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कैबिनेट मंत्रियों को विधानसभा भेजने की बजाय घर बिठाने में ज्यादा विश्वास

5 दरिया न्यूज (विजयेन्दर शर्मा)

धर्मशाला 19-Dec-2012

देश के सबसे जागरूक हिमाचल के वोटर कैबिनेट मंत्रियों को विधानसभा भेजने की बजाय घर बिठाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। प्रदेश का इतिहास बताता है कि हर बार 70 फीसदी से अधिक मंत्री विधानसभा चुनाव में लुढ़क जाते हैं। वर्ष 1990 से लेकर 1993 तक के कार्यकाल में जगदेव ठाकुर को छोड़कर पूरा कैबिनेट चुनाव में हार गया था। इस चुनाव में प्रदेश के मतदाताओं ने शांता कुमार समेत अन्य सभी मंत्रियों को घर बिठा दिया था। इसके बाद 1993-1998 की वीरभद्र सरकार में 16 में से मात्र पांच मंत्री ही वापस विधानसभा लौटकर आए थे। वर्ष 1998-2003 भाजपा-हिविकां की गठबंधन वाली धूमल सरकार के कुल 21 मंत्रियों में से छह मंत्री ही जीत पाए थे। वर्ष 2003-2007 के दौरान वीरभद्र सरकार के कुल 15 मंत्रियों में से कुल चार ही विधानसभा में वापसी कर पाए थे। उक्त आंकड़े मौजूदा धूमल सरकार के मंत्रिमंडल के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007 में सत्ता संभालने वाली धूमल सरकार में कुल 11 मंत्री रहे हैं। इनमें मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल तथा शिक्षा मंत्री आईडी धीमान को छोड़कर सभी को कांटे की टक्कर मिली है। अलबत्ता 1990 से लेकर पिछले विधानसभा चुनावों के परिणाम स्पष्ट करते हैं कि प्रदेश में मंत्रियों की राहें आसान नहीं हैं। शांता कुमार के कार्यकाल में वर्ष 1993 में हुए चुनावों में भाजपा को मात्र सात सीटें ही मिली थीं। इस सरकार के ठाकुर जगदेव ही एकमात्र मंत्री चुनाव जीत सके थे। इसके उपरांत वर्ष 1993 में सत्ता संभालने वाली वीरभद्र सरकार में मंत्री बने विजय सिंह मनकोटिया, सतमहाजन, विद्याधर, विद्या स्टोक्स, रामलाल ठाकुर, विजय जोशी, नारायण चंद्र पराशर, रंगीला राम राव, राज कृष्ण गौड़, सत्य प्रकाश ठाकुर तथा फुचुंग राय सभी चुनाव हार गए थे। इस करारी हार के बाद वर्ष 1998 में प्रेम कुमार धूमल ने हिविकां के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। धूमल सरकार में मंत्री बने डा. राजन सुशांत, प्रकाश चौधरी, जेपी नड्डा, किशन कपूर, नरेंद्र बरागटा, कर्ण सिंह, रूप सिंह ठाकुर, मनसा राम, डा. राम लाल मार्कंडेय, प्रवीण शर्मा, मोहन लाल तथा रिखी राम कौंडल बतौर मंत्री चुनाव हार गए थे। अन्य मंत्रियों में पंडित सुखराम भी चुनाव न लड़ने के कारण वापसी नहीं कर पाए थे। इस चुनाव में बतौर मंत्री रमेश धवाला, आईडी धीमान, हरिनारायण सैणी, रविंद्र रवि तथा मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ही चुनावों में जीत मिली थी। भाजपा की इस हार के बाद वीरभद्र ने वर्ष 2003 में फिर सत्ता संभाल ली। इस कार्यकाल में मंत्री बनने के बावजूद रंगीला राम राव, राज कृष्ण गौड़, रामलाल ठाकुर, आशा कुमारी, बीबीएल बुटेल, चंद्रेश कुमारी, सुजान सिंह तथा मेजर विजय सिंह चुनाव हार गए थे। सीपीएस पद से ताजपोशी होने के बावजूद अनिता वर्मा, ठाकुर सिंह भरमौरिया तथा कुलदीप कुमार भी विस में वापसी नहीं कर पाए।