आखिर क्यों Indira Gandhi ने की थी Emergency की घोषणा और क्यों हुई थी नसबंदी? आज जानिए असली वजह
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आखिर क्यों Indira Gandhi ने की थी Emergency की घोषणा और क्यों हुई थी नसबंदी? आज जानिए असली वजह

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25-Jun-2022

47 साल पहले 26 जून 1975 की सुबह जबIndira Gandhi की आवाज रेडियो में गूंजी तो देश की जनता को पता चला कि बीती रात से देश में Emergency लागू कर दी गई है। और वो बीती रात थी 25 जून 1975 की।  इस दौरान पुलिस विपक्ष के नेताओं को पकड़कर जेल में डाल रही थी। इसके लिए बाकायदा उन नेताओं की एक लिस्ट बनाई गई थी, जिनकी गिरफ्तारी की जानी थी। Subramanian Swamy तब एक ऐसा ही नाम था जिसके पीछे पूरे देश की पुलिस पड़ी थी लेकिन वे पकड़ में नहीं आ रहे थे। पूरे भारत की पुलिस दिन-रात स्वामी की तलाश कर रही थी लेकिन वे वेश बदलकर पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो जाते थे। Emergency किसी भी देश के लिए सबसे बुरा वक्त माना जाता है। देश में तभी Emergency लगाई जाती है जब हालात हुकूमत के बस से बाहर हो जाए और देश की स्थिति गंभीर हो। इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि आखिर Indira Gandhi को  Emergency जैसा बड़ा कदम किन मजबूरियों में लेना पड़ा।

1971 के आम चुनाव में  गरीबी हटाओ के नारे के साथ प्रचंड बहुमत हासिल कर इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। उसी साल के अंत में पाकिस्‍तान को युद्ध में शिकस्‍त दी और बांग्‍लादेश दुनिया के नक्‍शे पर लाया। एक समय था जब इंदिरा को गूंगी गुडि़या कहा जाता था लेकिन रातों रात इस गूंगी गुडिया को मां दुर्गा कहा जाने लगा। आयरन लेडी कहा गया। उसी साल भारत रत्न भी मिला। लेकिन अगले कुछ ही सालों के अंदर देश में सब कुछ बदल गया और इंदिरा की सत्ता का बंटाधार हो गया।

यहां से बदले हालात- 

1971 से ही इंदिरा सरकार, न्‍यायपालिका और प्रेस पर नियंत्रण की कोशिश में भी लग गई। 1967 में गोलकनाथ केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्‍यवस्‍‍था देते हुए कहा कि संविधान के बुनियादी तत्‍वों में संशोधन का अधिकार संसद के पास नहीं है। 

इस फैसले को बदलवाने के लिए 1971 में 24वां संविधान संशोधन पेश किया गया। इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व में सरकार की यह कोशिश भी उस वक्‍त विफल हो गई जब केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 7-6 बहुमत के आधार पर 1973 में फैसला दिया कि संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। 

न्‍यायपालिका के साथ कार्यपालिका का विवाद इस हद तक बढ़ गया कि एक जूनियर जज को कई वरिष्‍ठ जजों पर तरजीह देते हुए चीफ जस्टिस बना दिया गया। नतीजतन कई सीनियर जजों ने इस्‍तीफा दे दिया। इसे ब्यूरोक्रेसी में सरकार के खिलाफ गुस्सा पनम गया। इंदिरा को तानाशाह समझा और कहा जाने लगा। 

छात्र आंदोलन गुजरात

1973 में गुजरात के अहमदाबाद में LD इंजीनियरिंग कॉलेज में हॉस्‍टल मेस के शुल्‍क में बढ़ोतरी के बाद छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया। राज्‍य के शिक्षा मंत्री के खिलाफ शुरू हुए इस नव निर्माण आंदोलन ने बाद में भ्रष्‍टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ उग्र रूप धारण किया और इसका नतीजा यह हुआ कि मुख्‍यमंत्री Chimanbhai Patel को इस्‍तीफा देना पड़ा और राज्‍य में राष्‍ट्रपति लगाना पड़ा। 

बिहार छात्र आंदोलन

इसी तरह उसी दौर में बिहार छात्र संघर्ष समिति के आंदोलन को गांधीवादी समाजवादी चिंतक JP नारायण ने समर्थन दिया। 1974 में जेपी ने छात्रों, किसानों और लेबर यूनियनों से अपील करते हुए कहा कि वे अहिंसक तरीके से भारतीय समाज को बदलने में अहम भूमिका निभाएं। इन सब वजहों से इंदिरा गांधी की राष्‍ट्रीय स्‍तर पर छवि प्रभावित हुई।

राज नारायण केस

समाजवादी नेता Raj Narain ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव (1971) में जीत को चुनौती दी। इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में राज नारायण को रायबरेली से हराया था। राज नारायण ने आरोप लगाया कि चुनावी फ्रॉड और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के चलते इंदिरा गांधी ने वह चुनाव जीता। 

इस पर 12 जून, 1975 को फैसला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्‍हा ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया। इंदिरा गांधी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 

24 जून, 1975 को जस्टिस वीके कृष्‍णा अय्यर ने इस फैसले को सही ठहराते हुए सांसद के रूप में इंदिरा गांधी को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगा दी। उनको संसद में वोट देने से रोक दिया गया। हालांकि उनको प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की छूट दी गई। कोर्ट के इस फैसले से इंदिरा घबरा गई थी।

सिंहासन खाली करो 

25 जून, 1975 को दिल्‍ली के रामलीला मैदान में जेपी ने इंदिरा गांधी के पद नहीं छोड़ने की स्थिति में उनके खिलाफ अनिश्चितकालीन देशव्‍यापी आंदोलन का आह्वान करते हुए Ramdhari Singh Dinkar की मशहूर कविता की पंक्तियों को दोहराया-'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। 

यही वो पल था कि इंदिरा बुरी तरह से परेशान हो चुकी थी। उन्हें लगने लग गया था कि अब उनके हाथ से हर चीच निकलती जा रही है, इसलिए आंतरिक अशांति का हवाला देते इंदिरा ने पूरे देश में Emergency की घोषणा कर दी।

21 महीने चला अखबारों का बुरा दौर

25 जून 1975 को लगी Emergency करीब 21 महीने चली। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद समय था। इस दौरान विपक्षी नेताओं को रातोंरात गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया, जिनमें जेपी, अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता शामिल थे।

संजय गांधी ने अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री को उन लोगों की लिस्ट सौंप दी थी, जो इमरजेंसी का विरोध कर रहे थे। आदेश साफ था विरोध की हर आवाज को दबा दिया जाए। कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली जयपुर और ग्वालियर की राजमाताओं को भी इस दौरान गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया गया। 

इसके साथ ही अखबारों में इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई खबर न छपे, इसके लिए अखबारों की बिजली काट दी गई। अखबारों में सेंसरशिप लागू कर दी गई। कांग्रेस के नेता और बड़े-बड़े अधिकारी अखबारों के दफ्तरों में बैठकर हर खबर को पढ़ने के बाद ही छापने की इजाजत देते थे। उनकी अनुमति के बिना कोई भी खबर नहीं छापी जा सकती थी।

जबरन नसबंदी ने सबको हिला दिया- 

एक किताब में लिखा गया है कि Sanjay Gandhi देश की समस्या की प्रमुख वजह बढ़ती जनसंख्या को मानते थे। पहले कंडोम को लेकर अभियान चलाए गए थे, लेकिन उनका कोई असर नहीं हुआ। 

इसके बाद संजय गांधी ने मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया कि वह सख्ती से नसबंदी अभियान को लागू करें। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता ने सिर्फ 3 हफ्ते में ही 60 हजार लोगों की नसबंदी के ऑपरेशन करवा दिए थे। इसके बाद दूसरे राज्यों पर भी दबाव पड़ा और उन्होंने अधिकारियों को टारगेट दे दिए। 

नसबंदी करवाने वालों को 120 रुपये या एक टीन खाने का तेल या एक रेडियो लेने का विकल्प भी दिया जाता था। देशभर में लोगों को जबरदस्ती पकड़कर नसबंदी कार्यक्रम को चलाया गया। इससे पूरे देश में दहशत का महौल हो गया था। डॉक्टरों और अधिकारियों को देखकर ही लोग भाग जाते थे।