5 Dariya News

नक्सलियों के गढ़ में संविधान का मंदिर

5 Dariya News

जगदलपुर (छत्तीसगढ़) 09-Jul-2017

छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित क्षेत्र में संविधान का मंदिर? बात कुछ अजीब सी लगती है न! लेकिन ऐसा ही है। जगदलपुर में जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर तोकापाल ब्लॉक का एक गांव है बुरुं गपाल। लगभग दो हजार की आबादी वाले इस गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है, जहां भारत के संविधान का मंदिर है। करीब 25 साल पहले यहां आदिवासियों ने स्टील प्लांट के खिलाफ आंदोलन किया था। इसके बाद इस मंदिर की स्थापना की गई। अब एक बार फिर इस गांव में ग्रामीण लामबंद हो रहे हैं, जिसकी वजह 9 मई, 2015 को दंतेवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने साइन हुए अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट का एमओयू है। इस प्लांट को लेकर ग्रामीण लगातार विरोध कर रहे हैं। हालांकि स्टील प्लांट का विरोध 2014 से चल रहा है। अब तक 14 गांव विरोध में आ चुके हैं। 1992 में 6 अक्टूबर को इस इलाके के मावलीभाटा में एसएम डायकेम के स्टील प्लांट का भूमिपूजन और शिलान्यास हुआ था।

ग्रामीणों का कहना है कि सरकार क्षेत्र में लगातार उद्योग पर उद्योग लगाने के प्रस्ताव में कंपनियों से एमओयू साइन कर रही है, लेकिन अब तक ग्रामीणों से इस बारे में कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया है। जबकि, संविधान की पांचवीं अनुसूची में यह जरूरी था। प्लांट के विरोध में आदिवासी लामबंद हो गए हैं। 24 दिसंबर, 1996 को तैयार हुआ मंदिर करीब 6 फीट लंबा और 8 फीट चौड़ा चबूतरे पर बना है। इस पर पीछे की ओर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार बनी है। इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित इबारतें लिखी हैं, लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा मिट चुका है। उन दिनों आंदोलन की अगुवाई यहां कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा ने की थी। उन्होंने बुरुं गपाल गांव में ही डेरा जमा लिया था और उन्होंने ही यह मंदिर बनाया था। इसी जगह से पूरा आंदोलन संचालित होता था। डॉ. शर्मा करीब तीन साल यहां रहे। लगातार यहां बैठकें होती थीं। 

इसके बाद 73वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ। हालांकि इस मंदिर का कोई कमरा नहीं है और न ही इस पर छत है, लेकिन ग्रामीण इस स्थान का बेहद सम्मान करते हैं। बताया जाता है कि लोगों में इस स्थान को लेकर गजब की आस्था है। गांव में त्यौहार हो या कोई नया काम शुरू करना, पूरा गांव यहीं जुटता है। संविधान की कसमें खाई जाती हैं, इसके बाद ही एक राय होकर काम शुरू करते हैं। यह परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है। पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद वर्ष 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश की पहली ग्रामसभा बुरुं गपाल में ही हुई थी। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी शामिल हुए थे। इस ग्रामसभा ने उस समय स्थानीय नौकरी में बाहरी लोगों का विरोध करते हुए शिक्षाकर्मियों की भर्ती निरस्त कर दी थी। इसी ग्राम सभा में मुकुंद आयरन और एसएम डायकेम के स्टील प्लांट को भी निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद से दोनों उद्योग यहां फिर कभी नहीं आ सके।