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परम्परागत किस्मों के संरक्षण अधिनियम से किसानों को मिले लाभ: कुलपति

बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर द्वितीय-कार्यशाला आयोजित

5 Dariya News (मनोज रतन )

पालमपुर 30-Mar-2019

चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल की अध्यक्षता में आज बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर द्वितीय-कार्यशाला का आयोजन हुआ। अपने अध्यक्षीय भाषण में कुलपति  प्रो. सरयाल ने कहा कि भारत विश्व  के आठ जैव-विविधता केन्द्रों में शामिल है और विश्व के 34 जैव विविधता स्थलों में तीन जैव विविधता स्थल भारत में मौजूद हैं जिसमें हिमाचल प्रदेश अत्यन्त समृद्ध है। हिमाचल प्रदेश के कुल भोगोलिक क्षेत्र के 11 प्रतिशत भाग में खेती कार्य होते हैं तथा यहां किसान ही सही मायने में स्थानीय जैव-प्रजातियों व जर्मप्लाज़म के संरक्षक हैं जो उन्होंने सदियों से सहेज रखी हैं, अतः उनके इन कार्यों की पहचान करना और उन्हें सम्मानित करना अत्यन्त आवश्यक है।  कुलपति ने स्थानीय प्रजातियों के संरक्षण में किसानों की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन्हें विश्वविद्यालय में स्थापित बौद्धिक सम्पदा अधिकार की सेवाओं का लाभ उठाना चाहिए ताकि परम्परागत फसलों की प्रजातियों का पंजीकरण हो सके। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने हाल ही में चम्बा के किसानों की मक्का फसल की परम्परागत तीन किस्मों को पंजीकृत करवाने में भी मदद की थी। प्रो. सरयाल ने कहा कि कि कई कम्पनियां परम्परागत किस्मों के ट्रेड नाम से काफी मुनाफा कमा रही हैं लेकिन इनके असली संरक्षक देय लाभ से बंचित रह रहे हैं। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से कहा कि वे किसानों व अन्य सम्बन्धित लोगों को बौद्धिक सम्पदा अधिकार के बारे में जागरूक करें ताकि परम्परागत किस्मों के संरक्षक बौद्धिक सम्पदा अधिकार अधिनियम से लाभान्वित हो सकें।

कृषि विश्वविद्यालय तथा हिमाचल प्रदेश कांऊसिल फार साइ्र्रंस टैक्नोलोजी एण्ड एनवायरनमैंट, शिमला के संयुक्त तत्वाधान में इस कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें शिमला से सुश्री रितिका कंवर व मीतांक्षी शर्मा ने भाग लिया। इस अवसर पर राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के पूर्व समन्वयक तथा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् में बौद्धिक सम्पदा अधिकार के भूतपूर्व सहायक महानिदेशक डा. सुधीर कोछड़ ने बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर अपने विचार रखे।इस अवसर पर शोध निदेशक डा. डी.के. वत्स ने वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं से आहवान किया कि वे इस कार्यशाला में  बौद्धिक सम्पदा अधिकार के बारे में पूर्ण ज्ञान अर्जित करके ज्यादा से ज्यादा बौद्धिक सम्पदा अधिकार पंजीकरण करें तथा करवायें।कार्यक्र्रम में फसल सुधार विभाग के विभागाध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय के बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डा. हरीन्द्र कुमार चैधरी ने बौद्धिक सम्पदा प्रकोष्ठ की गतिविधियों तथा उपलब्धियों की विस्तार से जानकारियां दी तथा बौद्धिक सम्पदा के सभी पहलुओं और आयामों के महत्व को देखते हुए इन परम्परागत फसलों की किस्मों, आनुवांशिकी सम्पदाओं के पंजीकरण पर बल दिया ताकि किसानों के हित में इन सम्पदाओं का लाभकारी व्यापारिक दोहन हो सके। इस अवसर पर बौद्धिक सम्पदा अधिकार के अन्य सदस्यों डा. के.डी. शर्मा, डा. वाई.एस. धालीवाल एवं मधुमीत सिंह ने भी अपने विचार रखे।