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उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने देशवासियों से पर्यावरण संरक्षण के लिए जन आंदोलन शुरू करने का किया आह्वान

चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने किया इंटरनेशनल लॉ कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन

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घड़ूआं 07-May-2022

''विकास की चाहत में, मनुष्य ने प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है, जिसके प्रतिकूल परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। इस बात पर जोर देते हुए भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू नेॾजलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण संरक्षण के लिए 'जन आंदोलन' का आह्वान किया, जिसमें हर नागरिक अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे।'' इस समय वह 'पर्यावरण विविधीकरण और पर्यावरण न्यायशास्त्र' के विषय पर आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करने के लिए बतौर मुख्यातिथि चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी कैंपस में पहुंचे थे। इसके अलावा चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं में आयोजित 2 दिवसीय कॉन्फ्रेंस में पंजाब के राज्यपाल और प्रशासक, यूटी चंडीगढ़, श्री बनवारीलाल पुरोहित भी बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। गौरतलब है कि पर्यावरण संरक्षण से संबंधित महत्त्वपर्ण वैश्विक विषयों में भारत द्वारा तय किए गए लक्ष्यों की प्राप्ति का रोडमैप और आगामी दिशा निर्धारित करने हेतु आयोजित कॉन्फ्रेंस में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश, जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिसॾबी आर गवई, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और एनजीटी के पूर्व अध्यक्ष, जस्टिस स्वतंत्र कुमार,ॾराज्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश, सहित श्रीलंका, नेपाल, ब्राजील और मलेशिया सहित 20 देशों के न्यायाधीश, जैव विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र के विशेषज्ञों और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण से जुड़े विषयों पर बातचीत की, जिस दौरान 4000 छात्र उपस्थित रहे।ॾइस अवसर पर बात करते हुए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर स. सतनाम सिंह संधू विशेष तौर पर मौजूद रहे।

इस बारे में बात करते हुए श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि हमारी प्राचीन सभ्यता ने हमें हमेशा प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाया है और इकोसिस्टम का संरक्षण हमारे डीएनए में है, जिसके फलस्वरूप आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत पूरी दुनिया को मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ सिर्फ सरकारों पर नहीं छोड़ा जा सकता, लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। उन्होंने गांधी जी के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि 'प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है लेकिन उसके लालच के लिए नहीं'।ॾॾआईपीसीसी एआर6 रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम अब भी इस दिशा में त्वरित कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन और घातक रूप धारण करने वाला है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट बताती है भले ही देश उत्सर्जन को कम करने के अपने वादों का पालन करें, फिर भी 21वीं सदी के दौरान ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी। उन्होंने हाल ही में ग्लासगो में सीओपी26 शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। वर्षों से पर्यावरणीय न्याय को कायम रखने के लिए भारतीय उच्च न्यायपालिका की सराहना करते हुए, उन्होंने सुझाव दिया कि निचली अदालतों को भी एक पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए और अपने निर्णयों में स्थानीय आबादी और जैव विविधता के सर्वोत्तम हितों को रखना चाहिएर् उन्होंने कहा कि छोटी उम्र से ही, छात्रों को कार्बन और इकोलॉजिकल फुटप्रिट के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। आज भी, जबकि भारत में विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत है, हम विश्व उत्सर्जन में केवल 5 प्रतिशत का योगदान करते हैं। भारत हमेशा उन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिए खड़ा रहने को तैयार रहे हैं, जो दुनिया का मार्ग प्रशस्त करते हैं। 

उन्होंने कहा कि भारत में आज पर्यावरण संरक्षण के लिए 200 से अधिक कानून बने हैं। केवल कानून पारित करना ही पर्याप्त नहीं है, इन कानूनों को ईमानदारी से लागू करना और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। आज हमें लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है। जब तक पर्यावरण संरक्षण जन आंदोलन नहीं बनेगा, हमारा भविष्य अंधकारमय है। उन्होंने इस तरह के सम्मेलनों के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें विश्व स्तर पर एक-दूसरे से सीखना होगा और दुनिया भर से सबसे अच्छी प्रथाओं को अपनाना होगा। उन्होंने इस नेक पहल के लिए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की सराहना की और उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन देश में पर्यावरण संरक्षण के नए रास्ते खोलेगा। इस अवसर पर बात करते हुए माननीय राज्यपाल पंजाब और प्रशासक, यूटी चंडीगढ़, श्री बनवारीलाल पुरोहित ने कहा कि एन्वायरनमेंट लॉ पर आयोजित यह सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सांयिकीय आंकड़ों से पता चलता है कि कई नदियाँ सूख गई हैं और जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं या हो चुकी हैं। वैश्विक समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है और  1993 के स्तर से ऊपर 91.3 मिमी (या 3.6 इंच) का एक नया उच्च रिकॉर्ड बना रहा है। यह ग्लोबल वार्मिंग और अंटार्कटिका में बर्फ के पिघलने के कारण है। सिंचाई की अधिक मांग के कारण भूमिगत जल स्तर में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन हमारी प्राचीन परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारे शास्त्रों ने हमें हमेशा जानवरों और प्रकृति के रिश्ते का संतुलन सिखाया है। उन्होंने कहा कि लगभग सभी देशों में नासमझ विनाश और संसाधनों का ह्रास बेरोकटोक जारी है। हमारे पास क्षमता और जिम्मेदारी है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें कार्य करना चाहिए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय जस्टिस बी. आर गवई ने कहाए ष्हमें यह याद रखना चाहिए कि हमें यह ग्रह अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं मिला हैए बल्कि हमनें इसे अपने बच्चों से उधार लिया है। 

केवल तभीए हम ऊर्जा संसाधनों के उपयोग में अधिक विवेकपूर्ण होंगे॥ भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति, जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि समय आ गया है कि दुनिया और उसके नागरिक त्वरित और प्रभावी तरीके से एक स्थायी समुदाय के निर्माण की दिशा में अपने प्रयासों को आगे बढ़ाएं। भारतीय अदालतें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने से कभी नहीं हिचकिचाती हैं।इस अवसर पर बात करते हुए यूएन के प्रतिनिधि श्री शाओमी शार्प ने कहा कि आज प्रकृति, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण 3 मुख्य चुनौतियां हमारे सामने हैं। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद हैए खासकर भारत से, जो वर्तमान में कई क्षेत्रों में दुनिया को नेतृत्व प्रदान कर रहा है। उन्होने कहा भारत द्वारा पंचाअमृत मिशन पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाएगाए वहीं उन्होंने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि क्लाइमेट जस्टिस के लिए हमें एक साथ आना होगा और पर्यावरणीय समस्याओं के मद्देनजर कार्बन एमिशन में कमी करना हमारा मुख्य लक्ष्य है। यह उल्लेख करते हुए कि मानव ने हमेशा एक आरामदायक जीवन के लिए प्रकृति का शोषण किया है, हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री मोहम्मद रफीक ने कहा कि पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिए सुविचारित नीतियां और युवाओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। इस अवसर पर बात करते हुए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर स. सतनाम सिंह संधू ने कहा कि पर्यावरण एक वैश्विक मुद्दा है और इसके मद्देनजर चर्चा तथा भविष्य के संभावित परिणामों के लिए एक अनोखा मंच है, जिसने हज़ारों विद्यार्थियों सहित इस कार्यक्रम से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को अतिरिक्त ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस के दौरान वैश्विक जजोंए पर्यावरण विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों के साथ हुई विचार-चर्चा और परिणामों के आधार पर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी एक विस्तृत रिपोर्ट व रोडमैप तैयार करके भारत सरकार को पेश करेगी। उल्लेखनीय है कि 8 मई यानी आज इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के समापन समारोह के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपिंदर यादव चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी कैंपस में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे।