5 Dariya News

वन भैंसों को बचाने के लिए लगाएंगे जाएंगे रेडियो कॉलर

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रायपुर (छत्तीसगढ़) 16-Mar-2017

छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसा लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं। यह दिखने में याक की तरह होता है, लेकिन इसकी प्रजाति अलग है। यह दुर्लभ पशु है, जो इंद्रावती, उदंती सहित राज्य के कुछ अभयारण्यों में ही पाया जाता है। राज्य में इस समय वनभैंसों की कुल संख्या मात्र 11 रह गई है। इनमें भी 8 नर और 3 मादा वनभैंसा हैं। वन विभाग अब वनभैंसों के संरक्षण के लिए रेडियो कॉलर लगाकर इनके विचरण का पता लगाने के प्रयास में है। बताया जाता है कि इसके लिए अफ्रीका से विशेषज्ञों को बुलाया जा रहा है। ये विशेषज्ञ जल्द ही छत्तीसगढ़ पहुंचेंगे। इनके साथ दिल्ली के भी कुछ विशेषज्ञ शामिल होंगे।पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) के अधिकारी आर.के. सिंह ने कहा कि वनभैंसों की संरक्षण की दिशा में कदम उठाया जा रहा है। अफ्रीका और दिल्ली से विशेषज्ञों का दल जल्द ही पहुंचने वाला है। टीम संभवत: शुक्रवार तक पहुंच जाएगी।इससे पहले, छत्तीसगढ़ में क्लोन के माध्यम से जंगली भैंसों की संख्या बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना 2012 में शुरू की गई थी। इस वक्त राज्य के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती वन्यजीव अभयारण्य में आशा नाम की एकमात्र मादा जंगली भैंस है। 247.59 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले अभयारण्य में आठ अन्य जंगली भैंस भी हैं, लेकिन केवल आशा ही मादा है। आशा की उम्र बढ़ रही है। इसे देखते हुए सरकार ने इस दुर्लभ प्रजाति को बचाने के लिए इसके क्लोन बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की थी।बताया जाता है कि इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में वर्ष 1999 में करीब 150 वनभैंसा थे। वनभैंसा को राज्यपशु घोषित करने के बाद गरियाबंद जिले के उदंती में एक प्रजनन केंद्र बनाया गया है। वहां देशी भैंस से क्रॉस करवाकर वनभैंसों की संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बस्तर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में शुद्ध नस्ल के वनभैंसों को ही बढ़ाने की कोशिश शुरू हुई है।