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ज्वालामुखी में यज्ञ में पूर्णाहुति के साथ नवरात्र संपन्न

5 Dariya News (विजयेन्दर शर्मा)

धर्मशाला 25-Mar-2018

देश दुनिया में अपनी दिव्यता के लिये मशहूर शक्तिपीठ ज्वालामुखी में विशव शांति के लिये आयोजित यज्ञ में पूर्णाहुति के साथ नवरात्र संपन्न हो गये। यज्ञ में ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला व मंदिर न्यास के सदस्य व प्रशासनिक अधिकारियों ने शिरकत की।  रविवार को नवमी के दिन यहां श्रद्धलुओं ने दर्शन कर पूजा अर्चना की। बड़ी तादाद में श्रद्धालु यहां दिन भर डटे रहे। मंदिर प्रशासन  की ओर से नवरात्र मेला के दौरान यहां आयोजित यज्ञ में आज पूर्णहुति डाली गई। वैदिक मंत्रोचारण के साथ विशेष पूजा में मंदिर के पुजारियों ने भाग लिया। इस दौरान ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला, मंदिर न्यास के सदस्य भी उपस्थित रहे। नवमी के दिन ज्वालामुखी में विशेष पूजा की जाती है।  जिसमें बड़ी तादाद में स्थानीय लोग भी भाग लेते हैं।  मंदिर में विशाल भंडारा भी आयोजित किया गया । इस अवसर पर कन्या पूजन भी किया गया।विशेष बात यह है कि ज्वालामुखी मंदिर गर्भग्रह में आमतौर पर यज्ञ नहीं होता। नवरात्र के दौरान अंतिम नवरात्र को नवमी के दिन यहां यज्ञ होता है।  इस दुलर्भ दिन के लिये साल भर इंतजार करना पड़ता है। 

पंडित प्रबल शास्त्री ने बताया कि  नवरात्र के नवें दिन माँ दुर्गा के नवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है ।  उन्होंने बताया कि आज ज्वालामुखी में पूर्णाहुति के साथ नवरात्र संपन्न हो गये।  उन्होंने बताया  कि दुर्गा की नवम शक्ति का नाम सिद्धि है। ये सिद्धिदात्री हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माता इन्हीं को माना गया है। उन्होंने बताया कि  मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अद्र्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से 'निर्वाण चक्र' जाग्रत हो जाता है।