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घरौण्डा की समस्याओं से पिछले लगभग दस वर्ष मुंह मोड़े रहे स्थानिय नेता

अपने आपके सरकार मे भारी पैठ होने का दावे खोखले साबित हुए

5 दरिया न्यूज (प्रवीण कौशिक)

घरौण्डा 25-Apr-2014

स्थानिय समस्याओं की मांग की ओर ध्यान न दिये जाने के कारण स्थानिय लोगों मे सरकार के प्रति गहरी नाराजगी देखी जा रही है। और न ही कभी किसी स्थानिय काग्रेंसी नेता ने सरकार को यहां की समस्याओं के बारे मे सरकार को बताया। जनता को कोरे आश्वासन ही आज तक परोसे गए हैं। जबकी यहां के काग्रेंसी अपने आपको सरकार मे भारी पैठ होने का दावा करते नही थकते। कोई राहुल गांधी का नजदीकी है तो कोई हुड्डा साहब का । मगर हैरानी है कि ये मात्र जनता मे अपनी झुठी शान दिखाने के लिए है या कुछ इसमे सच्चाई भी है। अगर कोई जमीनी हकीकत है भी तो पिछले दस सालों मे कथित काग्रेंसीयों को यहां की समस्याएं नजर क्यों नही आई। 

समस्यायें-

घरौण्डा मे वर्षों से गल्र्ज कालेज,बस अड्डा,खेल का मैदान,वर्तमान गल्र्ज स्कूल मे कम जगह,पिछले कुछ वर्षों से दोनो तरफ सर्विस लेन की खस्ता हालत, कालोनियों का नियमित करवाना,सार्वजनिक पार्क का न होना,रेलवे स्टेशन पर शैडों की व्यवस्था,स्थानिय सरकारी हस्पताल मे डाक्टरों व सुविधाओं की कमी होना,कालेज छात्राओं के लिए करनाल व पानीपत के लिए बसों का न होना, नई अनाज मण्डी मे कि सानों के ठहरने लिए समुचित व्यवस्था न होना आदी ।

जनता मांग रही जवाब

समस्याओं से सत्ता पार्टी के स्थानिय नेता मुंह मोड कर क्यों बैठे रहे। इन्होने अपने आकाओं को यहां की समस्याओं से अवगत क्यों नही करवाया? ऐसे कई सवाल क्षेत्र की जनता के जहन मे गुंज रहे हैं। ना ही किसी विपक्षी पार्टी के स्थानिय नेताओं ने इन समस्याओं को लेकर आवाज उठाई। उन्होने वही किया जो उन्हे उनके आकाओं के आदेश मिलते थे। स्थानिय विपक्षी नेता भी स्थानिय समस्याओं से मुंह मोडें़ बैठे रहकर चुनावों का इन्जार करते रहे। जनता इन सवालों का जवाब तलाश रही है। जो अबकी बार यहां चुनाव मे उतरने वाले प्रत्यासीयों को देने पड़ सकते हैं। एक महाशय तो पिछले नौ वर्षों तक सरकार मे मलाई खाने के बाद अपने आपकी प्रशंसा करने से नही थक रहे हैं। और वे काग्रेंस की सेवा करने का दम भर कर टिकट की लाईन मे लगे हैं। वर्षों काग्रेंस की सेवा के बाद कोई पुछे तो उन्होने इलाके को क्या दिया। अपने ही पदों मे तरक्की की। टिकट नही मिलने पर वे किसी अन्य पार्टी की गोद मे बैठ सकते हैं। या फिर आजाद प्रत्यासी के रूप मे कू द कर जनता को कोरे आश्वासन ही परोसेंगे। ऐसे एक नही कई स्थानिय छुटभैये नेता अपनी पार्टीयों से बगावत कर मैदान मे कुदने की इच्छा रखते हंै ऐसी चर्चाएं आजकल जोरों पर हैं। किस भरोसे पर जनता इन पर विश्वास करेगी। मगर उनकी एम एल ए बनने की इच्छा पर तो कोई रोक नही लगा सकता। जो सत्ता पार्टी के दमदार सदस्य होते हुए भी क्षेत्र मे एक भी कार्य नही करवा सके। पिछले नौ वर्षों मे इन्हे ध्यान नही आया कि क्षेत्र की अनदेखी हो रही है। अब नौ साल सत्ता की मलाई खाने के बाद इन्हे क्षेत्र व क्षेत्र के लोगों की चिन्ता क्यों होने लगी? ताकी जनता को फिर बहकाया जा सके। मगर जनता अबकी बार साबित कर देगी कि "तू डाल डाल तो जनता पात पात"। कुछ लोग नौ सालों मे अपनी स्वार्थ सिद्धी कर काग्रेंस को कोसते हुए दूसरों की गोद मे बैठ कर टिकट की जुगत मे लगे है। मगर जनता अब कुछ ऐसे कथित नेताओं की चालों को कामयाब नही होने देगी। चुनाव नजदीक आने पर ही ऐसे लोगों को अपनी ही पार्टीयों मे खोट नजर आने लगते हैं। पार्टीयों का खोट तो साल दो साल मे नजर आ जाना चाहिए था। तब पार्टी नही छोडी। क्ंयू? नौ साल मलाई जो डकारनी थी।़ ऐसी चर्चाएं अब जनता मे होने लगी हैं। सामाजिक संस्थाओं ने समय समय पर स्थानिय नेताओं व अधिकारीयों को घरौण्डा की उर्पयुक्त  समस्याओं से अवगत कराया,मगर किसी के कानों पर जूं तक नही रेंगी।