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राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में शामिल 'अनुच्छेद 35 ए' हटाए जाने की संभावना

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नई दिल्ली 24-Jul-2019

दोबारा सत्ता में आने के बाद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार कश्मीर के राजनीतिक अखाड़े में कुश्तीगीरी के दौर का खात्मा करने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है। इन विकल्पों में परिसीमन आयोग का गठन भी शामिल है जिससे क्षेत्रीय असमानता को दूर किया जा सकता है। सरकार विवादास्पद अनुच्छेद 35 ए पर भी सक्रियतापूर्वक विचार कर रही है क्योंकि इसके कारण भारतीय संघ के साथ समन्वय में रुकावट आती है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भाजपा ने संवेदनशील मुद्दे पर अपने विचारों को स्पष्ट किया। भाजपा के संकल्प पत्र के अनुसार, "पिछले कुछ वर्षो में, हमने निर्णायक कार्रवाइयों और ठोस नीतियों के माध्यम से जम्मू एवं कश्मीर में शांति बनाए रखने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए हैं। हम विकास के मार्ग में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करने तथा राज्य के सभी क्षेत्रों में आय के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में कहा, "जनसंघ के समय से ही हम अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की बात करते रहे हैं। हम अपने इस रुख को दोहराते हैं। हम भारत के संविधान से अनुच्छेद 35 ए को समाप्त करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं क्योंकि इस अनुच्छेद के प्रावधान जम्मू-कश्मीर के अस्थायी निवासियों और महिलाओं के खिलाफ हैं। हमारा मानना है कि अनुच्छेद 35 ए प्रदेश के विकास में बाधक है।"

संकल्प पत्र के अनुसार, "हम राज्य के सभी निवासियों को सुरक्षित और शांतिपूर्ण माहौल प्रदान करने के लिए हर कदम उठाएंगे। हम कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए हर कोशिश करेंगे और हम पश्चिमी पाकिस्तान, पाकिस्तान अधिकृत जम्मू एवं कश्मीर (पीओजेके) और छांब से आने वाले शरणार्थियों को पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता देंगे।"माना जाता है कि घाटी के हालात से परिचित कई कश्मीरी पंडितों का इस्तेमाल बुधवार को एक मजबूत मंच के रूप में किया गया है। हालांकि मोदी सरकार सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 35-एक पर अपना रुख बताते हुए हलफनामा दायर करने में विफल रही। सर्वोच्च न्यायालय में इस मसले पर अगस्त 2014 से कई जनहित याचिकाएं लंबित हैं। लगातार दो महान्यायवादियों मुकुल रोहतगी और के. के. वेणुगोपाल ने प्रदेश में जून 2018 में राष्ट्रपति शासन लागू होने तक इस पर लगातार समय मांगा। आखिर इस अनुच्छेद 35 ए में ऐसा क्या है जिसका हर कोई उम्मीद लगाए हुए हैं। क्या इससे कश्मीरियों की राष्ट्रीयता पर कोई असर होगा? दरअसल यह संविधान में शामिल किया गया एक प्रावधान है जो जम्मू-कश्मीर की विधायिका को यह तय करने का अधिकार प्रदान करता है कि कौन सब प्रदेश के स्थायी निवासी हैं, जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और संपत्ति की खरीद में विशेषाधिकार के साथ-साथ छात्रवृत्तियां व अन्य जनकल्याण संबंधी सहायता प्रदान की जाए। इस प्रावधान के तहत आने वाले किसी भी कानून को संविधान या देश के अन्य कानून के उल्लंघन को लेकर चुनौती दी जा सकती है। 

पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश द्वारा 1954 में अनुच्छेद 35-ए को संविधान में शामिल किया गया। संविधान में शामिल 1954 के विवादास्पद आदेश में पंडित नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच 1952 में हुए दिल्ली समझौते का अनुपालन किया गया जिसके तहत भारत की नागरिकता को जम्मू-कश्मीर के राज्य का विषय बताया गया। राष्ट्रपति का आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (डी) के तहत जारी किया गया था। संविधान के इस अनुच्छेद के प्रावधान के तहत राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषय के हित के लिए संविधान में कुछ अपवाद और परिवर्तन करने की अनुमति प्रदान की गई है। लिहाजा, भारत सरकार की विशेष अवधारणा के प्रमाण के तौर पर अनुच्छेद 35-ए को संविधान में शामिल किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी के प्रावधान को शामिल किया गया। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) वी द सिटीजंस द्वारा दायर जनहित याचिका में अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 को चुनौती दी गई है। इसमें बताया गया है कि संविधान सभा में कश्मीर के चार प्रतिनिधि थे लेकिन संविधान में कोई विशेष दर्जा का उल्लेख नहीं किया गया। याचिका के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य बनाने और प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अनुच्छेद 370 महज एक अस्थायी प्रावधान था। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 35 ए भारत के खुलेपन की भावना के विरुद्ध है क्योंकि इसके तहत भारत के नागरिकों के बीच एक वर्ग पैदा होता है। इससे दूसरे प्रदेश के लोगों को जम्मू-कश्मीर में नौकरी पाने और संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं मिलता है जोकि संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।