5 Dariya News

बापू व कस्तूरबा का सपना पूरा करने में जुटे भीतिहरवा के लोग

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बेतिया (बिहार) 26-Mar-2017

महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर केंद्र और राज्य सरकार सहित विभिन्न संस्थाएं अगर अपने-अपने तरह से समारोह आयोजित करने की तैयारी जुटी हैं, तो 'भीतिहरवा गांधी आश्रम' के आस-पास के ग्रामीण भी गांधी और कस्तूरबा के सपने को साकार करने में जुटे हैं। चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष समारोह में भाग लेने आए देश के जाने-माने गांधीवादी एस़ एऩ सुब्बाराव कहते हैं कि 27 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी मोतिहारी से नरकटियागंज आए थे और फिर पैदल ही शिकारपुर और मुरलीभहरवा होकर भीतिहरवा गांव पहुंचे थे। उनके साथ कस्तूरबा गांधी भी थीं। कस्तूरबा गांधी गांवों में महिलाओं को सफाई और शिक्षा का महत्व समझाती थीं।

उन्होंने बताया कि गांधी ने 100 साल पहले जब 'भीतिहरवा आश्रम' की नींव डाली थी, तब उन्होंने किसानों की समस्याओं के निराकरण के साथ महिलाओं को शिक्षित करने का भी अभियान चलाया था, जिसकी जिम्मेवारी कस्तूरबा को दी थी। कस्तूरबा ने महिला शिक्षण के काम को गांधी जी के चंपारण से चले जाने के बाद छह महीने तक जारी रखा था। कस्तूरबा के प्रयत्नों को देखकर ग्रामीण इतने प्रभावित हुए कि उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा को आज तक मिटने नहीं दिया। आज भी उस परंपरा को समृद्ध करने में यहां के लोग जुटे हुए हैं।

 स्थानीय लोग बताते हैं कि पश्चिम चंपारण जिला मुख्यालय बेतिया से करीब 20 किलोमीटर दूर भीतिहरवा स्थित गांधी आश्रम के आस-पास के दर्जनों गावों की लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं था। ग्रामीण किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि वे अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए बेतिया या नरकटियागंज भेज सकें। उनकी इस विवशता को महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने सौ साल पहले जानकर लड़कियों के लिए शिक्षण का काम शुरू कर दिया था, लेकिन स्वाधीनता आंदोलन के बढ़ते चरण के कारण गांधी जी और कस्तूरबा गांधी दोबारा आकर इसे नहीं बढ़ा सके। बाद में स्थानीय ग्रामीणों कस्तूरबा गांधी की स्मृति में एक स्कूल की स्थापना के लिए अपनी जमीन सरकार को दान दी। 

स्थानीय लोगों की जमीन पर कस्तूरबा की स्मृति में कन्या विद्यालय बना।कस्तूरबा कन्या उच्च विद्यालय के सचिव दिनेश प्रसाद यादव आईएएनएस को बताते हैं कि ग्रामीणों के जमीन देने के बावजूद स्कूल के भवन आदि के लिए कहीं से जब कोई राशि नहीं मिली, तब ग्रामीणों ने अपने सहयोग से स्कूल भवनों का निर्माण शुरू कर दिया है। वे बताते हैं कि दीपेंद्र बाजपेयी के नेतृत्व में स्थानीय पढ़े-लिखे युवक स्कूल में नि:शुल्क अध्यापन शुरू कर दिया। इसके बाद स्कूल संचालन के लिए एक समिति बनाई गई। दिनेश बताते हैं, "आज ग्रामीण अपने पूर्वजों के सपनों को पंख दे दिए हैं। आज स्कूल में न केवल लड़कियां पढ़ रही हैं, बल्कि उनकी संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।" उन्होंने कहा कि आज ग्रामीणों में भी उत्साह का संचार हुआ है कि चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर गांधी जी और कस्तूरबा गांधी को उनकी परंपरा को उनके विचारोनुकूल बढ़ाने से बेहतर कोई और श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। 

वे बताते हैं कि इस स्कूल की स्थापना 1986 में ही हो गई थी, लेकिन पिछले एक साल से इस स्कूल का जितना विकास हुआ उतना पिछले 25 साल मे भी नहीं हुआ था। ग्रामीण और स्कूल से जुड़ी वीणा सिंह कहती हैं, "इस स्कूल में छात्राओं को मौजूदा शिक्षा व्यवस्था के मद्देनजर संबंधित पाठयक्रमों के अलावा गांधीवादी मूल्यों से भी अवगत कराया जा रहा है। यहां की छात्राओं के साथ शिक्षक-शिक्षिकाएं भी झाड़ू लेकर सफाई करते हैं।" उन्होंने बताया, "यहां की छात्राओं को श्रम मूल्यों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकी ज्ञान भी दिया जा रहा है।"हाल में इस स्कूल का गांधीवादी एस़ एऩ सुब्बाराव सहित गांधीवादी लोगों ने दौरा किया और स्कूल की प्रशंसा की। स्थानीय पत्रकार कुमार कृष्णन बताते हैं कि भीतिहरवा और श्रीरामपुर के किसान परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे लोग स्कूल की आथिर्क मदद कर सकें, लेकिन उनके गांधी के प्रति प्रेम और स्नेह ने उन्हें ऐसा करने को संकल्पित किया है।