5 Dariya News

'90 फीसदी श्रमिकों के लिए परेशानी का सबब बनी नोटबंदी'

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लखनऊ 08-Nov-2017

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नोटबंदी के फैसले के पूरे एक साल होने पर इसके विरोध में जनता दल (यूनाइटेड) और वामपंथी दलों ने संयुक्त रूप से अखिल भारतीय 'काला दिवस' मनाया और राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा। ज्ञापन में विपक्ष ने कहा कि किसानों से लेकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 90 फीसदी मजदूरों को इस फैसले से खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ज्ञापन में कहा गया, "आठ नवंबर, 2016 को प्रधानमंदी नरेंद्र मोदी ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 500 तथा 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने का फरमान सुनाया था। यह घोषणा करते हुए मोदी ने तीन उद्देश्यों का उल्लेख किया था कि इससे देश में काला धन नष्ट होगा, आतंकवादी आर्थिक रूप से असहाय हो जाएंगे तथा देश में नकली नोटों का कारोबार बंद हो जाएगा।" ज्ञापन में कहा गया कि देश भर में लोगों का मानना है कि इससे कोई उद्देश्य हासिल नहीं हुआ, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा है। विमुद्रीकरण की वजह से देश के प्रत्येक नागरिक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ा। किसानों से लेकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 90 फीसदी मजदूरों को इस फैसले से खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। 

माकपा के राज्य सचिव डॉ. हीरालाल यादव ने कहा, "एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 2016-17 के इस सबसे बड़े आर्थिक फैसले ने अर्थव्यवस्था के प्रमुख भागों को गंभीर रूप से चोट पहुंचाई है। काम करने के बजाय लोग बैंक के आगे कतार में खड़े रहे। भीषण सर्दी में लोग कतारबद्ध रहे और रात के दौरान भी बैंकों के बाहर लाइन में कंबल ले जाकर वहीं सोते थे। इस दौरान कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई। कई लोगों से उनका काम छिन गया और मजबूरन उन्हें अपने गांव का रुख करना पड़ा।"भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा, "सरकार ने इस क्रम में अतिरिक्त व्यय किया था और इस प्रक्रिया में 55,000 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो पैसे बर्बाद हुए उसका उपयोग देश में गरीब लोगों के लिए किया जा सकता था। कई छोटे और कुटीर कारोबार बंद हुए, जिनका प्रभाव दलितों पर पड़ा एवं उत्पादन तथा देश में करोड़ों लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ।"गिरीश ने कहा कि सरकार गैर-योजनाबद्ध और अपरिपक्व निर्णय के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर में 5.7 फीसदी की गिरावट आई है जो कि तीन साल में सबसे कम है। चूंकि सरकार के इस निर्णय के कारण देश का हर नागरिक विभिन्न तरीकों से परेशान रहा और अब भी समस्या का समाधान नहीं निकला है।