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भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक थे स्वामी विवेकानंद

जन्मदिवस व राष्ट्रीय युवा दिवस 12 जनवरी पर विशेष

5 Dariya News/ (मनोज रत्न)

पालमपुर 10-Jan-2020

भारत पुण्यभूमि है और इसे ईश्वरीय वरदान है कि जब भी देश पर कोई आपत्ति आती है तो कोई न कोई महान विभूति यहां मार्ग प्रसश्त करने के लिए अवश्य अवतरित होती है। पहले वर्षों की मुगलों व् बाद में अंग्रेजों की गुलामी से जूझते और निराशा में डूबे भारत को लम्बी नींद से जगाने के लिए एक महापुरुष जन्म लेता है, सन्यास धारण करता है और अध्यात्म के बल पर दुनिया में अपना लोहा मनवाता है। स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरुष थे जिनके विचारों को युग-युगांतर तक हर भारतीय अपने आचरण में उतारने के लिए प्रयासरत रहेगा। युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद ने दुनिया के सामने हिंदुत्व के विचारों को रखा और सनातन परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्ही के जन्मदिवस अर्थात 12 जनवरी को देश में राष्ट्रीय युवा दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है।कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त उस समय कलकत्ता हाईकोर्ट के एक वकील थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। सन् 1884 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि नरेंद्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यंत गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रातभर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते। युवा नरेंद्र ने धर्मग्रंथों के अलावा विविध साहित्यों का भी गहन अध्ययन किया। वह ब्रह्म समाज से जुड़े लेकिन वहां उनका मन नहीं रमा। एक दिन वह अपने मित्रों के साथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के यहां गए।

रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेंद्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे किंतु परमहंस जी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। परमहंस जी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंस जी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य बन गए। रामकृष्ण परमहंस ने उनके  हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था।  उन्होंने एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस से सवाल किया- 'मैं समय नहीं निकाल पाता। जीवन आपा-धापी से भर गया है।' इस पर रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया- 'गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।' स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुंब की नाजुक हालत की परवाह किए बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना गुरु सेवा में सतत हाजिर रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूंक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे। स्वामी विवेकानंद ने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया था, संन्यास धारण कर लिया था। उनके कुछ ऐसे विचार भी हैं जिनको अपनाकर कोई अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा हुई थी, जिसमें विवेकानंदजी ने भाषण दिया। इस भाषण के बाद उन्हें काफी ख्याति मिली थी। जब स्वामी जी ने अपने भाषण की शुरुआत "माई डियर ब्रदर एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका.. से की, तो ये सुनते ही सभागार में पांच मिनट तक केवल तालियां ही बजती रहीं। दरअसल, उनके लिए यह संबोधन बिल्कुल नया था। क्योंकि पश्चिम सभ्यता में लेडीज एंड जेंटलमैन कहकर संबोधित किया जाता है। इस सम्मेलन में उन्होंने हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया था। उनके इस भाषण के प्रभाव से ही कई अंग्रेजी लोग भारत की संस्कृति से प्रभावित हुए और आध्यात्मिक सुख के लिए भारत भी आए। स्वामी विवेकानंद के कुछ ऐसे विचार, जिनका ध्यान रखने पर आप सफलता हासिल कर सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद का कहना था कि पढ़ने के लिए एकाग्रता जरूरी है और एकाग्र होने के लिए ध्यान जरूरी है। वो कहते थे कि ध्यान से ही हम अपनी इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं। विवेकानंद कहा करते थे कि जो लोग आपकी मदद करते हैं, उन्हें कभी मत भूलो। जो आपको प्यार करते हैं, उनसे कभी घृणा मत करो। जो लोग तुम पर भरोसा करते हैं, उन्हें कभी भी धोखा मत दो। स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि दिन में कम से कम एक बार अपने आप से बात करिए। ऐसा न करके आप दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति से होने वाली मुलाकात को छोड़ रहे हो। वो कहते थे-  अपने मस्तिष्क को ऊंचे विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर दो। इसके बाद आप जो भी कार्य करेंगे, वह महान होगा। उनका कहा था कि जब तक तुम खुद पर भरोसा नहीं करोगे, तब तक तुम्हें ईश्वर पर भरोसा नहीं हो सकता। उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक तुम अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर लेते। उनका कहना था कि पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। किसी भी चीज से मत डरो। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो पलभर में परम आनंद लाती है।स्वामी विवेकानंद ने देश और दुनिया का काफी भ्रमण किया। वह नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे। उन्होंने रामकृष्ण के नाम पर रामकृष्ण मिशन और मठ की स्थापना की। चार जुलाई, 1902 को उन्होंने बेल्लूर मठ में अपने गुरुभाई स्वामी प्रेमानंद को मठ के भविष्य के बारे में निर्देश देने के बाद महासमाधि ले ली। भले ही स्वामी विवेकानंद आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके अनमोल विचारों को लोग आज भी याद करते हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में निराश हो तो उनके अनमोल विचारों को पढ़कर अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा ले सकता है। स्वामी विवेकानंद की कही गई प्रेरणादायी बातों से आज भी हमारे भीतर जीवन में कुछ कर दिखाने का हौसला आ जाता है। आज का युवा  स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रेरणा लेकर देश और समाज के रचनात्मक निर्माण में उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है।