर बैठकर कहा कि जो पुरूष उनके स्वर्गीय पति की चिता को मुखाग्नि देगा, उसे वह मनवांछित वरदान देंगी। माता की इस गुहार को सुनकर खैरा के मियां जैमल सिंह कटोच, जोकि स्वयं भी नि:संतान थे और बुढ़ापे की दहलीज़ पर कदम बढ़ा रहे थे, ने मुखाग्नि देना स्वीकार किया। जैसे ही मियां जैमल सिंह कटोच ने चिता को आग दी और माता सुन्यारी ने उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री पैदा होने का वरदान दिया और आग्रह किया कि वह इसी दिन ज्येष्ठ मास के 9 प्रविष्टे अगले वर्ष से इस स्थान पर छिंज (कुश्ती) मेले का आयोजन अवश्य करें। 

माता सुन्यारी के वरदान से अगले वर्ष मियां जैमल सिंह को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ और उन्होंने बड़ी श्रद्घा व खुशी के साथ मां सुन्यारी का पहला छिंज मेला वर्ष 1773 के ज्येष्ठ मास के 9 प्रविष्ठ को आयोजित किया और तब से यह हर वर्ष इस मेले का आयोजन हर वर्ष हो रहा है। मियां जैमल सिंह को वरदान के अनुसार एक पुत्र और पुत्री और पैदा हुए। बताया जाता है कि वर्तमान में मियां जैमल सिंह का परिवार सातवीं पीढ़ी में पहुंच चुका है और उनके वंशज़ के लगभग 25 परिवार एवं अन्य स्थानों पर रह रहे हैं। 

असंख्य नि:संतान दम्पत्ति हर वर्ष मां सती सुन्यारी की अपार कृपा से संतान प्राप्ति पर मेले में मां का आर्शीवाद प्राप्त करने आते हैं और कई संतान प्राप्ति की कामना करने के लिये पहुंचते हैं। लोगों का विश्वास है कि माता सुन्यारी की कृपा से सूनी गोदें भरती हैं और लोगों की मनोकामनाओं को भी पूरा करती है।खैरा गांव में कटोच भवन में कटोच वंशज के सभी पूर्वजों की छायाचित्र लगे हैं, जोकि लोगों के लिये एक आकर्षण का केन्द्र हैं। बताया जाता है कि जब ज्वाहर चन्द कटोच ने खैरा गांव को आबाद किया था, तो वह अपने साथ रियासत लम्बागांव और सुजानपुर टीहरा से सब जातियों के पेशेवर लोग अपने साथ लाये थे, यही कारण है कि आज खैरा में समस्त वर्ग लोग मिलजुल कर रहते हैं। 

मन्दिर के रखरखाव के लिये स्थानीय स्तर पर सुधार सभा सुन्यारी मां का गठन किया गया है, जिनके द्वारा हर वर्ष ज्येष्ठ मास के 9 से 13 प्रविष्टे तक मां सुन्यारी के मेले का आयोजन बड़ी श्रद्घा एवं हर्षोल्लास के साथ किया जाता है तथा इस वर्ष भी परम्परा के अनुसार 26 से 27 मई तक मेले का आयोजन किया जा रहा है मेले को और अधिक आकर्षक व मनोरंजक बनाने के लिये सुन्यार सभा द्वारा अन्य गतिविधियों को भी शामिल किया गया है। मेले में विभिन्न क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्घालु मां का आर्शीवाद लेने के साथ-साथ मेले का भी आनन्द उठाते हैं।

खैरा में ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। खैरा गांव का सुन्यारी माता मन्दिर, कटोच वंशज की यादगार में निर्मित संग्रहालय भवन, जिसमें एक ही समय में दो बारातों के ठहरने की क्षमता है। इसके अतिरिक्त इस गांव में असंख्य प्राचीन धरोहरें भी मौजूद हैं जो पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्व रखती हैं। इस मन्दिर राज्य उच्च मार्ग के किनारे स्थित होने से पर्यटक यात्रा के दौरान इस गांव की प्राचीन धरोहर एवं सौंदर्य का भी आनन्द ले सकते हैं।