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जलवायु परिवर्तन के लिए व्यापक वैश्विक रणनीति आवश्यकः वीरभद्र सिंह

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शिमला 24-Aug-2017

जलवायु परिवर्तन पर व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के साथ कार्य करने के उद्देश्य से विधानसभा सदस्यों, प्रशासनिक सचिवों तथा विभागाध्यक्षों के लिए ‘जलवायु परिवर्तन-हिमाचल प्रदेश में अनुकूलन की अपेक्षा’ विषय पर आज यहां होटल पीटरहॉफ में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का आयोजन राज्य विधानसभा तथा पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाना व शिक्षित करना तथा इस तरह की नीतियों पर बल देना है, ताकि भविष्य में स्थानीय लोगों की अनुकूलक क्षमता को सुदृढ़ किया जा सके।श्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि भारत के समक्ष विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटते हुए देश की बढ़ती आर्थिक प्रगति को कायम रखने की चुनौती है। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकीय निरन्तरता में वृद्धि के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन को अपनाने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है।मुख्यमंत्री ने कहा कि बाढ़ जैसी आपदाओं के अतिरिक्त देश में आए दिन कोई न कोई प्राकृतिक विपति सामने आ रही है। हिमाचल भी इससे अछूता नहीं है। भारी भू-स्खलन, बादल फटना तथा ग्लेशियर के पिघलने की घटनाएं जलवायु स्थितियों में परिवर्तन की ओर इशारा कर रही हैं तथा इन घटनाओं से जान व माल का भारी नुकसान हो रहा है। 

वीरभद्र सिंह ने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चुनौती का हल ढूंढ़ने के लिए एक जिम्मेदार तथा जागरूक नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए।मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल एक कृषि प्रधान प्रदेश है, इसलिए हमें वनों के संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के प्रचार व जागरूकता तथा ऊर्जा क्षमता तकनीकों पर बल देना चाहिए, ताकि प्रदेश की कृषि-आर्थिकी समृद्ध बनी रहे।श्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि वर्ष 1950 में बागवानी के तहत केवल 792 हेक्टेयर क्षेत्र था, जबकि आज यह क्षेत्र बढ़कर 2.23 लाख हेक्टेयर हो गया है। इसी प्रकार प्रदेश में फल उत्पादन वर्ष 1950 में 1200 टन था, जबकि आज यह बढ़कर 7 लाख टन है। कृषि व बागवानी क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए हमें एक व्यापक नीति तैयार करनी होगी तथा लोगों को इस बारे शिक्षित करना होगा। उन्होंने कहा कि यदि वैश्विक उष्मता इसी प्रकार बढ़ती रही तो देश में कृषि उत्पादन वर्ष 2030 तक केवल 4 प्रतिशत रह जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों को रोकने की आवश्यकता है और कार्बन क्रेडिट अर्जित करने के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने व्यापक तौर पर ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के लिए उपयुक्त तकनीक अपनाने और एनएपीसीसी के सिद्धांतों के अनुसार तेजी लाने पर भी बल दिया।उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश देश के उत्तरी क्षेत्रों की जल व ऊर्जा की अधिकतम जरूरतों को पूरा कर रहा है तथा जलवायु परिवर्तन के नाकारात्मक प्रभाव से न केवल राज्य, बल्कि पूरा उत्तरी क्षेत्र प्रभावित होगा।

इस अवसर पर जलवायु परिवर्तन व हिमालयन ग्लेशियरों पर प्रस्तुति दी गई। जर्मन जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम की कंट्री हैड सुश्री सबाइन ने जलवायु परिवर्तन पर विचार व्यक्त किए। स्विस विशेषज्ञ के दल के डॉ. कीर्तिमान और डॉ. मुस्तफा अली खान ने भी भारतीय हिमालीय अनुकूलन कार्यक्रम पर प्रस्तुति दी।विज्ञान संस्थान बैंगलोर के विशेषज्ञ प्रो. अनिल कुलकर्णी व केन्द्रीय हिमालयन पर्यावरण संघ के अध्यक्ष प्रो.एस.पी. सिंह ने जलवायु परिवर्तन पर महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए। प्रो. अनिल कुलकर्णी गत 35 वर्षों से हिमालीय ग्लेशियरों पर शोध अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने वैश्विक ऊष्मीकरण के कारण हिमालीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने बारे जानकारी दी।विधानसभा अध्यक्ष श्री बी.बी.एल. बुटेल ने सामान्य उत्तरदायित्वों व क्षमताओं के सिद्धांतों पर आधारित प्रभावी, सहयोगात्मक व सामांतर वैश्विक सोच स्थापित करने पर बल दिया।इससे पूर्व, अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिक श्री तरूण कपूर ने मुख्यमंत्री व अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने इस तरह की कार्यशालाओं को आयोजित करने के उद्देश्य पर भी जानकारी दी तथा कहा कि कार्यशालाओं को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य लोगों को जलवायु परिवर्तन को अपनाने से परिचित करवाना है।उन्होंने कहा कि हि.प्र. विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का जलवायु परिवर्तन का प्रादेशिक केन्द्र हिमाचल हिमालीय पर 1993 से विभिन्न अध्ययन कर रहा है।मंत्रिमण्डल के सदस्य, विधायक, मुख्य सचिव श्री वी.सी. फारका, प्रशासनिक सचिव, विभागाध्यक्ष व अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी कार्यशाला में उपस्थित थे।