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मूक, बधिर बच्चों के इलाज के लिए कॉक्लीयर इमप्लांट पर जोर, जितना जल्दी इलाज, उतना बेहतर

5 Dariya News (विजयेन्दर शर्मा)

कांगड़ा 01-Sep-2018

जो बच्चे जन्म से ही बोल, सुन नहीं सकते उनके लिए कॉक्लीयर इम्पलाट वरदान साबित हुआ है। इसी विषय पर जागरूकता फैलाने के मकसद से आज फोर्टिस अस्पताल महोली के ईएनटी, हेड एंड नेक कैंसर सर्जरी के निदेशक डा. अशोक गुप्ता ने आज यहां व्याख्यान दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों के शुरुआती दिनों में ही कॉक्लीयर इमप्लांट करा देना चाहिए। ये इसलिए क्योंकि ज्यादातर बच्चों में रोग की पहचान नहीं हो पाती या फिर बहुत ही देरी से होती है। डा. गुप्ता ने सलाह दी कि विशेषज्ञ के पास जाकर नियमित रूप से जांच करवानी चाहिए ताकि रोग की पहचान जल्द हो सके और जीवनस्तर सुधारने के लिए शोधक सर्जरी की जा सके।    

कॉक्लीयर इमप्लांटेशन के लिए करीब 2 घंटों का समय लगता है और इसके लिए मरीज़ को दो से तीन दिन अस्पताल में बिताने पड़ते हैं। इसके तीन हफ्तों बाद इम्प्लांट को ऑन कर दिया जाता है। सफलता को सुनिश्चित करने वाले कारकों में सर्जरी की तकनीक के अलावा सही कैंडिडेट का चयन करना, सही आंकलन करना और इमप्लांट की उच्च गुणवत्ता शामिल है। इसके अलावा एक और प्रमुख कारक है। ऑपरेशन पश्चात स्वास्थ्यलाभ- मतलब ये कि बच्च का बोलना, सुनना सुनिश्चित करने के लिए स्पीच थेरेपी। 

सबसे अच्छे नतीजे तब मिलते हैं जब इमप्लांट बचपन में ही किया जाए। छह महीने की उम्र के बाद जितना जल्दी हो सके। ये इसलिए क्योंकि जब बच्चा छह साल का होते-होते स्पीच डेवेलपमेंट के लिए मस्तिष्क का जो हिस्सा होता है वो विशुअल एरिया (दृष्टि संबंधी क्षेत्र) द्वारा अधिग्रहित कर लिया जाता है, सो जितना जल्दी हो, उतना सही।नवजात शिशुओं में बधिरपन की व्यापकता 1000 में एक है। भारत सरकार ने इस मामले में दखल देते हुए स्क्रीनिंग टेस्ट के तौर ओटोअकाउस्टिक एमिशन की शुरुआत की है जिसे अस्पताल में पैदा हुए हर बच्चे पर किया जाना ज़रूरी है, लेकिन इसे सख्ती से अमल में नहीं लाया जाता। ये टेस्ट सिर्फ हाई रिस्क मामलों में ही किया जाता है यानी वो मामले जिन्हें जन्म के तुरंत बाद बेहद ज्यादा पीलिया हो या फिर वो बड़ी देर बाद रोए हों। ऐसे बच्चों का आंकलन फील्ड ऑडियोमीट्री,  एबीईआर व एएसएसआर के ज़रिए किया जाना चाहिए। इसके बाद टेम्पोरल बोल की एमआरआई या सीटी स्कैन से ये देखना चाहिए कि बच्चे का कॉक्लीयर (सुनने का अंग) विकसित हुआ है या नहीं। डा. गुप्ता करीब 400 से ज्यादा कॉक्लीयर इमप्लांट कर चुके हैं।