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लोगो के विचार : दीपावली प्रदूषण की नहीं, प्रकाश की विजय का पर्व बने

5 Dariya News (अरुण कुमार)

कुराली 28-Oct-2018

दीपावली के समय दो विरोधी महकमे एक साथ बेहद सक्रिय हो जाते हैं. एक आतिशबाजी उद्योग दूसरा प्रदूषण विभाग. दीपावली से ठीक पहले अखबारों और टीवी पर सरकारी विज्ञापनों की भरमार होती है. इनका संदेश का मजमून यही होता है कि आतिशबाजी न करें और शहर को प्रदूषण मुक्त बनाए रखें.आतिशबाजी से सिर्फ धुआं नहीं निकलता. उससे खुशी, उमंग, त्यौहार के होने का अहसास भी फूटता है. बच्चे से लेकर बूढ़ों तक ऐसा कोई नहीं, रंगीन आतिशबाजी जिसका मन न मोह लेती हो. सांस लेना कितना भी दूभर हो जाए, जोश, उमंग और त्यौहार के नशे में पर्यावरण के खराब होने की चिंता कहां सांस ले पाती है? ऐसी चीज को छोडऩा कितना ज्यादा निरुत्साही है जो उत्साह और खुशी से भर देती हो.दीपावली त्यौहार पर लोगो के विचार अलग अलग है 

पंचायत यूनियन पंजाब प्रधान हरमिंदर मावी अनुसार इस देश की बहुत कम ही आबादी पटाखे जलाती है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी के सामने दो वक्त के खाने का ही सवाल इतना बड़ा है, कि उसके लिए पटाखे जलाना सपना है। लेकिन छोटे-बड़े शहरों में रहने वाले सभी बच्चों को एक सी जहरीली हवा में सांस लेना होता है। जिन्होंने एक भी पटाखा नहीं जलाया उन्हें भी और जिन्होंने ढेर सारे पटाखे जलाए उन्हें भी। इन्हे कहा कि बच्चो को अधिक से अधिक पटाखों से होने वाले नुक्सान के बारे में शिक्षित किया जाये तांकि पर्यावरण को नुक्सान न हो। 

प्रभ आसरा संस्था के मुख्य प्रबंधक भाई शमशेर सिंह पडियाला अनुसार दूषित वातावरण मनुष्य की सेहत के लिए बहुत हानिकारक है और इसके साथ जमीन, पेड़ों पर बने हुए घोसलो में बैठे पक्षियों और पालतू जीवो के दिमाग पर भी इसका  बहुत बुरा असर पड़ रहा है। आप रोज देखते हो की जरा सी असाधारण आवाज होने से खासकर रात को कुत्ते मोर और जीव कैसे कुर्लाने लग जाते हैं। जब आसपास सभी जगह यही कुछ होने लगा जाएगा तो यह विचारे क्या करेंगे कहां छुपेगे। हम अपनी पल भर की खुशी के लिए कहीं ना कहीं इन जीवो को दुखी कर रहे हैं।

समाजसेवी सुदेश मुंधो अनुसार ऐसे पटाखों की खोज की जाए जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। आज के समय में विज्ञान ने कितनी तरक्की कर ली है। एक से बढ़कर एक आविष्कार हो रहे हैं हर क्षेत्र में. सरकार को पटाखा निर्माताओं को कम धुआं और आवाज करने वाले 'एनवायरमेंट फ्रेंडली पटाखों के आविष्कार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। पटाखे बनते समय ही यह सतर्कता बरती जानी चाहिए कि उनमें से कम से कम जहरीली गैस निकले और उनसे होने वाला शोर  न्यूनतम हो। 

दविंदर सिंह बाजवा प्रधान बाबा गाजी दास क्लब अनुसार दीपावली का त्यौहार हमारे देश का बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार को सिक्खों में बंदी छोड़ दिवस के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस  त्यौहार पर  चलने वाले पटाखों से हुए प्रदूषण का सीधा असर वातावरण पर हो रहा है और यही प्रदूषण वातावरण को दूषित कर सीधा जानलेवा बीमारियों को दावत दे रहा है। जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि दीपावली  के त्यौहार पर सिर्फ और सिर्फ दीये और मोमबत्ती जलाकर ही मनाया जाए।

नंबरदार राज कुमार सियालबा अनुसार अगर पटाखे जलाने ही नहीं तो वे बने ही क्यों हैं? वे बिक क्यों रहें हैं? क्या आतिशबाजी उद्योग अरबों रुपये लगाकर पटाखे इसलिए बनाता है कि कोई उन्हें न खरीेदे? जिन चीजों के प्रयोग पर पाबंदी के लिए सरकार को इतनी मशक्कत करनी पड़े, इतने विज्ञापन देने पड़ें, उनके उत्पादन की अनुमति ही वह क्यों दे रही है? बीड़ी, सिरगेट, शराब, गुटखा के साथ पटाखे भी ऐसी चीज हैं जिनके उत्पादन पर कोई रोक नहीं, लेकिन जिनका प्रयोग न करने को लेकर सरकार बेहद सचेत दिखने का प्रयास करती है! यह विरोधाभास क्यों? 

स्टेट अवार्डी किसान दलविंदर सिंह किशनपुरा अनुसार अब हर किसान धान की पराली को आग  ना लगाकर जागरुक हो रहा है। वहीं दीपावली के त्यौहार पर आतिशबाजी से भी किनारा करने की जरूरत है। क्योंकि दिन प्रतिदिन बढ़ रहा प्रदूषण हमारे लिए किसी दिन मौत का कारण बन सकता है। हम सभी को जागरूक होने की जरूरत है और अपनी खुशी को दीया जलाकर सांझा करें और अपने वातावरण को प्रदूषण रहित बनाएं।