5 Dariya News

संविधान को अपनी चित्रकारी से सजाने वाले नंदलाल बोस को बिसराते जा रहे लोग

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पटना 03-Dec-2017

आज चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर बिहार सरकार चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह मना रही है परंतु हकीकत है कि भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाने और संवारने वाले वरिष्ठ चित्रकार गांधीवादी नंदलाल बोस को आज लोग भूलते जा रहे हैं। कई गांधीवादियों का दावा है कि आज भी नंदलाल बोस की चित्रकला को गांधीवादी कला दृष्टि के सामने कोई भी कलाकार नहीं ठहरता। स्वयं महात्मा गांधी ने बोस के चित्रों की तारीफ की है। बोस का गांधी पर बनाया गया चित्रकारी 'लिनोकट' विश्व प्रसिद्ध हो चुका है। गांधी जब दांडी यात्रा को निकले थे, तब उनके हाथ में लाठी और वे सुदृढ़ कदमों से आगे बढ़ते गए। बोस के बनाए 'लिनोकट' में निरंतर बढ़ते गांधी, उसमें विराट लगते हैं, उसमें गांधी के देह से अधिक उनकी तेजोदीप्त आत्मा का चित्रण हुआ है। 

गांधीवादी िंचतक कुमार कृष्णन बताते हैं कि महात्मा गांधी ने बोस के बारे में कहा था, "नंदलाल बोस ने मेरी कल्पना को साकार कर दिया है वे सृजनात्मक कलाकार है, मैं नहीं हूं। भगवान ने मुझे कला का विवेक तो दिया है, लेकिन इसे मूर्त रूप देने का कौशल नहीं दिया है।" नंदलाल बोस का जन्म तीन दिसंबर, 1883 को बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में हुआ था। मुंगेर में ही पले-बढ़े शिल्पाचार्य नंदलाल बोस कला अध्ययन के लिए शांति निकेतन गए और सारे कला जगत के होकर रह गए। 

आज बिहार में जन्मे नंदलाल के विषय में टीवी के चर्चित कार्यक्रम 'कौन बनेगा करोड़पति' में प्रश्न भी पूछा गया, परंतु हकीकत है कि बिहार में बहुत कम ही लोग हैं जो नंदलाल के विषय में जानते हैं। मुंगेर के पुलिस अधीक्षक के पद पर रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ध्रुव नारायण गुप्ता की पहल पर उनकी जन्मस्थली खड़गपुर में उनकी एक प्रतिमा जरूर स्थापित कर दी गई परंतु आज उनको याद भी नहीं किया जाता।पुलिस उपमहानिपरीक्षक पद से अवकाश प्राप्त और नंदलाल बोस के विषय शोध करने वाले गुप्ता कहते हैं, "चित्रकारी की प्रेरणा नंदलाल को अपने माता-पिता और आस-पास के परिवार के सदस्यों से मिली। 

उनकी मां शिल्पकला में निपुण तथा पिता स्थापत्यकार थे। इसके अलावे आसपास में कुम्हार, लोहार, बढ़ई लोगों से उन्होंने चित्रकारी सिखी। वर्ष 1922 से 1951 तक शांतिनिकेतन के कलाभवन में प्रधानाध्यापक रहे नंदलाल की मुलाकात उसी दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई। नेहरू ने बोस को संविधान की मूलप्रति को चित्रकारी से सजाने के लिए आमंत्रित किया। संविधान की मूलप्रति को सजाने में चार साल लग गए। गांधीवादी चिंतक और पत्रकार प्रसून लतांत बताते हैं, "वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा है। संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए गए हैं। 

उनके ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। सुनहरे बार्डर और लाल पीले रंग की अधिकता लिए हुए, इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ की गई है।"वे कहते हैं कि इसके अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बॉर्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। ये वही चित्र हैं, जो सामान्यत: मोहनजोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं। इस बॉर्डर में शतदल कमल को भी जगह दी गई है। भारतीय संस्कृति में कमल का महत्व है। इन फूलों को समकालीन लिपी में लिखे अक्षरों में घेरा गया है।बोस अपनी चित्रकारी के लिए मिट्टी के रंगों और हाथ से बने नेपाली कागज का इस्तेमाल करते थे। 

उनके द्वारा बनाए गए हजारों चित्र तथा शांति निकेतन में बनाए गए भित्तिचित्र में भी उन्होंने मिट्टी के साधारण रंगों का ही इस्तेमाल किया था। कुमार कृष्णन कहते हैं कि बोस के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित चित्र भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। स्वतंत्रता के बाद नागरिकों को सम्मानित करने के लिए पद्म अलंकरण प्रारंभ हुए, तो इनके प्रतीक चिह्न भी नंदलाल ने ही बनाए। वर्ष 1954 में वे स्वयं भी 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किए गए। उन्होंने 'शिल्प-चर्चा' नामक एक पुस्तक भी लिखी।16 अप्रैल 1966 को 83 वर्ष की आयु में इस महानशिल्पी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 

बोस को कृतज्ञ राष्ट्र ने ढेर सारे सम्मान दिए। उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया। बोस की जन्म भूमि मुंगेर के हवेली खड़गपुर में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'संभवा' द्वारा उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। भागलपुर में कलाकेंद्र की स्थापना की और वहां भी उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित है। मुंगेर में सरकार द्वारा एक संग्रहालय का निर्माण अवश्य करवाया गया है, परंतु नंदलाल को इसमें कोई विशेष जगह नहीं दी गई है। आज कला प्रेमियों के आदर्श रहे नंदलाल को विस्मृत तो नहीं किया जा सकता है, परंतु गांधीवादी चिंतकों का कहना है कि न केवल सरकार बल्कि आम लोग भी नंदलाल को बिसराते जा रहे हैं।