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कुल्थी की महत्वपूर्ण तकनीकें कीं विकसित, भारत व् जापान के संयुक्त शोध में मिली सफलता

5 Dariya News (मनोज रतन)

पालमपुर 06-Dec-2017

चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में जीनोम अनुक्रम के माध्यम से कुल्थी के विकास हेतु महत्वपूर्ण तकनीकें विकसित की गई हैं।कुल्थी की विशेष प्रजाति एच.पी.के.4 (बैजु) में जीनोम अनुक्रम जारी करते हुए कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने कहा कि विश्वविद्यालय की यह एक विशेष शोध रिपोर्ट है जिसमें वैज्ञानिकों की टीम ने किसी फसल के जीनोम अनुक्रम की सम्पूण श्रृंखला तैयार कर ली है। उन्होंने कहा कि इस शोध कार्यक्रम के लिए दो वर्ष पूर्व भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग व जापानी विज्ञान प्रोत्साहन सोसायटी द्वारा धन उपलब्ध करवाया गया था। कुलपति ने डा. राकेश कुमार चाहौता, कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफैसर डा. टी.आर. शर्मा और चीबा जापान स्थित कजुसा पौध जीनोम प्रयोगशाला, के अध्यक्ष डा. सचिको ईसोब की कड़ी मेहनत की प्रशंसा की और कहा है कि इस फसल के जीनोम अनुक्रम के बारे इससे पहले जानकारियां उपलब्ध नहीं थी।

इस अवसर पर शोध निदेशक डा. आर.एस. जमवाल तथा विभागाध्यक्ष डा. एच.के. चैधरी ने इस शोध के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि कुल्थी मूल रूप से उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र की स्वदेशी फलियों की प्रजाति है जो भरपूर पोषक तत्वों व औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है और यह फसल वर्षा आधारित व सीमान्त कृषि के लिए अत्यन्त उपयुक्त है और शुष्क भूमि में जोखिम को पूर्ण करने की क्षमता रखती है। इसका एडिमा, बवासीर, और गुर्दे की पथरी के ईलाज में भी उपयोग होता है। डा. राकेश चाहोता ने इस फसल पर शोध अध्ययन तथा कुल्थी के वाणिज्य सम्भावनाओं व प्रयोग पर बल दिया। जापान से मुख्य शोध अन्वेषक ने इस फलीदार फसल के जीनोम अनुक्रम के के बारे में विस्तार से जानकारी दी और कहा कि इस फसल प्रजाति के 36,000 जीनों की पहचान की जा चुकी है जिससे भविष्य के प्रजनक कार्यक्रमों के लिए लाभ उठाया जा सकता है। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक तथा स्नातकोतर विद्यार्थी उपस्थित थे।