5 Dariya News

रोहड़जगीर के किसानों ने धान की खड़ी फसल में गेहूं की बिजाई की

ना पराली जलाई और ना ही ट्रैक्टर से गेहूं की बिजाई, फिर भी 23 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूं की उपज

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पटियाला 05-Nov-2018

धान की फसल लेने के बाद खेतों में बची पराली को आग लगाने से होने वाले प्रदूषण के बीच पटियाला-पिहोवा रोड़ पर स्थित गांव रोहड़जगीर के किसानों ने धान की खड़ी फसल में ही गेहूं की बिजाई कर पंजाब के किसानों के परंपरागत ज्ञान को एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि आखिर क्यों पंजाब के किसान को अन्नदाता कहा जाता है।गांव रोहड़ जगीर के किसान गोगी सिंह, जगमीत सिंह और जोनी रोहड़ जगीर बताते हैं कि उन्होंने बीते कई सालों ना तो धान की पराली जलाई और ना ही खतों में ट्रैक्टर से गेहूं की बिजाई की है फिर भी 23 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूं की उपज प्राप्त की है। वे बताते हैं कि खेतों में खड़ी धान की फसल में अंतिम पानी लगाने से ठीक पहले और धान की फसल की कटाई से 15 से 20 दिन पहले गेहूं के बीज का छिट्टा दे दिया जाता है। इसके लिए 250 रूपये प्रति एकड़ पर गांव की ही लेबर मिल जाती है। इस विधी से ट्रैक्टर व उसके डीजल पर आने वाला खर्च बिलकुल समाप्त हो जाता है। हालांकि गेहूं का बीच तुलनात्मक रूप से कुछ ज्यादा लगता है। गोगी सिंह बताते हैं कि एक एकड़ में लगभग 55 किलो गेहूं का छिट्टा दिया जाता है, इसमें से लगभग 45 किलो बीज काम कर जाता है। ऐसे में खर्च में खासी कमी आ जाती है और पर्यावरण भी साफ सुथरा रहता है।

गोगी सिंह कहते हैं कि तीन चार दिन में गेहूं के पौधे निकल आते हैं और 10 से 15 दिनों बाद फसल की कटाई के दौरान चलने वाले ट्रैक्टर आदि उपकरणों के चलने से पहले ही गेहूं के पौधे जड़ पकड़ लेते हैं और टायरों से दबने के बाद गेहूं का पौधा दूसरे महीने में यूरिया, डीएपी खाद व दिसंबर में पानी लगने के बाद खेत पूरी तरह से लहलहाने लग जाता है, हालांकि पहले महीने गेहूं के बीज के ना जमने के चलते खेत कुछ खाली भी दिखाई देता हैै, पर कुछ ही दिनों में यथावत दुरुस्त हो जाता है। रोहड़ जगीर व आसपास के गांवों में धान की 1121 किस्म और बासमती किस्मों सीएसआर आदि में गेहूं के बीज 2967 किस्म का परंपरागत तरीके से छिट्टा पिछले 8-10 सालों से दिया जा रहा है और आग मुक्त कृषि की जा रही है। इस प्रकार से की गई बिजाई के लिए कंबाईन का इस्तेमाल नहीं करते और लेबर हाथ से ही फसल की कटाई करते है और पराली को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिससे गांव में रोजगार भी बढ़ा है, हालांकि सही तरीके से कंबाईन के इस्तेमाल पर भी गेहंू के चार से पांच इंच के पौधे को कोई नुकसान नहीं होता।दिलचस्प है कि गोगी सिंह ने अपने अनुभव को फेसबुक व यूटयूब पर वीडियो बना कर भी डाला है। इस संबंध में वे कहते हैं कि पहली बार में कई प्रकार के प्रश्न उठाए गए और फर्जी होने के आरोप भी लगे लेकिन अब नाम, पता, नंबर सहित दी गई जानकारी के बाद राज्य के अन्य जिलों में कई किसानों ने आधे से एक एकड़ में तजुर्बा करने की बात कही जा रही है।