5 Dariya News

राहुल गाँधी : खुद को किया साबित, भाजपा के गढ़ पर राहुल का पंजा

भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत के बाद कांग्रेस का स्वच्छ भारत अभियान

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15-Dec-2018

कहते हैं वक़्त बदलते देर नहीं लगती .......हर रात के बाद सुबह होती है ...इस माया के तीन नाम परशु, परसा, परस राम और न जाने कितनी कहावते है जो आज कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी पर फिट बढ़ती हैं।कल तक जो राहुल गाँधी को किन किन नामों से पुकारते थे आज उनके लिए राहुल गाँधी के नाम के मायने ही बदल गए हैं। राहुल गाँधी आज 2.0 हो गए है। कल तक जो लोग कांग्रेस को श्रद्धांजलि देते दे वो आज कांग्रेस को बधाईआं दे रहे है। पिछले साढ़े 4 सालो में राहुल गाँधी पर न जाने कैसे कैसे तंज कसे गए पर यह राहुल ही थे जिन्होंने अंदर अंदर पार्टी संघठन को मजबूत कर कांग्रेस की वापसी करवाई है। 5 राज्यों के चुनाव परिणामों ने जहां हाशिये पर पड़ी कांग्रेस में संजीवनी का काम किया है वहीं सभी भाजपा विरोधी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया है की कल तक जिस कांग्रेस के यह हालत थे की बगैर गठबंधन के वो भाजपा के आगे टिक ही नहीं सकती तो फिर आज 3 बड़े हिंदी भाषी राज्यों छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जहां भाजपा 15 सालो से और राजस्थान जहां भाजपा 5 सालो से राज कर थी, को कैसे पटखनी दी है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पिछले 15 सालो से भाजपा का अभेद किला माना जाता था और जरा सोचिये 15 सालो में किसी भी पार्टी के कार्यकर्तों और सगठन की घज़ियाँ उड़ जाती हैं। राहुल गाँधी ने बगैर किसी गठबंधन के अपने कार्यकर्तों के भरोसे इन राज्यों में फ़तेह हासिल की। इन तीन राज्यों में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन से उन तमाम लोगों के मुँह को ताले लग गए है जो राहुल गाँधी को नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले कुछ भी नहीं समझते थे। ये राहुल गाँधी है हैं जिन्होंने विसम परस्थितियों में भी अकेले अपने दम पर 5 राज्यों में चुनाव लड़ा और शानदार वापसी करते हुए भाजपा की तीनो विकटें गिरा दी। 2019 से ठीक पहले हुए इस सेमीफाइनल ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है। 

भाजपा प्रवक्ता इन चुनावो में भाजपा की करारी शिकस्त को नरेंद्र मोदी की हार न मानने की वजाय राज्य सरकारों पर इस हार का ठीकरा फोड़ रहे है और बार बार बार यह भी कह रहे है की 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर इसका कोई असर नहीं होगा तो यह सिर्फ अपने मन को तसल्ली देने वाली बात से जायदा कुछ नहीं है। ये क्या बात हुई की जीते तो सेहरा नरेंद्र मोदी के सर पर और हारे तो राज्य सरकार ज़िम्मेवार। क्रेंद की नीतियों का राज्य सरकारों पर कैसे सीधा असर पड़ता है यह जानने के लिए यहाँ शिवराज सिंह चौहान का ज़िकर करना भी जरूरी हैं जिन्होंने 15 सालों तक मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री के तौर पर कार्य किया और विरोधी लहर के चलते भी मात्र 7 सीटों की कमी से लगातार चौथी बार सरकार बनाने से चूक गए। अगर केंद्र सरकार की नीतियों से लोग खुश होते तो शिवराज सिंह चौहान को हरा पाना नामुमकिन था। हक़ीक़त में नोटेबंदी जीएसटी और राफेल जैसे मुद्दों को राहुल गाँधी और कोंग्रस ने खूब भुनाया। जिसका सीधा असर भाजपा शासित इन तीन राज्यों में पड़ा। मध्य प्रदेश के लिए भाजपा का नारा था अब की बार 200 के पार इसे क्या कहेंगे की 5 राज्यों को मिला कर भी भाजपा 200 के आकड़े को नहीं छु पायी। 11-12-17 को राहुल गाँधी ने कुछ क्षेत्रों में सिमटी हुई कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली थी और 11-12-18 को 5 राज्यों में हुए चुनावो में कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में जहाँ अपने बल पर बहुमत प्राप्त किया वहीँ 15 सालो से छत्तीसगढ़ में अंगद की तरह पाव जमा कर बैठी भाजपा को उखाड़ फेका। हमे गुजरात के चुनाव को भी नहीं भूलना चाहिए जहाँ राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। भाजपा का भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने का सपना अब सपना ही रह गया है और वैसे भी सपने कब सच हुआ करते हैं। 

India ka naya Swachh Bharat Abhiyan. #CongressWinsBIG pic.twitter.com/dgCzz6lUOY

— Congress (@INCIndia) December 12, 2018

जैसे भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का अभियान चलाया था वैसे ही कांग्रेस ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरआत की है। कांग्रेस को जीत के जश्न में डूबने की वजाय यह ख्याल रखना होगा की जैसे भाजपा ने उन्हें हलके में लेकर भारी भूल की है ठीक वैसे ही वे भाजपा को हलके में न ले वरना परिणाम कुछ भी हो सकते है। भाजपा अब पहले से भी मजबूत पार्टी है और वापसी करने में समर्थ है। कांग्रेस को एक बात और भी ध्यान में रखनी होगी के वे क्षेत्रीय पार्टियों को भी हलके में न ले मिजोरम और तेलगाना में कांग्रेस का क्या हश्र हुआ है यह यह इस बात को प्रमाणित करता है की हर दल का अपने कोई न कोई वज़ूद और पकड़ होती है। क्षेत्रीय पार्टियों की बात करे तो आज भाजपा के लिए इन पार्टियों को लेकर भी दिक्क़ते बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, तेलुगु देशम पार्टी के नारा चंद्रबाबू नायडू जहां भाजपा को अलविदा का चुके है। वहीं भाजपा पीडीपी से नाता तोड़ चुकी है। पंजाब से उनकी सहयोगी अकाली दल में पहले वाला दम खम नज़र नहीं आ रहा है। वहीं उनकी सहयोगी पार्टी शिवसेना भी भाजपा से ना-खुश है और मौका मिलते ही भाजपा पर प्रहार करने से नहीं चुकती है। क्षेत्रीय पार्टियों की बात हो तो यहाँ सपा और बसपा का ज़िकर करना भी ज़रूरी है जो भाजपा के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं है जो कांग्रेस के साथ तो गठबंधन कर सकता है या बाद में समर्थन दे सकता है मगर भाजपा के साथ नहीं जा सकता। ज़िकर योग है की इस गठबंधन ने मार्च 2018 में हुए उप चुनावो में उत्तर प्रदेश की दोनों लोक सभा सीटों गोरखपुर और फूलपुर पर भाजपा को करारी शिकस्त दी थी। ध्यान रहे की गोरखपुर योगी आदित्यनाथ और फूलपुर केशव प्रसाद मौर्य की परंपरागत सीटें थी। योगी आदित्यनाथ तो 26 सालो से ये सीट जीतते चले आये थे। 2019 में होने वाले लोक सभा चुनावो के लिए अगर सपा-बसपा फिर से गठबंधन कर लेती है तो जहां यह भाजपा के लिए बड़ा नुक्सान है वहीं कांग्रेस के लिए यह अच्छे संकेत है। आज हालत बदलते नज़र आ रहे है । क्षेत्रीय पार्टियों का झुकाव कांग्रेस की तरफ होने लगा है। कांग्रेस ने ज़बरदस्त वापसी की है। ऐसा लगने लगा है की जैसे 2014 के बाद मोदी लहर के चलते भाजपा ने एक के बाद एक राज्यों में जीत का परचम लहराया था।वैसे ही कांग्रेस आने वाले समय में दोबारा उन राज्यों काबिज़ हो सकती है।