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वन सेवा पर जैव विविधता संरक्षण की जिम्मेदारी : प्रणब मुखर्जी

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देहरादून 05-May-2017

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारतीय वन सेवा के पास सिर्फ देश में क्षेत्र की सेवा करने की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि जैव विविधता संरक्षण व वन आवरण को बढ़ाने एवं वन आधारित आजीविका को प्रोत्साहित करने के अलावा जलवायु परिवर्तन के कारणों को भी खत्म करने का दायित्व है। उत्तराखंड के देहरादून में शुक्रवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के वार्षिक दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि यह निश्चित तौर पर संतोष की बात है कि ई-सर्विलांस व जीआईएस एप्लीकेशन जैसे तकनीकों व अधिकारियों के परिश्रम की बदौलत देश का वन आवरण ताजा रपटों के मुताबिक 1987 के 6.42 करोड़ हेक्टेयर से बढ़कर 7.94 करोड़ हेक्टेयर हो गया है। यह अपने आप में शानदार उपलब्धि है, लेकिन अभी काफी कुछ हासिल किया जाना बाकी है। राष्ट्रपति ने कहा, "भारत में वन क्षेत्र के रूप में नामित 7.94 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र है। यह देश का लगभग 19.32 प्रतिशत है। वर्ष 1952 की वन नीति के मुताबिक देश में उपलब्ध कुल भूमि का एक-तिहाई हिस्सा वन क्षेत्र का होना चाहिए। ऐसे में साफ देखा जा सकता है कि अभी करीब 15 प्रतिशत का अंतर है जिसे भरा जाना है। वास्तव में 1966 में भारतीय वन सेवा की स्थापना के पीछे 33 प्रतिशत वनक्षेत्र को प्राप्त करने का लक्ष्य भी था। और अब समय आ गया है कि इस दिशा में ठोस उपाय सुनिश्चित जाएं।"इस मौके पर उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ. कृष्ण कांत पॉल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, पर्यावरण वन तथा जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनिल माधव दवे मौजूद थे।